Deoghar: देवघर देश का एक मात्र ऐसा शहर है जहाँ होली नहीं बल्कि बाबा भोले के शिवलिंग की स्थापना के उपलक्ष्य में होली मनाई जाती है। क्योंकि इसी दिन बिष्णु के साथ शिव का मिलन देवघर के में हुआ था। हरि हर मिलन (Hari Har Milan) की परंपरा अभी भी निभाई जा रही है। हरि और हर के मिलन के बाद मंदिर प्रांगण में भक्त होली खेलने में सराबोर हो जाते हैं। पूरे देवघर में होली मनती है।
इस साल भी हरि और हर के मिलन की परम्परा बाबा मंदिर में निभाई जायेगी। तीर्थपुरोहित बताते हैं कि हरि और हर के मिलन से पहले मंदिर परिसर में बने राधा कृष्ण मंदिर से हरि को पालकी पर बिठा कर शहर के आजाद चौक स्थित दोलमंच ले जाया जाता है। वहां बाबा मंदिर के भंडारी उनको झूले पर झुलाते हैं। भक्त राधा कृष्ण को झूले पर झुलाकर अबीर गुलाल लगाकर गले लगते हैं। बाद में कृष्ण की मूर्ति को बाबा मंदिर में शिव लिंग पर रख कर हरिहर मिलन कराया जाता है। इस आयोजन को देखने लोगो की भीड़ उमड़ पड़ती है इस दिन को शिवलिंग की स्थापना के रूप में भी मनाया जाता है।
इस साल रात 1:30 बजे होगा मिलन
इस साल 17 मार्च की आधी रात करीब 1:30 बजे हरि और हर का मिलन होगा। रात्रि 1:10 बजे मंदिर पुजारी व आचार्य परंपरा अनुसार मंदिर स्टेट की ओर से होलिका दहन की विशेष पूजा करेंगे। 1:28 पर होलिका दहन के पश्चात भगवान को पालकी पर बिठा कर बड़ा बाजार होते हुए पश्चिम द्वार से मंदिर लाया जाएगा। रात 1:30 बजे कृष्ण व बाबा बैद्यनाथ का मिलन होगा।
पंरपरा के पीछे की पाैराणिक कहानी
पुरोहित बताते हैं कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार त्रेता काल में लंकापति रावण कैलाश पर्वत से शिवलिंग लेकर लंका जा रहा था। ताकि भोलेनाथ को वहां स्थापित कर सके। लेकिन शंकर भगवान ने शर्त रखी थी कि बिना कहीं रुके शिवलिंग को लंका ले जाओ, कहीं रख दिया तो वहीं विराजमान हो जाएंगे। इस बीच देवताओं ने मायाजाल बिछाया। रावण जब भगवान शंकर को लेकर चला, लेकिन जब देवघर से गुजर रहा था तभी उसे लघुशंका लगी। जमीन पर वह शिवलिंग नहीं रख सकता था। तभी चरवाहे के रूप में भगवान विष्णु वहां आए। उसने उनको शिवलिंग सौंपा व लघुशंका करने चला गया। हरि के हाथ हर यानि शंकर को दिया गया था, दोनों का यहां मिलन हुआ। उसी समय भगवान विष्णु ने देवघर में अवस्थित सती के हृदय पर शिवलिंग स्थापित कर दिया। तब से हरि और हर के मिलन की परंपरा चल पड़ी। आज भी बैद्यनाथधाम देवघर में यह परंपरा कायम है।