देवघर:
शिव, महेश, शंकर, पशुपतिनाथ, महादेव जैसे एक हजार एक नामो से जाने जाते है बाबा भोले. कहते हैं जिस भक्त पर बाबा की कृपा दृष्टि पड़ती है उसका जीवन सुखमय हो जाता है.
बाबा बैद्यनाथधाम में ज्योतिर्लिंग स्थापित है, 12 ज्योतिर्लिंगों में ये सबसे महत्वपूर्ण है, क्यूंकि इस लिंग को रावण के द्वारा प्राप्त कर स्थापित किया गया है. ये मनोकामना लिंग के रूप में जाना जाता है जिससे यहाँ मांगी गई मनोतियां जरुर पूरी होती हैं. यह एक मात्र शिवालय है जहाँ शिव और शक्ति एक साथ विराजमान है. यहाँ पहले शक्ति का ह्रदय कट कर गिरा है उसके बाद यहाँ शिव आये हैं. इसे शिव शक्ति का मिलन स्थल भी कहा जाता है. इसके पीछे भी एक रोचक कहानी छुपी है.
बाबा बैद्यनाथ मंदिर के पुरोहित प्रमोद श्रृंगारी बताते हैं कि रावण को जिद थी की वो भगवान भोले को लंका लेकर जाए, तब क्या था रावण ने कठिन तपस्या की और भगवान शिव की खूब पूजा की. लेकिन भगवान भोले खुश नहीं हुए. रावण ने अपना सर एक एक कर काटना शुरू कर दिया और बाबा भोले खुश हो गए. बाबा शिव ने रावण को वर मांगने को कहा तब रावण ने उनसे लंका चलने को कहा. तब शिव जी ने कहा कि मै तो चलूँगा लेकिन जिस जगह हमें जमीं पर रख दोगे वही मैं स्थापित हो जाऊंगा. रावण ने ऐसे लिंग की मांग की थी कि जिस लिंग के पूजन से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. इस शिवलिंग के प्राप्ति के बाद माता पार्वती ने रावण को शिवलिंग पूजन के लिए कहा और पूजन के क्रम में ही रावण ने गंगा जल पी लिया था. उसके बाद रावण शिवलिंग को लेकर लंका जाने लगा, लेकिन देवताओं ने संड्यन्त्र रचा, रास्ते में ही रावण को लघुशेका आ गयी और उसने एक चरवाहा को लिंग पकड़ने को दे दिया. वो चारवाहा भगवान बिष्णु का ही रूप था. रावण का लघुशंका नहीं रुक रहा था, तब उस बिष्णु रूपी चरवाहे ने शिवलिंग को इसी जगह रख दिया और यही बाबा बैद्यनाथ के नाम से जाना जाता है.
सबसे उत्तम लिंग ज्योतिर्लिंग को माना गया है और ज्योतिर्लिंग अथक साधना और तप के बाद हासिल किया जाता है. रावण को भी यही मनोकामना लिंग बड़ी कठिन परिश्रम और ताप के बाद मिला क्यूंकि उसकी जिद थी कि वो इस मनोकाना लिंग के जरिये अपनी सारी मनोकामना पूर्ण कर लेगा. इसलिए इस मनोकामना लिंग का विशेष महत्व है. वैदिक कथाओं के अनुसार रावण के द्वारा शिवलिंग को लंका ले जाने के क्रम में यहाँ शिवलिंग स्थापित हो गया. दूसरी तरफ ये चिता भूमि है क्यूंकि यहाँ शक्ति का ह्रदय कट कर गिरा था ऐसे में ये पहले से ही तय था कि देवता शिव के शक्ति से मिलाप कराने में लगे थे, कहा जाता है कि सभी देवताओ ने मिलकर यहाँ बैद्यनाथ की स्थापना की थी.
इस मंदिर का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता हैं क्योंकि यहाँ शक्ति का हृदय कट कर गिरा था. इसलिए इसे ह्रदय पीठ भी कहा जाता है. यहाँ आने वाले भक्तों को एक साथ ह्रदय पीठ और कामना लिंग के दर्शन होते है. तभी तो शिव भक्त यहां 105 किलोमीटर चल कर बाबा भोले नाथ को जल अर्पण करने पहुंचते हैं. और अपनी सारी मनोकामना पूरी करते हैं.
यह दिवानी दरबार भी है यानि यहाँ मनोकामना देर से पूरी होती है. लेकिन भक्तो की कामना जरूर पूरी होती है. कहा जाता है कि कोई भी भक्त अगर सच्ची मनोकामना के साथ बाबा भोले से मन्नत मांगते है तो बाबा भोले नाथ जरुर पूरी करते हैं.
शिव की इस नगरी के बारे में कहा जाता है कि इस नगरी में आने मात्र से ही कल्याण हो जाता है.