ऋषिकेश
चिपको आंदोलन के प्रणेता पद्मविभूषण सुंदरलाल बहुगुणा नहीं रहे। पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा का शुक्रवार को कोरोना संक्रमण की वजह से निधन हो गया है। कोरो ना संक्रमण से खराब होने की वजह से पिछले कुछ दिनों से एम्स ऋषिकेश में उनका इलाज चल रहा था। लेकिन आज 12 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। 9 जनवरी 1927 को सिलयारा, उत्तराखंड जन्में सुंदरलाल बहुगुणा एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और चिपको आंदोलन के प्रमुख नेता थे। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए उन्होंने चिपको आंदोलन से लेकर किसान आंदोलन तक का सफर तय किया।
बता दें कि चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा का नाम पर्यावरण के क्षेत्र में बेहद इज्जत से लिया जाता है। सुन्दरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी सन 1927 को देवों की भूमि उत्तराखंड के ‘मरोडा नामक स्थान पर हुआ। प्राथमिक शिक्षा के बाद वे लाहौर चले गए और वहीं से बी.ए. किए। सन 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के सम्पर्क में आने के बाद ये दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए तथा उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना भी किए। दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन छेड़ दिया।
अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही ‘पर्वतीय नवजीवन मण्डल’ की स्थापना भी की। सन 1971 में शराब की दुकानों को खोलने से रोकने के लिए सुन्दरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन किया। चिपको आन्दोलन के कारण वे विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
सुन्दरलाल बहुगुणा के अनुसार पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना अति महत्वपूर्ण है। बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने १९८० में इनको पुरस्कृत भी किया। वही उन्हें पद्मविभूषण, पद्मश्री के अलावा कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। पर्यावरण को स्थाई सम्पति माननेवाला यह महापुरुष आगे चल कर ‘पर्यावरण गाँधी’ बन गए थे।