Deoghar: तारीख 10 अप्रैल, दिन रविवार और समय दोपहर साढ़े तीन से चार के करीब … जब बहुत तेज़ आवाज हुई। हवाओं में बच्चों और महिलाओं के रोने-चीखने की आवाज गूंज रही थी। हम सभी बिना कुछ देखे-समझे बस दौड़ पड़े … अगर उस वक़्त खुद की जान की परवाह करते तो न जाने कितनी मौत का मंजर देख लेते …. ये कहना है उनलोगों का जो देवघर स्थित त्रिकूट पर्वत पर हुए हादसे में देवदूत बनकर आये।
ये सभी कहते हैं कि वो मंजर खौफनाक था। जिसे हम सभी कभी भूल नहीं सकते। ईश्वर ऐसे वक़्त से फिर कभी सामना न कराये। जी हाँ… ये बातें उन लोगों ने कही जिन्होंने देवघर रोपवे हादसे में फंसे लोगों की आँखों में मौत का खौफ करीब से देखा है। जिन्होंने रात भर उन फंसे हुए लोगों में ज़िंदा रहने की उम्मीद ज़िंदा की। खुद की परवाह किये बगैर उस वक़्त हवाओं में झूलती जिंदगियों को रस्सी का सहारा देकर मौत के मुंह से निकाला जब जरा सी देर हो जाने पर न जाने कितने घरों में चीख-पुकार गूंज जाती।
पन्नालाल पंजियारा, गोविन्द सिंह, बलराम, पप्पू सिंह, जितेश, उपेंद्र, बिट्टू, चंदन पंकज, प्रभाष और अन्य 20 से 25 स्थानीय ये सभी हैं त्रिकूट रोपवे हादसे के देवदूत … जिन्होंने न तो कभी ऐसे हादसे देखे थे और न ही कभी रेस्क्यू किया था। लेकिन अपने जज़्बे और हिम्मत से इन्होंने हादसे के पहले दिन ही एक-दो नहीं बल्कि पुरे 18 लोगों की जान बचाई जिसमे दो बच्चे भी शामिल हैं। इतना ही नहीं इनके सहयोग की वजह से ही सेना, एयरफोर्स, आईटीबीपी, एनडीआरएफ और स्थानीय पुलिस प्रशासन बाकि दो दिनों का रेस्क्यू सफलतापूर्वक सम्पन्न कर पाई।
पन्नालाल पंजियारा जिनकी बहादुरी के चर्चे चारों ओर हैं। जिनके हौंसले की तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद उनसे बात कर की तो राज्य के सीएम ने एक लाख का चेक सौंप उन्हें सम्मानित भी किया। पन्नालाल रोपवे के कर्मचारी हैं। वो बताते हैं कि आवाज़ होते ही सभी रोपवे की ओर दौड़े। पहले तो समझ नहीं आया फिर स्थानीय लोगों का सहयोग मिला। फिर क्या था चढ़ गए रस्सी के सहारे ट्रॉलियों तक और किसी तरह दो छोटे-छोटे बच्चे सहित 18 लोगों को बचा पाए।
बलराम कहते हैं कि रामनवमी का दिन था। माँ दुर्गा की पूजा कर रहा था। बलि देने ही जा रहा था कि जोरदार आवाज हुई। ट्रॉलियों के टकराने की। सबकुछ छोड़छाड़ रोपवे की तरफ दौड़ा। हवा में रोने-चिल्लाने की आवाज गूंज रही थी। लोगों को किसी तरह बचाना था। सहयोगी पप्पू सिंह की मदद से रस्सी लाये और पन्नालाल को कहा ऊपर चढ़िये। नीचे हमलोगों ने रस्सी पकड़ रखा था। करीब 1000 फ़ीट की ऊंचाई से जख्मी हालत में लोगों को अपने कंधे पर उठा नीचे एम्बुलेंस तक पहुँचाया।
