Deoghar: एमएसएमई मंत्रालय, भारत सरकार के उपनिदेशक (MSME Policy) अमित कुमार टमारिया द्वारा देशभर के चैम्बर और औद्योगिक एवं व्यावसायिक संगठनों से राष्ट्रीय एमएसएमई पॉलिसी के लिए प्रस्तुत ड्राफ्ट पॉलिसी पर उनका सुझाव आमंत्रित किया था।
संथाल परगना चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज, देवघर ने मंत्रालय से प्राप्त पत्र के आलोक में अपना सुझाव पर एमएसएमई मंत्रालय को प्रेषित किया है।
चैम्बर के अध्यक्ष आलोक मल्लिक ने ड्राफ्ट पॉलिसी का अध्ययन कर 15 प्रमुख बिंदुओं को नई पॉलिसी में सम्मिलित करने का सुझाव दिया है।
1. भारत में एमएसएमई के नियम और कानून बहुत जटिल हैं और एक राज्य से दूसरे राज्यों में बदलते रहते हैं। अतः पूरे देश में एमएसएमई पर एक ही नीति हो – *‘एक राष्ट्र एक नीति’* ताकि प्रत्येक राज्य और केन्द्र शासित प्रदेशों में एकरूपता बनी रहे। राज्यों को उन नियमों में आवश्यक अतिरिक्त लाभ या हित जोड़ने का अधिकार हो, लेकिन मूल पॉलिसी में कोई बदलाव न हो।
2. एमएसएमई को बैंक के ऋण की दर तथा जीएसटी सहित अन्य करों में प्रथम दस वर्षों तक आवश्यक रियायत देने का प्रावधान हो। साथ ही नियमित बिजली आपूर्त्ति सुनिश्चित करने की व्यवस्था और बिजली दरों मेंविशेष रियायत तथा प्रतिभूति (सेक्युरिटी) जमा से छूट का प्रोविजन हो।
3. एमएसएमई को सुलभ ऋण सुविधा, निम्नतम जोखिम फंड, कच्चे माल की सुलभ उपलब्धता तथा सुनिश्चित बाजार या खपत की निगरानी के लिए राष्ट्रीय, राज्य एवं जिले स्तर पर विशेष सेल/कमिटि बनाया जाय।
4. आवश्यक स्किल्ड लेबर की कमी को दूर करने के लिए एमएसएमई की मांग या जरूरत के अनुरूप आईटीआई जैसे संस्थानों को अपग्रेड कर जरूरी और उपयोगी वोकेशनल/प्रोफेशनल स्किल प्रशिक्षण की नीति बने।
5. इज ऑफ डुइंग बिजनेस की वर्तमान व्यवस्था को प्रभावी कारोबारी माहौल में परिणत करने के लिए नियमों में आवश्यक लचीलापन लायी जाय। सिंगल विण्डो सिस्टम को प्रभावी बनाने के लिए प्रत्येक जिलों में एक विशेष हाईपावर नोडल पदाधिकारी नियुक्त रहे। वर्तमान में इओडीबी मैनेजर की भूमिका से कारोबारियों को कोई लाभ नहीं मिलता है, अतः उन्हें सिंगल विण्डो सिस्टम में आवश्यक अधिकार दिया जाय ताकि वे उद्यमियों को आवश्यक तकनीक एवं लाइसेंस दिलाने में मदद पहुंचा सके।
6. एक राष्ट्रीय मानक संचालन प्रक्रिया एसओपी बनाया जाय जिसके अंतर्गत एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाया जाय जहां नये उद्यम अथवा उद्यमों को परिवर्द्धित या परिमार्जित करने को इच्छुक उद्यमियों को प्रोजेक्ट प्रपोजल तैयार करने, आवश्यक और वैधिक लाइसेंस प्राप्त करने और फिर सरकार के स्कीमों का लाभ दिलाते हुए सुलभ ऋण की व्यवस्था, कच्चे माल की उपलब्धता के लिए मदद प्राप्त हो सके।
7. एक ऑनलाइल एमएसएमई सुविधा सेल का गठन किया जाय तथा उद्यमियों की सुविधा के लिए मोबाइल एप विकसीत किया जाय।
8. जिला स्तर पर जिला उद्योग केन्द्रों में एमएसएमई के लिए एक प्रोजेक्ट एप्रुवल कमिटि बने जिसमें केन्द्र एवं राज्य सरकार के सक्षम पदाधिकारी, प्रोफेशनल वित्तीय एवं तकनीकी सलाहकार, एमएसएमई विशेषज्ञ एवं कंसल्टेन्ट तथा स्थानीय चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के प्रतिनिधि सदस्य हों। यह कमिटि उद्यमियों को प्रोजेक्ट बनाने, आवश्यक लाइसेंस लेने, ऋण दिलाने तथा बाजार उपलब्ध कराने में मदद करे।
