Deoghar: गोड्डा संसदीय क्षेत्र की सियासी फिज़ाओ में नुख़्ताकशी पसंद लोगों की जुबान पर कभी हवा-हवाई का ज़िक्र हर नुक्कड़-चौक-चौराहों पर आम हुआ करती थीं। लेकिन, जिस शख्स और शख्सियत को हवा-हवाई बता निशाने पर लिया जाता था, आज हर वो ज़ुबान खामोश है, उनके हर गोशे में सन्नाटा पसरा है और इलाके में विरोधियों की आंखों के सामने स्याह अंधेरा छाया हुआ है। क्योंकि, बीते दो दशकों से गरीबी, मुफलिसी और पिछड़ेपन का शिकार रहा संथाल परगना प्रमंडल का इलाका आज किसी पहचान का मोहताज नहीं रह गया है।
देवघर, गोड्डा, दुमका को आज वर्ल्ड क्लास पहचान मिल चुकी है। और यह सब मुमकिन हो पाया है तो उसके पीछे उसी हवा-हवाई शख्स डॉ. निशिकांत दुबे का जुनून है, उसकी मेहनत है और कभी हार न मानने वाली लगन का नतीजा है। एयरपोर्ट का सपना आज नहीं तो कल ज़रूर पूरा होता लेकिन, बात देश की सुरक्षा से भी जुड़ा था। यही वजह है कि, हवा-हवाई सियासतदां ने न सिर्फ हवा में उड़ने वाले हवाई जहाज के लिए हवाई-मार्ग का रास्ता साफ किया बल्कि, सियासी समझ और दूरदर्शी सोच को अमलीजामा पहनाने के लिए DRDO के सहयोग से बने देवघर हवाई अड्डे के तैयार होने तक सभी अड़चनों को दूर करने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा दिया।
एम्स और पुनासी किसी नज़ीर से कम तो नहीं!
यह सबकुछ गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे की उस हवा हवाई सोच का ही नतीजा है कि, इंसानी जिंदगी की दो सबसे अहम ज़रूरत को पूरा करने वाली योजना आज सर उठाकर खड़ी है। एम्स और पुनासी किसी नज़ीर से कम तो नहीं!. इन सब के बावजूद अगर नुक्कड़ पर बैठने वाले लफ़्फ़ाज़ों की महफ़िल में हवा-हवाई का ही ज़िक्र आम है तो वाकई हवा दमदार है, सेहतमंद है और निरोग रखने की वखत भी रखता है।
तो, साहेबान पेश है “हवा-हवाई” पर मशहूर कवि केदारनाथ अग्रवाल की चंद पंक्तियां।
हवा हूँ, हवा मैं, बसंती हवा हूँ।
सुनो बात मेरी -अनोखी हवा हूँ।
नहीं कुछ फिकर है, बड़ा ही निडर हूँ।
जिधर चाहता हूं उधर घूमता हूँ,
मुसाफिर अजब हूँ। हवा हूँ हवा मै बसंती हवा हूं।