Ranchi: झारखंड में राज्यसभा कोटे (Rajya Sabha quota in Jharkhand) से खाली हो रही दो सीटों के लिए जून-जुलाई में चुनाव संभावित है। इस बार भी राज्यसभा की दोनों सीटों के लिए होने वाले चुनाव काफी रोमांचक होने वाला है। केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और महेश पोद्दार का कार्यकाल सात जुलाई को सप्ताह हो रहा है। झारखंड में हमेशा से ही रोचक रहा राज्यसभा चुनाव का गणित इस बार भी अंत तक सस्पेंस कायम रखेगा।
विधानसभा में इस बार आंकड़ों का गणित अलग है। विधानसभा में दलीय स्थिति ही कुछ ऐसी बन रही है। संख्या बल के हिसाब से झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) सबसे बड़ी पार्टी है। ऐसे में पार्टी प्रत्याशी का चुनाव जीतना तय है। विधायक बंधु तिर्की की सदस्यता खत्म होने के बाद सहयोगी कांग्रेस के पास प्रत्याशी को चुनाव जिताने की राह मुश्किल है। भाजपा को इस बार भी प्रत्याशी को जीतने के लिए सरयू राय-सुदेश महतो गठबंधन (झारखंड लोकतांत्रिक मोर्चा) की जरूरत पड़ेगी।
वर्तमान विधानसभा की दलगत स्थिति
झारखंड में विभिन्न दलों की दलीय स्थिति को राज्यसभा चुनाव के फार्मूले के साथ देखने पर चुनावी गणित की रोचकता स्पष्ट दिखाई देती है। झारखंड विधानसभा की दलीय स्थिति बताती है कि झामुमो के सदस्यों की संख्या सर्वाधिक 29 है। वहीं, मुख्य विपक्षी दल भाजपा की 25, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की 16, झारखंड विकास मोर्चा की तीन (झाविमो के विलय को अभी तक स्वीकारा नहीं गया है)। भाकपा माले की एक, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की एक, राष्ट्रीय जनता दल की एक तथा निर्दलीय दो।
झाविमो के तीन में से एक बाबूलाल मरांडी भाजपा में शामिल हो चुके हैं। उन्हें पिछले चुनाव में भाजपा के सदस्य के रूप में वोट डालने की अनुमति चुनाव आयोग ने दी थी। दो अन्य प्रदीप यादव और बंधु तिर्की कांग्रेस में शामिल हुए थे। बंधु तिर्की की विधायकी जाने के बाद कांग्रेस पार्टी अब 17 (कांग्रेस कोटे के 16 और एक झाविमो) सीटों पर ही सिमट गयी है।
राज्यसभा चुनाव का फॉर्मूला
राज्यसभा चुनाव की जीत का फॉर्मूला लोकसभा चुनाव से बिल्कुल अलग होता है। विधानसभा में कुल सदस्यों की संख्या को रिक्त हो रही सीटों की संख्या में एक जोड़ कर भाग दिया जाता है। फिर उसमें एक और संख्या जोड़ने पर जीत का परिणाम देता हैं।
झारखंड विधानसभा में सदस्यों की कुल संख्या 81 है। बंधु तिर्की की सदस्यता खत्म होने के बाद यह संख्या 80 हो गयी है। छह माह के अंदर दोबारा उपचुनाव कराने की बाध्यता होती है। हालांकि, राजनीतिक जानकार बताते हैं कि उपचुनाव होना संभव नहीं। ऐसे में रिक्त हो रही दो सीटों में एक जोड़ने पर संख्या तीन हो जाती है। कुल सदस्यों की संख्या (80) को तीन से भाग देने पर 26.66 यानी 27 आता है। इसमें एक जोड़ने पर यह संख्या 28 हो जाती है यानी पहली वरीयता में पार्टी को अपने प्रत्याशी को जीतने के लिए 28 विधायकों का समर्थन चाहिए। इस हिसाब से झामुमो अपने संख्या बल पर एक उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित कर सकता है।
भाजपा को झारखंड लोकतांत्रिक मोर्चा का सहारा
भाजपा के पास 25 विधायक हैं। इसमें भी सिंदरी विधायक इंद्रजीत महतो की हालत काफी क्रिटिकल है। विधानसभा के बजट सत्र में भी वे शामिल नहीं हुए थे। कांके विधायक समरी लाल की सदस्यता जाति प्रमाण पत्र के कारण लटकी है। मामला राज्यपाल के पास लंबित है। अगर इन बातों को नजरअंदाज कर भी दें, तो भी पहली वरीयता में भाजपा संख्या बल के हिसाब से अपने प्रत्याशी को चुनाव नहीं जीता पाएगी। ऐसे में भाजपा को सरयू-सुदेश महतो गठबंधन (झारखंड लोकतांत्रिक मोर्चा) का सहारा लेना पड़ेगा।
उल्लेखनीय है कि 2020 में हुए राज्यसभा चुनाव में आजसू पार्टी के दोनों विधायकों और सरयू राय ने भाजपा प्रत्याशी दीपक प्रकाश को वोट दिया था। संख्या बल सीमित होने के बावजूद दीपक प्रकाश को चुनाव में सर्वाधिक 31 वोट मिले थे। ऐसे में इस बार भी भाजपा को इनके समर्थन की जरूरत पड़ेगी, जो वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए आसान लगता है। वहीं, पर्याप्त संख्या बल न होने के बावजूद प्रत्याशी खड़ा करने से कांग्रेस को करारी हार झेलनी पड़ी थी। बंधु तिर्की की विधायकी जाने के बाद यह और भी पुख्ता हो गया है।