9. एमएसएमई को प्रोत्साहन के लिए मिनिमम गवर्नेंस की नीति अपनाई जाय अर्थात उद्यमियों को उद्योग लगाने में कम से कम कागजी एवं लाइसेंस की प्रक्रिया में उलझाया जाय तथा कम से कम विभागों में दौड़ लगाना पड़े। सरकारी अधिकारी उद्योग लगने के बाद उद्यमियों को आवश्यक न्यूनतम प्रक्रियाओं को पूरा करने में मदद करे तथा आवश्यक लाइसेंस निर्गत करे न कि उद्यमियों को लाइसेंस और आर्थिक दंड एवं पेनल्टी आदि के नाम पर भयादोहन करे।
10. प्रत्येक जिले में एक-एक सूक्ष्म उद्योग पार्क का निर्माण हो। जिलों की संभावनाओं के अनुसार 25 से 50 एकड़ की जमीन पर 2000, 5000 एवं 10000 वर्गफीट के शेड का निर्माण हो जिसे माइक्रो इंडस्ट्रीज को निर्धारित प्रक्रिया के तहत उचित किराया पर आवंटिट किया जाय।
11. एमएसएमई एवं एनएसआईसी को छोटे शहरों एवं जिलों में जाकर प्रदर्शनी तथा उद्यमियों को तकनीकी एवं आवश्यक सुविधाएं मुहैया कराने का प्रावधान किया जाय।
12. देश एवं संबंधित राज्यों के पिछड़े इलाके तथा औद्योगिक रूप से अविकसीत क्षेत्र को थ्रस्त एरिया घोषित कर एमएसएमई के लिए विशेष प्रोत्साहन पैकेज और करों में छूट का प्रावधान निर्धारित किया जाय।
13. क्षेत्रवार वहां के प्रसिद्ध और पारंपरिक उद्यम अथवा प्रत्येक जिलों में एक उद्यम के कलस्टर विकास की योजना निर्धारित हो।
14. सरकारी, अर्द्धसरकारी, अंडरटेकिंग एवं सरकार द्वारा अनुदानित गैरसरकारी उपक्रमों में क्रय के लिए एमएसएमई को प्राथमिकता अनिवार्य किया जाय। इसके साथ ही पहले स्थानीय जिले, फिर राज्य और उसके बाद राष्ट्रीय स्तर के उद्यमियों/आपूर्तिकर्त्ताओं को प्राथमिकता अनिवार्य किया जाय। जिलों में आवश्यक क्रय में पहले वहां के स्थानीय उद्यमियों को ही प्राथमिकता मिले। स्थानीय आपूर्तिकर्त्ता/उद्यमियों के उपलब्ध नहीं रहने की स्थिति में ही राज्य के अन्य जिलों अथवा दूसरे राज्यों से क्रय किया जाय। इसके लिए प्रत्येक जिले के एमएसएमई उद्यमियों की ऑनलाइन लिस्टिंग सार्वजनिक रहे।
15. सरकार द्वारा अधिसूचित क्रय नीति में अग्रिम भुगतान का प्रावधान नहीं रहता है। छोटे उद्यमी पूंजी के अभाव में उत्पादन या आपूर्ति करने की क्षमता रहने के बावजूद आपूर्ति आदेश लेने में सक्षम नहीं हो पाते हैं। अतः एक राष्ट्रीय एमएसएमई क्रय नीति बने जिसमें एमएसएमई को 60 प्रतिशत अग्रिम भुगतान देने का प्रावधान किया जाय तथा शेष भुगतान आपूर्ति के पश्चात अधिकतम 30 दिनों के अंदर किये जाने का प्रावधान किया जाय।
वर्तमान में भी 30 दिनों के अंदर भुगतान का प्रावधान है लेकिन व्यावहारिकता में ऐसा होता नहीं है और न ही इसके लिए संबंधित अधिकारी पर कोई दंड निर्धारित है। अतः निर्धारित समय पर एमएसएमई को भुगतान नहीं करने वाले संबंधित एजेंसी या उपक्रम के जिम्मेदार व्यक्ति को 30 दिनों में भुगतान नहीं करने की स्थिति में पेनल्टी का प्रावधान किया जाय तथा उसे उनके वेतन से वसूलने का प्रावधान किया जाय।