डाॅ नागेश्वर शर्मा
Deoghar: दो वर्षों के अन्तराल पर विश्वप्रसिद्ध मास व्यापी श्रावणी मेला देवघर में दिनांक 14 जुलाई से ही चल रहा है। बहुत ही जोर-शोर से मेले की तैयारी देवघर प्रशासन द्वारा की गयी है। उम्मीद थी कि बहुत बड़ी तायदाद में इस बार कांवरियों का आगमन होगा। आषाढ़ के अन्त और श्रावण के शुरूआती दो- तीन दिनों में कांवरियों की संख्या ठीक हीं थी। लेकिन संख्या में इजाफा होनें के बजाए एकाएक गिरावट दिख रही है।इस गिरावट के मूल में मेरी राय में ये कारण हो सकते हैं :
पहला कारण
बिहार से सटा पूर्वी उत्तर प्रदेश का क्षेत्र एवं झारखंड में वर्षा के अभाव में खरीफ फसल की खेती यानी धान की रोपनी नही के बराबर हुई है।पुर्णियां,जो बिहार का चेरापूंजी समझा जाता है वहां भी खेती नही हो पाई है।और जिलों की स्थिति तो और भी बुरी है।किसान सकते में है।निराशा में है। भूखे भजन होहिइ न गोपाला।मेरी दृष्टी में यह प्रमुख कारण है।
दूसरा कारण
विगत दो वर्षों में कोविड के दोरान निम्न एवं औसत मध्यम वर्गीय लोगों की आय घटी है। टू कीप द पाॅट ब्यालिंग की समस्या से ऐसे आमजन जूझ रहे हैं।फिर मंहगाई चरम पर है।ऐसे लोग ही मेले का बड़ा मुख्य हिस्सा होते थे।मेरी नजर में अभी तक ऐसे लोगों की हिस्सेदारी नगण्य रही है। आप कांवरिया मार्ग पर खड़े हो जाएं। स्पषट प्रतीत हो जाएगा।
तीसरा कारण
कोविड का फिर से फैलाव खास कर बाबा नगरी में, यह भी एक कारण है। सचेत और कोविड की मार को नजदीक से देखने वाले जागरूक लोग , जो सामान्य स्थिति में कावंरिया भेष में मेले का हिस्सा हुआ करते थे , वे आने से परहेज कर रहे हैं ।
अगर यही रफ्तार रही ,तो मेले की कमाई पर आश करने वालों को निराशा ही हाथ लगेगी। लेकिन समय अभी बांकी है।आस्था का सैलाब कभी भी फूट सकता है।
(टिप्पणीकार: प्रो.(डाॅ) नागेश्वर शर्मा भारतीय आर्थिक परिषद के संयुक्त सचिव है और यह उनके निजी विश्लेषण है।)