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Jharkhand: 23 साल गुजर गये, सैकड़ों करोड़ खर्च के बाद भी अंधेरी सुरंग में फंसी है Tandwa NTPC रोशनी फैलाने की परियोजना

चतरा जिले के टंडवा में नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन (NTPC)का पावर प्लांट लगाने पर बीते 23 सालों मे सैकड़ों करोड़ खर्च कर दिये गये, लेकिन यहां से आज तक एक छटांक बिजली पैदा नहीं हो पाई है।

शंभु नाथ चौधरी, Ranchi: चतरा जिले के टंडवा में नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन (NTPC)का पावर प्लांट लगाने पर बीते 23 सालों मे सैकड़ों करोड़ खर्च कर दिये गये, लेकिन यहां से आज तक एक छटांक बिजली पैदा नहीं हो पाई है। इस महीने पावर प्लांट की पहली यूनिट से बिजली उत्पादन शुरू करने की तैयारी थी, लेकिन बीते सोमवार को प्लांट के पास विस्थापितों और पुलिस के बीच हिंसक टकराव की वजह से यह मुमकिन नहीं लग रहा है। अपनी मांगों को लेकर आंदोलित विस्थापितों ने पावर प्लांट के काम में लगी एनटीपीसी की सहयोगी कंपनी सिंप्लेक्स की 56 छोटी-बड़ी गाड़ियों को फूंक डाला था और दफ्तरों में जमकर तोड़-फोड़ मचाई थी। पुलिस और विस्थापितों के संघर्ष में दोनों ओर से कुल 27 लोग जख्मी हुए थे।

हिंसक टकराव के बाद एनटीपीसी परियोजना और आस-पास के इलाकों में जबर्दस्त तनाव की स्थिति बनी हुई है। प्रशासन ने परियोजना से प्रभावित छह गांवों में निषेधाज्ञा लागू कर दी है। पुलिस ने हिंसा के आरोप में अब तक सात लोगों को गिरफ्तार किया है। 100 लोगों के खिलाफ नामजद और 800 अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है। परियोजना के आस-पास के इलाकों में पुलिस घटना के बाद से ही लगातार फ्लैग मार्च कर रही है। इधर पावर प्लांट के कामगार घटना के बाद इतने भयभीत हैं कि 60 फीसदी से ज्यादा लोग दफ्तर नहीं आ रहे हैं। ऐसे में प्लांट की पहली यूनिट का मार्च में प्रस्तावित ट्रायल का टलना तय लग रहा है।

आधारशिला रखे जाने के बाद से ही ग्रहण

दरअसल 1999 में परियोजना की आधारशिला रखे जाने के बाद से ही इसपर ग्रहण लगता रहा है। इसके लिए जिन ग्रामीणों की जमीन ली गई है, उनके मुआवजे, पुनर्वास, नौकरी आदि को लेकर इतने गंभीर विवाद खड़े हुए कि यहां से पूरे सूबे में रोशनी फैलाने की परियोजना आज तक अंधेरी सुरंग में फंसी हुई है। तारीख थी 6 मार्च 1999, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसकी आधारशिला रखी थी। तब उम्मीद जगी थी कि नक्सलवाद और पिछड़ेपन के लिए बदनाम इस इलाके में विकास का एक नया अध्याय शुरू होगा। लक्ष्य था कि साढ़े तीन साल यानी 2002-2003 तक यहां से बिजली का उत्पादन शुरू कर दिया था। यहां पावर प्लांट की तीन यूनिटें लगाई जा रही हैं और इनसे 1980 मेगावाट बिजली के प्रोडक्शन का लक्ष्य है। मार्च 2022 में प्लांट की पहली यूनिट का ट्रायल शुरू करने का शेड्यूल तय है। इस पहली यूनिट की क्षमता 660 मेगावाट है। इस परियोजना में बिजली उत्पादन के लिए आधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है। देश में पहली बार एयर कूल कंडेंस्ड सिस्टम पर आधारित तकनीक से पानी की खपत महज 25 फीसदी रह जाएगी। प्रोजेक्ट के पूरा होने से झारखंड ही नहीं बल्कि देश के कई राज्य जगमग होंगे। झारखंड के अलावा बिहार, ओडिशा, बंगाल और पूर्वोत्तर के राज्यों में भी बिजली की सप्लाई की जाएगी।

