Deoghar/Madhupur: जिले के मधुपुर अनुमंडलीय मुख्यालय स्थित राजबाड़ी रोड स्थित टैगोर कॉट से विश्व कवि रवींद्रनाथ टैगोर की कई यादें जुड़ी हैं। वे कोलकाता से कई बार मधुपुर आये और टैगोर कॉट में ठहरे। उन्होंने मधुपुर में ही अपनी प्रसिद्ध कविता ”तोबे एकला चलो” लिखी थी।
टैगोर कॉट को लोग राजबाड़ी के नाम से भी जानते हैं। एक समय मधुपुर साहित्य व राष्ट्रीय आंदोलन का केंद्र भी माना जाता था। कोलकाता व अन्य कई इलाके से लोग केवल सैर-सपाटे के लिए नहीं, बल्कि यहां आ कर देश के बारे में कुछ सार्थक सोचते थे। कई लोग अब भी यह मानते है कि विश्व कवि रवींद्र नाथ ठाकुर की ही टैगोर कॉट थी। इतिहासकार उमेश कुमार बताते हैं वास्तविकता यह है कि 1888 में लेफ्टिनेंट अल्फ्रेड बेंजामिन नामक एक अंग्रेज ने टैगोर कॉट का निर्माण कराया था।
कविगुरु के चचेरे भाई ने खरीदा था कॉट
1901 में बेंजामिन ने इस कोठी को पाथुरिया घाट, कोलकाता के राजा यतींद्र मोहन ठाकुर को बेच दिया। वे विश्व कवि रवींद्र नाथ के चचेरे भाई थे। राजा यतींद्र नाथ ने कोठी को भव्य तरीके से सजाया और इसमें तकरीबन 80 फुट का एक टावर भी बनवाया। यह टावर समूचे मधुपुर को अपनी ओर खींचता था। आज भी अपने मूल रूप में टावर और पूरा टैगोर कॉट बचा हुआ है। टैगोर कॉट अब होटल राज के नाम से जाना जाता है।
मधुपुर में कवि गुरु ने की कई रचनाएं
रवींद्र नाथ टैगोर कई बार लाल कोठी के नाम से चर्चित गंगा प्रसाद हाउस में भी आये। यह कोठी जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की थी। श्यामा प्रसाद व उनके परिवार वालों से उनका गहरा लगाव था। यह कोठी शेखपुरा मोहल्ला में अवस्थित थी। हालांकि, इस कोठी का अब अस्तित्व समाप्त हो चुका है।
बताया जाता है कि इसके अलावा वे देवघर के राजनाथ बसु और गिरिडीह में आचार्य जगदीश चंद्र बसु के यहां आया-जाया करते थे। मधुपुर व देवघर प्रवास के दौरान उन्होंने कई कविता संग्रह व नाटक लिखे। मधुपुर कॉलेज के अवकाश प्राप्त शिक्षक डॉ आशीष कुमार सिन्हा के अनुसार प्रसिद्ध रचना ” जोदि तोर डाक सुने केउ न आसे, तोबे एकला चलो रे… यहीं लिखी गयी थी। रविंद्र नाथ का टैगोर कॉट व गंगा प्रसाद हाउस काफी आना-जाना था।