Deoghar: गोड्डा लोकसभा सांसद डॉ निशिकांत दुबे के खिलाफ एक ही दिन पांच एफआइआर दायर किये जाने के मामले को भारत निर्वाचन आयोग ने गंभीरता से लेते हुए झारखंड के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को पत्र भेजकर देवघर के उपायुक्त सह जिला निर्वाचन अधिकारी के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है।
चुनाव आयोग ने देवघर डीसी से सात दिन के भीतर जवाब मांगते हुए 10 दिन के अंदर आयोग को जवाब भेजने के लिए कहा गया है। चुनाव आयोग के प्रमुख सचिव अरविंद आनंद ने झारखंड के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को जो पत्र भेजा है, उसमें देवघर के उपायुक्त की कार्यवाही पर गंभीर सवाल खड़े किये गये हैं।
पत्र की शुरुआत में कहा गया है कि देवघर के उपायुक्त सह जिला निर्वाचन अधिकारी मंजूनाथ भेजंत्री द्वारा 26.10.2021 के पत्रांक 2472 और 27.10.2021 के पत्रांक 2497 के साथ सौंपे गये दस्तावेज/रिपोर्ट के परीक्षण से स्पष्ट होता है कि एफआइआर दर्ज कराने में हुई देरी का उनके द्वारा बताया गया कारण साक्ष्य पर आधारित नहीं है और इसलिए उनसे स्पष्टीकरण पूछा जाना चाहिए।
पत्र में कहा गया है कि सांसद डॉ निशिकांत दुबे द्वारा किया गया कथित आपराधिक कृत्य और उनके खिलाफ आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप में दायर एफआइआर के बीच छह महीने से अधिक का अंतराल है। बिना किसी पर्याप्त कारण के विलंब से एफआइआर दर्ज कराना न केवल अभियोजन पक्ष के लिए समस्या पैदा कर सकता है, बल्कि यह अधिकारों के दुरुपयोग की ओर भी इशारा करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने साहिब सिंह बनाम हरियाणा राज्य के मामले में फैसला दिया है कि किसी भी घटना की सूचना तत्काल और सम्यक रूप से नहीं दिये जाने का परिणाम हमेशा घातक होता है। ऐसा ही फैसला किशन सिंह बनाम गुरपाल सिंह और अन्य के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया है।
पत्र में आगे कहा गया है कि सांसद डॉ निशिकांत दुबे के खिलाफ एक ही दिन, यानी 24 अक्टूबर को जिला निर्वाचन अधिकारी के निर्देश पर पांच एफआइआर दर्ज कराये गये, जबकि उन पर एक ही कानून के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने टीटी एंटनी बनाम केरल सरकार के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा है कि किसी कानून की एक धारा के उल्लंघन के आरोप में अलग-अलग एफआइआर तब तक सही नहीं है, जब तक कि हरके आरोप की जांच अलग-अलग जरूरी हो। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा ही फैसला अर्णब गोस्वामी बनाम भारत सरकार के मामले में भी सुनाया है।
पत्र में कहा गया है कि जिला निर्वाची अधिकारी ने देरी की वजह यह बतायी है कि उनके द्वारा आरोपी के खिलाफ साक्ष्य एकत्र किये जा रहे थे। स्थापित कानून के अनुसार किसी मामले में साक्ष्य एकत्र करना सूचक का नहीं, बल्कि अनुसंधानक का काम होता है, जो इस मामले में संबंधित थाना का आइओ होगा। कानून के मुताबिक किसी मामले का सूचक और अनुसंधानक एक व्यक्ति नहीं हो सकता। इसलिए जिला निर्वाची अधिकारी की दलील गलत है।
पत्र के अनुसार पांच एफआइआर में से एफआइआर संख्या 0179 और 0059 बीडीओ देवीपुर और बीडीओ सारठ द्वारा जिला निर्वाचन अधिकारी के मौखिक आदेश पर दर्ज करायी गयी हैं। स्थापित नियमों के अनुसार कोई भी प्रशासनिक आदेश लिखित रूप में ही मान्य हो सकता है, जिसमें आदेश जारी करने के पीछे का पर्याप्त कारण भी स्पष्ट होना चाहिए। लेकिन इस मामले में जिला निर्वाची अधिकारी ने इसका पालन नहीं किया।
दूसरे मामलों में भी जिला निर्वाची अधिकारी ने संबंधित मातहत अधिकारियों को सांसद डॉ निशिकांत दुबे के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराने का निर्देश दिया, जिसका आधार आरोपी द्वारा ट्विटर पर पोस्ट किया गया एक पत्र था। यदि ट्विटर पर पोस्ट किये गये पत्र के आधार पर ही एफआइआर दर्ज करायी जानी थी, तो यह तो चुनाव के दौरान या पोस्ट किये जाने के फौरन बाद भी की जा सकती थी।
पत्र में कहा गया है कि यदि उप चुनाव के दौरान सांसद द्वारा आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन किया जा रहा था, तो इसकी शिकायत तत्काल की जानी चाहिए थी। उपायुक्त ने एफआइआर दर्ज कराने में देरी की जो वजह बतायी है, वह कानूनी रूप से सही नहीं है।
पत्र में इस बात पर भी आपत्ति की गयी है कि घटना चितरा नामक स्थान पर हुई बतायी गयी है, जो मधुपुर चुनाव क्षेत्र में नहीं है। ऐसे में सांसद के खिलाफ दायर प्राथमिकी दुर्भावना से ग्रसित प्रतीत होती है।
बता दें कि इस साल अप्रैल में मधुपुर में हुए उपचुनाव के दौरान चुनाव आयोग ने गोड्डा सांसद डॉ निशिकांत दुबे की शिकायत पर देवघर के डीसी मंजूनाथ भजंत्री को हटा दिया था। चुनाव के बाद वह दोबारा इस पद पर पदस्थापित किये गये। जिसके छह माह बाद 24 अक्टूबर को डीसी ने जिले के पांच थानों में सांसद के खिलाफ आदर्श आचार संहिता उल्लंघन के आरोप में पांच अलग-अलग मामले दर्ज कराये थे।