Ranchi: झारखंड में बेरोजगारी की समस्या की ओर सरकार का ध्यान खींचने के लिए छात्रों ने अनूठा तरीका अख्तियार किया है। यहां रामगढ़ विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है और यहां एक दर्जन छात्र बेरोजगारी का मुद्दा लेकर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतर आए हैं।
इन उम्मीदवारों का कहना है कि जब सरकार नौकरियों की वैकेंसी नहीं भर पा रही है तो उनके सामने विकल्प यही है कि वे विधायक-सांसद जैसी वैकेंसी में अपनी किस्मत आजमाएं। झारखंड में सिर्फ सांसद-विधायक का स्थान रिक्त होने पर वैकेंसी सही वक्त पर भर ली जाती है। इसमें कोई देर नहीं होती।
निर्दलीय मैदान में उतरे मनोज बेदिया बताते हैं कि नौकरी मिलने की आस में उम्र 40 से ऊपर पहुंच गई। झारखंड ऐसा राज्य है, जहां जितने युवाओं को नौकरियां मिलती हैं, उससे कहीं अधिक संख्या में नौकरियों की परीक्षाएं रद्द हो जाती हैं। वर्ष 2000 में झारखंड अलग राज्य बना था तो उम्मीद जगी थी कि तेजी से नियुक्तियां होंगी। उस वक्त हमारी उम्र 18 साल थी। इंतजार में 22 साल गुजर गए और अब हमारे सामने सिर्फ नाउम्मीदियां हैं।
इसी तरह फारुख अंसारी, पांडव कुमार महतो और शफी इमाम ने भी नौकरी की उम्र निकल जाने के बाद चुनाव मैदान में किस्मत आजमाने का फैसला किया। वे कहते हैं कि हमें इस बात का एहसास है कि हममें से कोई यह चुनाव नहीं जीतने वाला, लेकिन अगर हम अपने प्रचार के दौरान बहालियां रद्द होने और बेरोजगारी की समस्या की तरफ नेताओं के साथ आम लोगों का ध्यान खींच सकें तो यह हमारी कामयाबी होगी।
एक अन्य निर्दलीय उम्मीदवार सहदेव कुमार कहते हैं कि इस उपचुनाव में हम लोग खुद को परख रहे हैं। प्रचार के दौरान यह बात समझ में आ गई है कि अगर छात्र-युवा साझा तौर पर अपने मुद्दों को लेकर मजबूती के साथ चुनाव में लड़ें तो राजनीतिक दलों और स्थापित नेताओं के लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी। इस चुनाव की जो लनिर्ंग होगी, उसे हम आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में आजमाएंगे।
जो अन्य छात्र निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं, उनमें कामदेव महतो, तुलेश्वर कुमार पासवान, धनंजय कुमार पुटूस, प्रदीप कुमार, मनोज कुमार बेदिया, महिपाल महतो, रामावतार महतो, रंजीत महतो और सुलेन्द्र महतो शामिल हैं।