Deoghar: दो दिवसीय वार्षिक क्षेत्रीय (तीलहन एवं दलहन) कार्यशाला का आयोजन शिल्पग्राम ऑडिटोरियम में किया गया, जिसका आयोजन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के क्षेत्रीय कार्यालय, पटना द्वारा आयोजित एवं केवीके सुजानी के सहयोग से किया गया। इस दौरान कार्यक्रम का शुभारंभ उपायुक्त सह जिला दण्डाधिकारी मंजूनाथ भजंत्री, बिहार कृषि विश्वविद्यालय भागलपुर के कुलपति डॉ0 अरूण कुमार एवं उपस्थित अतिथियों द्वारा किया गया।
इसके अलावे कार्यक्रम के दौरान उपायुक्त मंजूनाथ भजंत्री ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि दो दिवसीय कार्यशाला में बिहार व झारखण्ड के 68 कृषि विज्ञान केन्द्रों के प्रमुखों का देवघर में स्वागत है। वर्तमान में कृषि के क्षेत्र में आपार संभावनाएं है। वहीं आवश्यकता है कि आधुनिक तकनीकों को कृषकों के साथ जोड़ते हुए उन्हें सशक्त बनाया जा सके।
कृषि विज्ञान केन्द्र को वर्तमान में जिला प्रशासन से जोड़कर ज्यादा से ज्यादा जमीनी स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है। कृषकों को फसलों संबंधी जानकारी व समस्याओं का सामना न करना पड़े इसके लिए समय-समय पर कृषि विज्ञान केन्द्र को कार्य करते हुए कृषि के क्षेत्र को और भी बेहतर बनाते हुए किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद करने की आवश्यकता है। आगे उपायुक्त द्वारा जानकारी दी गयी कि देवघर जिले में एक्सपेरिमेन्ट के तौर पर ग्रामीण महिलाओं को बटन मशरूम के उत्पादन से जोड़ा गया था। इसकी विशेषता है कि आप इसे झोपड़ी में लाभप्रद खेती कर सकते हैं। मशरूम स्वास्थ्य फायदे की वजह से लगातार बाजार में भी इसकी मांग बढ़ती जा रही है। वही कम लागत में बटन मशरुम की मौसमी खेती करने के लिए अक्तूबर से मार्च तक का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। ऐसे में कृषि पाठशाला के माध्यम से संबंधित प्रशिक्षकों द्वारा बटन मशरूम की वैज्ञानिक खेती के तकनीकों से ग्रामीण महिलाओं को अवगत कराया गया। एक महीने में लगभग 2.5 क्विंटल बटन मशरूम उत्पादन किया गया। वहीं इन्हें जल्द हीं योजना से जोड़ते हुए पूरे साल यहां बटन मशरूम का उत्पादन सुनिश्चित करने की दिशा में योजना बनाई जा रही है। साथ हीं देवघर जिले में बाबा मंदिर, सत्संग आश्रम, रिखिया आश्रम व धार्मिक स्थल होने की वजह से गेंदा फूल की मांग अत्यधिक है। ऐसे में इस दिशा में भी बेहतर कार्य योजना बनाकर कार्य किया जा सकता है, ताकि स्थानीय लोगों को कृषि के माध्यम से बेहतर रोजगार मुहैया करायी जा सके। साथ हीं खेती को व्यवसायीकरण से कैसे जोड़ा जाय इस पर कार्य करने की आवश्कता है और समय-समय पर जिले के किसानों से सम्पर्क करते हुए उन्हें आधुनिक जानकारियों व तकनीकों से जोड़ने की आवश्यकता है।
कार्यशाला के दौरान बिहार कृषि विश्वविद्यालय भागलपुर के कुलपति डॉ0 अरूण कुमार द्वारा जानकारी दी गई कि घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए देश को 4-5 मिलियन टन अतिरिक्त दलहन उत्पादन करने की जरूरत है और इसे तभी पूरा किया जा सकता है जब हम सही तरीके से इस दिशा में कार्य करें। आगे उन्होंने सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए दलहन और तिलहन के अपने अनुभवों को साझा किया और साथ ही दलहन प्रौद्योगिकी प्रदर्शन और सीड हब कार्यक्रम के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी। उन्होंने कहा कि नई किस्मों और परिस्थिति विशिष्ट प्रौद्योगिकियों पर ध्यान देने की जरूरत है तथा साथ ही अधिकतम उपज लाभ लेने के लिए प्रदर्शनों का प्रबंधन करने, गुणवत्ता बीज के रूप में किसानों से किसानों के बीच उत्पादों का प्रसार करने और किसान के स्तर पर दलहन के मूल्य वर्धन को बढ़ावा देने की जरूरत को रेखांकित किया। साथ ही दलहन में बीज प्रतिस्थापन दर में बढ़ोतरी करने, किसानों द्वारा प्रमाणित एवं गुणवत्ता बीजों का कहीं अधिक इस्तेमाल करने और ऐसी फसलों विशेषकर सर्दियों के मौसम के दौरान संरक्षित सिंचाई के प्रावधानों पर बल दिया।
इसके अलावे कार्यशाला के दौरान निर्देशक, अटारी पटना डॉ अंजनी कुमार ने सभी का स्वागत करते हुए दो दिवसीय कार्यशाला में आयोजित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों से सभी को अवगत कराया।
इस दौरान उपरोक्त के अलावे डॉ आर.के सोहने, डॉ एम.एस कुंडू, वरीय वैज्ञानिक सह प्रमुख आनंद तिवारी, जिला जनसम्पर्क पदाधिकारी रवि कुमार, केवीके सुजनी के वैज्ञानिक राजन ओझा, बिहार व झारखंड के 68 कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख, सहायक जनसम्पर्क पदाधिकारी रोहित कुमार विद्यार्थी, एवं संबंधित विभाग के अधिकारी आदि उपस्थित थे।