Deoghar: बाबाधाम में बसंतपंचमी उत्सव को लेकर उत्साह चरम पर है. सदियों पुरानी परंपरा के तहत हजारों की तादात में मिथिलावासी देवघर पहुंच रहे है. ये सभी भक्त बसंतपंचती के दिन बाबा बैद्यनाथ पर अबीर गुलाल चढ़ाकर शिव को विवाह का न्योता देंगे. मिथिलांचल के इन कांवरियों को बाबा का तिलकहरू कहा जाता है. मिथिलांचलवासी खुद को माता गौरी के भाई मानते है. वे बाबाधाम आकर महादेव को विवाह का न्योता देते है.
अनोखी होती है कांवर
मिथिलांचल के कांवरियों की सुलतानगंज से बाबाधाम की कांवर यात्रा भी अजूबा होता है. सभी अपने कांवर की बनावट इस कदर रखते है की इसमे जरूरत के सारे सामान आ जाये. मिथिलावासी पूरे रास्ते कुछ भी खरीद कर नहीं खाते है. यहा तक की जलावन भी साथ में लेकर चलते है और जरूरत पड़ने पर रास्ते में मिलने वाली सूखी लकड़ियों का इस्तेमाल करते है.
अबीर गुलाल लगा गाया जाता है फ़ाग गीत
ठंड के बावजूद सभी खुले आकाश के नीचे रात गुजारते है. बसंत पंचती के दिन बाबा पर नव धान, आम का मंजर व शुद्ध देशी घी भी चढ़ाया जाता है. तिलकहरूए भैरव मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना कर लड्डू अर्पित करते हैं. उसके बाद आपस में एक दूसरे को अबीर-गुलाल लगा कर फाग गीत गाकर जश्न मनाते हुए अपने घर को लौट जाते है.
वैसे तो वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर सामाजिक और आर्थिक रहन-सहन से भारतीय भी अछूते नहीं है. बावजूद इसके देवघर की अद्भूत और नायाब परंपरा ने विलुप्त होती जा रही रस्म-रिवाज को असरदार बनाएं रखा है.