छह गांवों की जमीन ली गई

परियोजना के लिए मुख्य तौर पर छह गांवों की जमीन ली गई। उस वक्त जमीन अधिग्रहण का पुराना कानून लागू था। इस बीच सरकार ने जमीन अधिग्रहण को लेकर नया कानून बनाया। इस कानून में यह प्रावधान है कि जिस प्रोजेक्ट के लिए जमीन ली गई है, वह पांच साल में शुरू नहीं होता है तो जमीन रैयत को वापस कर दी जाएगी। इस प्रोजेक्ट का कामजमीन अधिग्रहण में देर और कई अन्य वजहों से सात साल बाद काम शुरू हुआ तो मुआवजे की पॉलिसी, पुनर्वास की व्यवस्था, प्रभावितों को नौकरी जैसे सवालों पर विवाद खड़ा हो गया। धरना, प्रदर्शन, आंदोलन की वजह से प्रोजेक्ट का काम प्रभावित होता रहा।

पिछले 23 वर्षों में एनटीपीसी प्रबंधन, प्रशासन, पुलिस और रैयतों-विस्थापितों के बीच एक सौ से भी अधिक बार टकराव हुआ है। गोलीबारी, लाठी चार्ज, हिंसा की बेहिसाब घटनाएं हुईं। एनटीपीसी, प्रशासन और ग्रामीणों के बीच कई बार समझौते हुए, लेकिन विवाद का कभी पूरी तरह पटाक्षेप नहीं हो पाया। इस बीच ज्यादातर रैयतों-विस्थापितों को मुआवजे का भुगतान कर दिया गया। रुकावटों के बीच परियोजना का काम धीमी गति से चलता रहा।

मुआवजे का विवाद फिर से खड़ा

लगभग डेढ़ साल पहले परियोजना के लिए ली गई जमीनों के मुआवजे का विवाद फिर से खड़ा हो गया। विस्थापितों के संगठन ने पूर्व में मिले मुआवजे को नाकाफी बताते हुए आंदोलन शुरू कर दिया। एनटीपीसी प्रोजेक्ट के मुख्य गेट के सामने विस्थापित टेंट लगाकर पिछले 14 महीने से लगातार धरना दे रहे हैं। इधर एनटीपीसी के भू-संपदा अधिकारी एनजी सिंह का कहना है कि जिन रैयतों से जमीन ली गई थी, उन्हें 2015 में ही मुआवजे दिये जा चुके हैं। ऐसा कोई कानून नहीं है कि एक ही जमीन के लिए दुबारा मुआवजा दिया जाये। यह संभव ही नहीं है।

आंदोलन कर रहे रैयत मुख्य रूप से तीन मांगें कर रहे हैं। पहली यह कि उन्हें 20 लाख रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजे का भुगतान किया जाए और जिन रैयतों को मुआवजा भुगतान नहीं किया गया है, उन्हें ब्याज सहित नई दर से भुगतान किया जाये। दूसरी मांग है कि प्रत्येकविस्थापित परिवार को एकसमान पुनर्वास पैकेजदिया जाये क्योंकि अभी अलग-अलग क्षेत्र के लोगों को अलग-अलग दर से राशि दी जा रही है। तीसरी मांग छुटी हुए रैयती जमीन, गैरमजरुआ खास भूमि और उस जमीन पर स्थित मकान, पेड़, तालाब एवं कुएं के बदले मुआवजा, एनटीपीसी संचालित योजनाओं में विस्थापित रैयतों को 75 प्रतिशत का अनुदान और प्रत्येक विस्थापित परिवार के लिए एनटीपीसी में नौकरी या रोजगार देने की है।(IANS)

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