spot_img

धनबाद के युवा IITian का आविष्कार, बनारसी साड़ी उद्योग को देगा नया आधार

झारखंड के धनबाद स्थित आईआईटी-आईएसएम (IIT-ISM) पासआउट स्टूडेंट के एक आविष्कार ने इस उद्योग को अब एक नई चमक दे दी है।

शंभु नाथ चौधरी

Ranchi: बनारस जिन चीजों के लिए मशहूर है, उनमें बनारसी साड़ियां (banarasi sarees) भी हैं। बेशक इसका श्रेय उन बुनकरों को जाता है, जो बड़ी मेहनत से कई रोज का वक्त लगाकर खूबसूरत कशीदाकारी वाली एक-एक साड़ी तैयार करते हैं। फटाफट प्रोडक्शन की डिमांड वाले इस दौर में बनारस का बुनकर उद्योग मुश्किल चुनौतियों में फंसा है, लेकिन झारखंड के धनबाद स्थित आईआईटी-आईएसएम (IIT-ISM) पासआउट स्टूडेंट के एक आविष्कार ने इस उद्योग को अब एक नई चमक दे दी है।

युवा इंजीनियर नित्यानंद मौर्य ने ऐसी तकनीक इजाद की है, जिससे बनारसी साड़ियां बनाने में वक्त और लागत दोनों की बचत हो रही है। डिजिटल पंचकार्ड नामक इस तकनीक की खासियत यह है कि इससे प्रोडक्ट की क्वालिटी और खूबसूरती भी पहले की तरह बरकरार रहती है। नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित एमएसएमई आइडिया हैकथॉन 2022 में आईआईटी-आईएसएम की टीम ने गुरुवार को इस तकनीक का प्रदर्शन किया। इस तकनीक को प्रोविजनल पेटेंट मिल चुका है और फाइनल पेटेंट की प्रक्रिया जारी है।

युवा इंजीनियर नित्यानंद मौर्य

बनारस के बुनकर साड़ियां बनाने के लिए पारंपरिक तौर पर दफ्ती के पत्तों वाले पंचकार्ड का इस्तेमाल करते रहे हैं। परंपरागत पंचकार्ड कोपॉवरलूम और हैंडलूम में तैयार कर लगाने में हफ्तों का वक्त लगता है और उसके रखरखाव में भी काफी मेहनत करनी पड़ती है। नित्यानंद मौर्य ने जो डिजिटल पंचकार्ड बनाया है, उससे हफ्तों का काम मिनटों में हो जा रहा है। साड़ी की डिजाइन डिजिटल पंचकार्ड में लोड करते ही लूम पर बिनाई तुरंत होने लगती है। बनारस के बुनकर मोहल्ले में कई बुनकर डिजिटल पंच कार्ड मशीन वाली नई तकनीक का इस्तेमाल करने लगे हैं। अब इन्हें बार-बार साड़ी की डिजाइन बदलने के लिए पारंपरिक दफ्ती के पत्तों वाले भारी-भरकम पंचकार्ड बनवाने और उसको लूम पर फिट कराने में हफ्तों की मशक्कत नहीं करनी पड़ रही। डिजिटल पंचकार्ड में कुछ ही मिनटों में मनचाही डिजाइन लोड हो जाती है। इससे लागत में भी खासी बचत हो रही है और प्रोडक्शन की क्वालिटी भी किसी मायने में कम नहीं।पुराने लूम पर लगे दफ्ती के पंचकार्ड का मेंटेनेस का झंझट खत्म हो गया है और इससे प्रोडक्शन की रफ्तार भी बढ़ गई है।

इस तकनीक के जनक नित्यानंद मौर्य बनारस के ही रहनेवाले हैं। उनके मामा बुनकर उद्योग से जुड़े हैं। नित्यानंद उन्हें पारंपरिक पंचकार्ड को लूम पर लोड करने की मशक्कत से जूझते देखते थे। तभी उन्होंने इसकी जगह नई तकनीक लाने पर काम शुरू कर दिया। उनके कॉलेज के साथी षणमुख कृष्णा और बुनकर जियाउर्रहमान ने इस प्रोजेक्ट में उनकी मदद की और दो साल की मेहनत में यह तैयार हो गया।

आईआईटी-आईएसएम धनबाद के डीन प्रोफेसर धीरज कुमार ने बताया कि एमएसएमई आइडिया हैकथॉन में इस तकनीक को मौके पर मौजूद केंद्रीय मंत्री नारायण राणे सहित सभी लोगों ने खूब सराहा। सब कुछ ठीक रहा तो इस डिजिटल पंचकार्ड को जल्द ही बाजार में उतार दिया जायेगा।(IANS)

Leave a Reply

Hot Topics

Related Articles

Don`t copy text!