यूरोप
यूरोप के एक छोटे से विकसित देश आइसलैण्ड के दो वैज्ञानिकों गलिट ऑल्टर और राबर्ट सेडर ने एक स्टडी में दावा किया गया है कि कोविड-19 के मरीज़ों को दिए जा रहे एंटीबॉडी इंजेक्शन का असर कम से कम चार महीने तक रहता है।
इसके बाद असर धीरे-धीरे खत्म होने लगता है। इसके पहले यह कहा जा रहा था कि एंटीबॉडी इंजेक्शन का असर तेज़ी से लुप्त हो जाता है।
न्यू इंग्लैंड जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट से पता चला कि आईसलैंड के वैज्ञानकों ने पिछले दिनों 30,500 कोरोना मरीज़ों पर परीक्षण किया था। इस परीक्षण के उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं। इस जर्नल के संपादकीय में लिखा है कि एंटीबॉडी इंजेक्शन से रोग निरोधक क्षमता लंबे समय तक रहती है। अगर इस से कोरोना जैसे अज्ञात घातक रोग पर नियंत्रण कर लिया जाता है, तो यह एक बड़ी उपलब्धि है।
इससे पूर्व स्टडी में देखा गया था कि एंटीबाडी इंजेक्शन का असर अधिकतम तीन महीने तक रहता था और यह फिर से होने वाले संक्रमण को रोक पाने में असमर्थ होता था। वैज्ञानिक यह पता लगाने में लगे हैं कि यह एंटीबॉडी इंजेक्शन दीर्घावधि तक इम्यूनिटी निर्मित करने में कितना सहायक हो सकता है।
ऑल्टर और सेडर ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि संक्रमण और इंजेक्शन दो तरह की एंटीबाडीज वेव संचार करते हैं। पहली धारा अल्पावधि के लिए कार्यरत प्लाज़्मा सेल से उत्पन्न होती है, और उस से एक सिस्टम के अनुसार संचार प्रवाह होने लगता है। लेकिन यह धारा तीव्र संक्रमित रोगियों में बड़ी तेज़ी से लुप्त होने लगती है। इसके विपरीत प्लाज़्मा सेल से निकालने वाली दूसरी धारा का प्रवाह मंद-मद होता है और यह इम्यूनिटी स्तर को दीर्घावधि तक बनाए रखती है।
वैज्ञानिकों ने सलाह दी है कि इस विषय में अभी और शोध की ज़रूरत है ताकि यह पता लगाया जा सके कि इसका असर सभी रोगियों में एक सामान होता है। फिर क्या यह दोबारा होने वाले संक्रमण को कहाँ तक रोक पाने में सक्षम है।