New Delhi: दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने वैवाहिक रेप (Matrimonial Rape Cases) के मामले पर केंद्र सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए दो हफ्ते का समय दे दिया है। जस्टिस राजीव शकधर ने इस मामले पर अगली सुनवाई 21 फरवरी को करने का आदेश दिया है।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार के ताजा हलफनामे का जिक्र करते हुए सुनवाई टालने की मांग की। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार इस मामले पर संबंधित पक्षों से राय-मशविरा कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार हर महिला की गरिमा और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। ये सरकार की पहली प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि वैवाहिक रेप के मामले पर व्यापक रुख अपनाने की जरुरत है।
मेहता ने कहा कि केंद्र सरकार का ये रुख नहीं है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 को हटाया जाए या रखा जाए। केंद्र सरकार अपना रुख संबंधित पक्षों से मशविरा के बाद ही तय करेगी। इस पर कोर्ट ने कहा कि इस मामले में दो ही रास्ते हैं । पहला कि न्यायिक फैसला और दूसरा विधायिका का हस्तक्षेप। यही वजह है कि कोर्ट केंद्र का रुख जानना चाहता है। उसके बाद कोर्ट ने केंद्र को अपना रुख रखने के लिए दो हफ्ते का समय देते हुए मामले की सुनवाई 21 फरवरी तक के लिए टालने का आदेश दिया।
सुनवाई के दौरान 4 फरवरी को एक याचिकाकर्ता के वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने वैवाहिक रेप को अपराध बनाने की मांग की थी। गोंजाल्वेस ने ब्रिटेन के लॉ कमीशन का हवाला देते हुए वैवाहिक रेप को अपराध बनाने की मांग की थी। सुनवाई के दौरान गोंजाल्वेस ने कहा था कि यौन संबंध बनाने की इच्छा पति-पत्नी में से किसी पर भी नहीं थोपी जा सकती है। उन्होंने कहा था कि यौन संबंध बनाने का अधिकार कोर्ट के जरिये भी नहीं दिया जा सकता है। ब्रिटेन के लॉ कमीशन की अनुशंसाओं का हवाला देते हुए गोंजाल्वेस ने कहा कि पति को पत्नी पर अपनी इच्छा थोपने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा था कि पति अगर अपनी पति के साथ जबरन यौन संबंध बनाता है तो वो किसी अनजान व्यक्ति द्वारा किए गए रेप से ज्यादा परेशान करने वाला है।
गोंजाल्वेस ने कहा था कि वैवाहिक रेप के मामले में सजा देना आसान कार्य नहीं है। उन्होंने कहा कि वैवाहिक रेप का साक्ष्य देना वैसे ही कठिन कार्य है जैसा कि यौन अपराधों से जुड़े दूसरे मामलों में होता है। उन्होंने कहा था कि ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि यौन संबंध चाहे सहमति से बने हों या सहमति के बिना लेकिन अधिकांश वाकये निजी स्थानों पर होते हैं। उसके चश्मदीद साक्ष्य नगण्य होते हैं। इन मामलों में साक्ष्य केवल पक्षकारों से जुड़े होते हैं, और ये पक्षकारों की विश्वसनीयता से जुड़ा होता है।
सुनवाई के दौरान 2 फरवरी को याचिकाकर्ता की वकील करुणा नंदी ने कहा था कि वैवाहिक रेप का अपवाद किसी शादीशुदा महिला की यौन इच्छा की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। उन्होंने कहा था कि इससे जुड़े अपवाद संविधान की धारा 19(1)(ए) का उल्लंघन है। नंदी ने कहा था कि वैवाहिक रेप का अपवाद यौन संबंध बनाने की किसी शादीशुदा महिला की आनंदपूर्ण हां की क्षमता को छीन लेता है। उन्होंने कहा था कि धारा 375 का अपवाद किसी शादीशुदा महिला के ना कहने के अधिकार को मान्यता नहीं देता है। ऐसा होना संविधान की धारा 19(1)(ए) का उल्लंघन है। ये अपवाद असंवैधानिक है, क्योंकि ये शादी की निजता को व्यक्तिगत निजता से ऊपर मानता है।
इसके पहले सुनवाई के दौरान इस मामले के एमिकस क्युरी रेबेका जॉन ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को बरकरार रखा जाना संवैधानिक नहीं होगा। जॉन ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए, 304बी और घरेलू हिंसा अधिनियम और अन्य नागरिक उपचार सहित विभिन्न कानूनी प्रावधान धारा 375 के तहत रेप से निपटने के लिए अपर्याप्त है।
केंद्र सरकार ने 24 जनवरी को कहा था कि वैवाहिक रेप को अपराध बनाने में परिवार के मामले के साथ-साथ महिला के सम्मान से भी जुड़ा हुआ है। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उसके लिए इस मसले पर तत्काल अपना रुख बताना संभव नहीं है। अगर केंद्र आधे मन से अपना पक्ष रखेगा तो ये नागरिकों के साथ अन्याय होगा। 17 जनवरी को भी केंद्र सरकार ने हाई कोर्ट से कहा था कि वो वैवाहिक रेप को अपराध करार देने के मामले पर अभी रुख तय नहीं किया है। मेहता ने कोर्ट से कहा था कि ये 2015 का मामला है और अगर कोर्ट केंद्र को समय दे तो वो कोर्ट को बेहतर मदद कर पाएंगे। तब जस्टिस शकधर ने कहा था कि एक बार सुनवाई शुरू हो जाती है तो हम उसे खत्म करना चाहते हैं।