spot_img

आर्थिक संकट से निपटने के लिए करंसी नोट छापने की कोई योजना नहीं: FM

वित्त मंत्री (Finance Minister) निर्मला सीतारमण ने कहा कि कोविड-19 महामारी के प्रकोप से पैदा हुए मौजूदा आर्थिक संकट से उबरने के लिए सरकार की योजना नए करंसी नोट छापने की नहीं है। वित्त मंत्री ने सोमवार को लोकसभा में यह बात एक सवाल के जवाब में कही।

New Delhi: वित्त मंत्री (Finance Minister) निर्मला सीतारमण ने कहा कि कोविड-19 महामारी के प्रकोप से पैदा हुए मौजूदा आर्थिक संकट से उबरने के लिए सरकार की योजना नए करंसी नोट छापने की नहीं है। वित्त मंत्री ने सोमवार को लोकसभा में यह बात एक सवाल के जवाब में कही।

वित्त मंत्री सीतारमण से पूछा गया था कि क्या आर्थिक संकट से उबरने के लिए मुद्रा नोटों के मुद्रण की कोई योजना है। प्रश्न के लिखित उत्तर में उन्होंने कहा कि ‘नहीं।’ दरअसल अनेक अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों ने भारत सरकार को सुझाव दिया है कि कोविड-19 संक्रमण से प्रभावित अर्थव्यवस्था में मदद के लिए और अधिक नए (मुद्रा) करंसी नोटों को छापा जाए।

करंसी नोट छापने से महंगाई का खतरा

यदि सरकार नए करंसी नोट छापने पर विचार करती है तो इसका सबसे बड़ा खतरा ये होगा कि इससे महंगाई बढ़ सकती है। जिम्बाब्वे और वेनेजुएला जैसे देशों की सरकारों ने भी जनता को राहत देने के लिए नोट छापे थे, जिसके बाद महंगाई ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। नोट छापने का नतीजा ये हुआ कि साल 2008 में महंगाई की वृद्धि दर करोड़ों में पहुंच गई। लोगों को जरा सी चीज के लिए बड़े-बड़े बैग में पैसे भरकर ले जाने पड़ रहे थे। उन तस्वीरों ने पूरी दुनिया को परेशान किया था।

महंगाई बढ़ने का क्या-क्या होता है असर

उल्लेखनीय है कि इस तरह महंगाई बढ़ने को अर्थशास्त्र में हाइपरइंफ्लेशन कहा जाता है। किसी देश की अर्थव्यवस्था अगर एक बार हाइपरइंफ्लेशन मोड में पहुंच जाए तो वहां से निकलना मुश्किल साबित होता है। देश की मुद्रा नीति का देश के सभी नागरिकों पर समान प्रभाव पड़ता है। महंगाई बढ़ने के बाद देश के सभी लोगों की क्रय शक्ति (परचेजिंग पावर) कम हो जाती है। इस हिसाब से उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से अधिक टैक्स देना पड़ता है।

Also Read:

Leave a Reply

Hot Topics

Related Articles

Don`t copy text!