पप्पू सिंह ने बताया 10 अप्रैल का मंजर खौफनाक था। आवाज आने पर सबमिलकर दौड़े। ट्रॉली में लोग चीख रहे थे। एक ट्रॉली में महिला खून से लथपथ थी। नीचे से चिल्ला कर ट्रॉली खोलने को कहा। किसी तरह महिला को निकाला जा सका। उन्होंने बताया कि रात की स्थिति ज्यादा खौफनाक थी क्योंकि डर था हादसे का। हवाएं तेज थी। ऊंचाई पर बादल था। हिम्मत कर कर के लगेज ट्रॉली से ऊपर तक गए। जहां तक जा सकते थे। पप्पू ने बताया कि किसी तरह एक माइक मिला था। जिससे हर ट्राली के लोगों से हालचाल जाना कि अंदर लोग किस हालत में हैं। लोगों को हिम्मत दिलाते रहे। 18 घंटे तक लगातार लगेज ट्रॉली पर ही रहे और अनाउंसमेंट करते ही रहे। ताकि किसी की हिम्मत न टूटे। इतना ही नहीं जब रेस्क्यू के लिए टीम पहुंच गयी दूसरे दिन तो माइक के जरिये स्थानीय लोगों को भी रास्ता जाम न करने के लिए भी चिल्लाते रहे। पैरा कमांडो और आर्मी की गाड़ी तक रोक दी ताकि रेस्क्यू के एम्बुलेंस तक लोगों को जल्दी ले जाया जा सके। अधिकारीयों ने उनके इस कार्य की तारीफ भी की।
पंकज ने बताया कि मैं पास में ही रहता हूँ सूचना पर मौके पर पहुंचा था। देर रात हो गयी थी। लोग हवा में लटके थे भूखे-प्यासे। मुझे लगा मैं मदद कर सकता हूँ। मेरे पास 2-3 ड्रोन की व्यवस्था थी। तुरंत देवघर डीसी से परमिशन लिया और अपने साथी चंदन और बिट्टू के साथ ड्रोन लाया। ताकि सभी तक पानी-खाना पहुंचा सकूं। उन्होंने बताया कि बहुत मुशकिल था। हवा तेज थी। ड्रोन तारों और ट्रॉलियों से टकरा जा रही थी। लेकिन किसी तरह लोगों तक राहत सामग्री पहुंचा पाया। फिर लगेज ट्रॉली से ऊपर गए। लोगों से बातचीत की और खाना-पानी पहुँचाने की कोशिश की।
बिट्टू एक ऐसा शख्स जो शादियों में जेनरेटर की रस्सियां मजबूती से बांधा करता है। उस दिन उसकी हुनर काम आई। पहले दिन जब रस्सियों से उफंसे लोगों को उतारने की योजना स्थानीय लोगों ने बनाई तो झट से बिट्टू ने पोल में मजबूती से रस्सी को न सिर्फ बांधा बल्कि ताकत के साथ उस रस्सी को पकड़ खड़ा भी रहा।
रोपवे के कर्मचारी गोविन्द कहते हैं कि डर बहुत था। पहले अपनी जान का भी दूसरा उनकी जान का भी जो हवा में लटक रही थी। ग्रामीण लोगों ने कहा रोपवे पर चढ़ने। डर था लोगों को सही सलामत निकाल पाएंगे की नहीं। किसी तरह हिम्मत की। ग्रामीणों की मदद से जान हथेली पर लेकर चढ़े। सेफ्टी बेल्ट लगाकर रोपवे पकड़ रस्सी की सहारे ट्रॉली तक पहुंचे और लोगों को नीचे उतारा। छह लोग तीन बड़े और तीन बच्चों को बचा पाए।
गोविन्द और पप्पू ने दूसरे दिन रेस्क्यू के लिए पहुंचे चॉपर के पायलट की भी बहुत मदद की। उन्हें नीचे से इशारों में बताते कि कहां तक उनका रहना सेफ है नहीं तो चॉपर क्रैश हो जाता। आवाज ऊपर नहीं जा रही थी इसलिए चॉपर के उनसेफ मूव पर नीचे लोहे की रड को पोल पर कस कर बजाड़ते। जिसकी आवाज से पायलट अलर्ट हो जाते थे।
ये सभी वे लोग हैं जिन्हें न तो कभी ट्रेनिंग मिली न कोई तकनीकी ज्ञान। बस अपनी सूझबूझ दिखाई और 18 लोगों की जिंदगियां तो उस दिन ही बचा ली। लेकिन बाकि दो दिनों तक चले रेस्क्यू में भी इन सब 30 से 35 लोगों की अहम भूमिका रही। जिनकी तमाम बातों को एक-एक शब्दों में पिरोना मुश्किल है। आज तमाम एजेंसीज, एयरफोर्स, आर्मी, आईटीबीपी, एनडीआरफ, मेडिकल टीम, लोकल एडमिनिस्ट्रेशन, और इन स्थानीय लोगों की बदौलत 73 जिंदगियां मौत को मात देकर लौटी हैं। हालांकि इस हादसे में गए तीन जान का सभी को बेहद अफ़सोस है।