रांची।
कामरेड ए के राय जैसे लोग विरले पैदा होते हैं। वे सिर्फ इसलिए होते हैं, ताकि इतिहास की किताबों भर में फँस कर न रह जाएँ। वे जीवित रहते हैं, अपने काम से। आज ए के राय की पहली पुण्यतिथि है। उन्हें याद कर रहे हैं पत्रकार रवि प्रकाश।
मशहूर मजदूर नेता और पूर्व सांसद ए के राय की आज पहली पुण्यतिथि है। लंबी बीमारी के बाद 21 जुलाई 2019 को उनका धनबाद में निधन हो गया था। तब वे कई दिनों से कोमा में थे। सीपीएम से अलग होने के बाद उन्होंने मार्क्सवादी समन्वय समिति नामक राजनीतिक पार्टी की स्थापना की थी। तत्कालीन पूर्वी बंगाल में जन्मे ए के राय की बड़ी राजनीतिक विरासत रही है। उनको याद करते हुए कभी सीना चौड़ा होता है, तो कभी आँखें नम।
कामरेड अरुण कुमार राय उर्फ ए के राय अब इस दुनिया में नहीं हैं। सिर्फ उनकी यादें हैं, जो आदमी को सादगी से जीने का हौसला देती रहेंगी। तीन बार के सांसद और तीन बार विधायक रहे कामरेड राय ने अपने पीछे कोई संपत्ति नहीं छोड़ी थी। वे पेंशन नहीं लेते थे। उनका बैंक खाता भी नहीं था। न गाड़ी थी और न घर। उन्होंने शादी नहीं की थी। वे धनबाद में अपने एक समर्थक के दो कमरों के मकान के एक हिस्से में रहते थे।उन्होंने कभी जूता नहीं पहना। जीवन भर मजदूरों और वंचितों की लड़ाई लड़ते रहे। उनके पास बाडीगार्ड नहीं था, लेकिन कोयलांचल के बड़े से बड़े माफिया उनसे डरते थे।
तत्कालीन पूर्वी बंगाल के राजशाही जिले का एक गांव है सपूरा। अब यह हिस्सा बांग्लादेश की सरहद में है। साल 1935 में उनका जन्म इसी गांव में हुआ था। उन्होंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। रिसर्च इंजीनियर बनकर वे धनबाद के सिंदरी खाद कारखाने में आए। साल 1966 में वहां हुई मजदूरों की हड़ताल का समर्थन करने के कारण उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। तब उन्होंने मार्क्सवादी कमयुनिस्ट पार्टी ज्वाइन की और सिंदरी के विधायक बने। 1974 में जेपी आंदोलन के बाद विधानसभा की सदस्यता छोड़ने वाले वे पहले विधायक थे।
उन्होंने शिबू सोरेन और विनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर अलग झारखंड की लड़ाई लड़ी और उसे मुकाम तक पहुंचाया।
ए के राय को लेकर कई किस्से भी प्रचलित हैं। साल 2014 में कुछ चोरों ने उनके घर पर धावा बोला। चोरी कर भी ली। बाद में जब उन्हें यह पता चला कि वह घर ए के राय का था, तो चोरों ने उनसे माफी मांग ली और चोरी का सामान लौटा दिया। इसी तरह उनकी हत्या की सुपारी लेकर पहुंचा एक पेशेवर हत्यारा उनकी सादगी देखकर वापस लौट गया। उन्होंने सासंदों और विधायकों को मिलने वाली पेंशन का विरोध किया। उनका तर्क था कि सासंद और विधायक कोई नौकरी नहीं करते। उन्हें दोबारा चुनाव लड़ने का हक है। इसलिए उन्हें पेंशन नहीं मिलनी चाहिए। वे इकलौते ऐसे सांसद थे, जिन्होंने सांसदों की वेतन वृद्धि के प्रस्ताव का विरोध किया। अब वे हमारे साथ नहीं हैं लेकिन उनकी यादें हमेशा जिंदा रहेंगी। उन्हें प्रणाम। श्रद्धांजलि।