देवघर:
सावन के पावन अवसर पर बाबाधाम की पैदल कांवर यात्रा अपने आप में अलौकिक अनुभव होता है. जाहिर सी बात है की इस यात्रा के दौरान दान पूण्य करने की भावना परवान पर होती है. भक्तों की इसी भावना को कारोबारी पुरे कांवरिया पथ पर अपने-अपने तरीके से भूनाने की जुगत में लगे रहते है. ऐसा ही एक कारोबार है बट्टे पर सिक्का उपलब्ध करवाने का.
सिक्के के कारोबारी काँवरियो को दस रूपये के बदले महज आठ रूपये का सिक्का देते है. मतलब साफ़ है दो रुपयों की शुद्ध कमाई. बिहार के सुल्तानगंज से झारखंड के देवघर तक की 110 किलोमीटर की कठिन पैदल यात्रा में प्रतिदिन लाखो भक्त यात्रा पर रहते है. इस संख्या के आधे भी अगर ऐसे कारोबारियो से खुदरा सिक्का लेते है तो इन कारोबारियो को लाखो की कमाई आराम से हो जाती है.
बट्टे पर उपलब्ध सिक्का
बात यही नहीं खत्म होती है. अब जरा एक सच्चाई पर और गौर करने की जरुरत है जो कांवरिया पथ पर बैठे भिखमंगो और विभिन्न देवी, देवता और त्योहारों के लगे पंडालो से जुड़ा है. इन्हें ही काँवरियो के द्वारा सिक्का दान स्वरुप दे दिया जाता है. यहाँ दान में मिले सिक्के वापस उन्ही कारोबारियो तक पंहुचा दिए जाते है जो बट्टे पर सिक्को का कारोबार करते है.
अब ये सब किसी एक से तो होगा नहीं. जिससे ये बात भी स्पष्ट हो जाता है की पूरा कारोबार सांगठनिक तौर पर किया जाता है. लेकिन इस पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है. जबकि बैंक चाहे तो कांवरिया पथ पर सिक्का बदलने का काउंटर लगा कर भक्तों को इस ठगी से बचा सकते है.