पाकुड़: स्वार्थजनित लापरवाही व राजनैतिक संरक्षण के चलते पाकुड़ जिले में आर्थिक अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं। हालात यह हो गए हैं कि बंद पड़ी पत्थर खदानों की कौन कहे इसमें संलिप्त लोगों ने गोचर और सरकारी जमीन को भी खोद कर पत्थर निकालना शुरू कर दिया है। बताया गया है कि ऐसे अवैध कारोबारियों को शासन में बैठे कुछ लोगों का प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष संरक्षण मिला हुआ है। नतीजतन यह अवैध कारोबार थमने के बजाय दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है।
सदर प्रखंड के मालपहाड़ी पत्थर औद्योगिक क्षेत्र व इससे सटे पीपलजोड़ी, बासमाता, चेंगाडांगा, सालबोनी, रामनगर के अलावे काशिला, कालीदासपुर, डुंगरीटोला, हिरणपुर प्रखंड के सीतपहाड़ी, वीरग्राम, तुरसाडीह, रामनाथपुर, महारो, हाथीगढ़, जीयाजोरी, मानसिंगपुर तो महेशपुर प्रखंड के सुंदरापहाड़ी, रदीपुर, पाकुड़िया प्रखंड के गोलपुर, खक्सा, खागाचुंआ आदि दर्जनो गाँवों मेें अवैध उत्खनन और परिवहन में संलिप्त पत्थर माफियाओं द्वारा सरकारी राजस्व को क्षति पहुँचा रहे हैं।
खास बात यह है कि विभागीय व प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा अवैध उत्खनन और परिवहन पर रोक लगाने के मद्देनजर की जाने वाली औचक छापामारी के दौरान क्रशरों को सील वाहनों को जब्त भी किया जाता है लेकिन शासन में बैठे इनके संरक्षकों के दबाव के चलते कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पाती है। जिले में चल रहे अधिकांश अवैध उत्खनन और परिवहन के मामले में मिली जानकारी के मुताबिक ज्यादातर सत्ताधारी दल के लोगों के शामिल रहने के फलस्वरूप प्रशासनिक अधिकारी चाह कर भी कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं कर पाते हैं। ऐसे अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यही वजह है कि अब अवैध कारोबार पर रोक लगाने का मन नहीं करता है। क्योंकि, छापेमारी और जब्ती के बावजूद संबंधित लोगों पर कोई कार्रवाई करने के पहले ही उनके संरक्षकों का इतना दबाव पड़ने लगता है कि हम चुप लगाने को मजबूर हो जाते हैं। नतीजतन अब तो वैध कारोबारियों के बीच हमारी किरकिरी होने लगी है।
जाहिर है कि इससे सबसे ज्यादा नुकसान वाणिज्यकर, खनन और परिवहन विभाग को उठाना पड़ रहा है।मिली जानकारी के मुताबिक संथाल परगना के तीन जिलों में सत्ताधारी दल के एक प्रभावशाली नेता द्वारा अवैध कारोबारियों को संरक्षण दिये जाने के चलते विगत छह महीने के दौरान जिले में अवैध पत्थर उत्खनन की होड़ सी लग गई है। हालांकि, विपक्षी दलों के भी कुछ लोग बहती गंगा में हाथ धोने में पीछे नहीं हैं। इसके चलते सरकार को हर माह अमूमन करोड़ों रुपये की राजस्व के साथ ही पर्यावरण को भी क्षति हो रही है।