Ranchi: राष्ट्रीय राजनीति में हाशिए पर खड़ी कांग्रेस के लिए झारखंड में भी आसार अच्छे नहीं दिखते। राज्य सरकार के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय के बयान इस बात की तस्दीक करते हैं। जैनियों के पवित्र तीर्थ स्थल पारसनाथ में तीन दिनों तक चले कांग्रेस के चिंतन शिविर में पार्टी के स्वास्थ्य मंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि हेमंत सोरेन सरकार राज्य में कांग्रेस का सफाया करना चाहती है।
समारोह के अंतिम दिन राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने झामुमो पर जोरदार हमला बोलते हुए कहा कि हम गठबंधन की सरकार चला रहे हैं। फिर भी हमारी स्थिति उस गाने के समान हो गयी है कि जब माझी ही नाव डुबोये तो उसे कौन बचाये। जब झारखंड का मुख्यमंत्री ही चाहता है कि हमारी पार्टी (कांग्रेस) समाप्ति की ओर चली जाये, हमारे वोटर उनकी तरफ शिफ्ट हो जायें तो ऐसी सरकार का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने कहा कि पहले पार्टी बचेगी फिर हम बचेंगे।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस की यह आशंका ऐसे ही नहीं है। कांग्रेस के कद्दावर नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय का इशारा भी कुछ इसी ओर था। उन्होंने नेतृत्व से कहा कि वह इसका आकलन करे कि गठबंधन सरकार में पार्टी का एजेंडा धरातल पर कितना उतर रहा है। कांग्रेस को इस बात का मलाल है कि गठबंधन सरकार ने उसे अहमियत नहीं मिलती। सरकार एकतरफा फैसले ले रही है। इसका घाटा भविष्य में उठाना पड़ सकता है।
लिहाजा चिंतन शिविर के माध्यम से कांग्रेस ने अपने राजनीतिक दोस्त झारखंड मुक्ति मोर्चा को यह संदेश देने की कोशिश की है कि अब रिश्ता एकतरफा नहीं चलेगा यानी सत्ता से जुड़े विषयों और नीतिगत फैसलों में पार्टी की राय लेनी होगी। इससे पहले भी कांग्रेस के विधायक समय-समय पर अपनी पीड़ा से शीर्ष नेतृत्व को अवगत कराते रहे हैं।
विधायकों के गुस्से का अंदाज इस बात से भी लगाया जा सकता है कि विधानसभा के शीतकालीन सत्र में जब सत्तारूढ़ दल के विधायकों की संयुक्त बैठक बुलाई गई तो कांग्रेस के विधायक नहीं पहुंचे। सारी तैयारी धरी रह गई है। इसका दोहराव भी हुआ। 25 फरवरी से आरंभ हो रहे बजट सत्र के पहले कांग्रेस विधायक दल ने अपनी अलग बैठक कर ली।
गठबंधन सरकार में शामिल कांग्रेस के विधायकों की संख्या 18 है। इसमें झाविमो से आए दो विधायक भी शामिल हैं। हेमंत सरकार की स्थिरता के लिए यह आवश्यक है कि कांग्रेस का साथ बरकरार रहे। फिलहाल सरकार की स्थिरता को कोई संकट नहीं दिखता लेकिन कांग्रेस के भीतर पैदा हुए असंतोष का फायदा भाजपा-आजसू गठबंधन उठा सकता है।
राष्ट्रीय राजनीति में पिछड़ने के कारण कांग्रेस कभी नहीं चाहेगी कि झारखंड में सत्ता की चाबी उसके हाथ से निकले। इसके लिए आवश्यक है कि वह महत्वाकांक्षी नेताओं पर अंकुश लगाए और बड़े पैमाने पर दल के भीतर होने वाली गुटबाजी को भी समाप्त करे। चिंतन शिविर के अंतिम दिन कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी स्पष्ट संदेश दिया है कि कार्यकर्ता उनके लिए सबसे ऊपर हैं। झारखंड में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चिंता जनाधार और विधायकों को बचाए रखने की है। वर्तमान परिदृश्य में आने वाले दिन पार्टी के लिए चुनौतियां और बढ़ाने वाली होंगी।
राष्ट्रभाषा के साथ समझौता हुआ तो दे दूंगा इस्तीफा
मंत्री ने कहा था कि हम मंत्री बनकर घूम रहे हैं। यह किसे खराब लगेगा। ऐसे लोगों को यह नहीं पता कि हम मंत्री कैसे बने और कैसे हमने एक-एक वोट जुटाया है। हम जब जमशेदपुर से एक लाख वोट लेकर आयें हैं, तो हमें यह तय करना होगा कि हमारी विचारधारा और हमारा सिद्धांत कभी कमजोर नहीं हो। राष्ट्रभाषा के साथ समझौता नहीं किया जा सकता है, जिस दिन राष्ट्रभाषा और मां भारती के साथ के साथ समझौता करना पड़ेगा तो मैं उसी दिन इस्तीफा दे दूंगा।
पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने भी बोला था हमला
पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने भी गठबंधन सरकार पर हमला बोलते हुए कहा था कि राज्य में जितने भी घोषणाएं हो रही है उसमें पार्टी की कोई भूमिका नहीं है। ऐसे में हमारा गठबंधन बच पाएगा या नहीं ये कहना मुश्किल है। ऐसे में हम दोबारा साल 2024 में एक साथ लड़ पाएंगे ये देखना होगा। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि पांच साल तक झारखंड को स्थायी सरकार दिया जाएगा।
हालांकि, बन्ना गुप्ता और सुबोधकांत सहाय के बयान के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा के किसी मंत्री या विधायक की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई लेकिन अंदरखाने में दोनों नेताओं के बयान से उबाल दिख रहा है।(Hs)