Deoghar: सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले देवघर जिला में पर्यटकों के लिए अपार सम्भावनाएं मौजूद हैं। बता दें कि देवघर जिला के सारठ प्रखंड क्षेत्र स्थित पथरड्डा पहाड़ भौगोलिक के साथ-साथ एक ऐतिहासिक धरोहर भी है। मान्यता है कि द्वापर युग के महाभारत कालीन में अज्ञात वास के दौरान पाण्डवों ने कुछ समय इस पहाड़ में भी अपना समय गुजारा था। जिसके कई ऐतिहासिक समाग्री आज भी मौजूद है।
जिसमे भीम के पदचिन्हों की छाप, धनुर्धर अर्जून के रथ के पहियों का छाप इस पर्वत के शिलाओं पर विद्धमान है। वक्त गुजरने के साथ कुछ चिन्ह तो विलोपित हो गया, लेकिन महाबलशाली भीम के पांव का पद चिन्ह एवं धनुर्धर अर्जून के रथ के पहिया आज भी इस पहाड़ के चट्टानों में दृष्टिगोचर है।
बताया जाता है कि भीम के पद चिन्ह की एक खासियत यह भी है कि इस चिन्ह को अकल्पनीय बना देता है। इस पद चिन्ह में 4 फिट का मनुष्य हो या 6 फिट का पद चिन्ह में बराबार समा जाता है। न बढ़ता है, न घटता है। यह वैज्ञानिकों के लिए भी रिसर्च का विषय है। वही आज भी इस पहाड़ पर द्वापरयुग के महाभारतकालीन अनेक स्मृतियां बची हुई है। एक बड़े चट्टान पर अर्जुन के रथ के पहिए का निशान अंकित है। दूसरी ओर बड़ी बड़ी गुफाएं, गर्म पानी का कुंड, तालाब, झरना जिससे निरंतर जल निकलते रहती है।
वहीं, पाडवों द्वारा अज्ञातवास के क्रम में पूजा-पाठ करने की भी स्मृतियां बची हुई है। इस पहाड़ में स्थित कुन्देश्वर माता रानी की पूजा-अर्चना का परम्परा आज भी कायम है। आज भी ग्रामीणों द्वारा बकरे की बली दी जाती है।
कभी इस पहाड़ पर विभिन्न प्रजातियों के पशु-पक्षी भी विचरण करते थे,लेकिन आज के बदलते परिवेश में वैसी हरियाली पेड़-पौधें नहीं रहे। बाघ जैसे हिंसक पशुओं का अब दर्शन भी दुर्लभ हो गया है। इस पहाड़ के संबध में अगल बगल गांवों के बूढ़े पुराने लोग बताते है कि बाघ आदि जंगली पशुओं को देखना तो यहां आम बात होती थी,लेकिन इन हिंसक पशुओं द्वारा आमलोगों या पत्ते आदि चुनने वाले लोगों को कभी कोई हानि नहीं पहुंचाता था। इस पहाड़ की गुफाओं में अनेक ऋषि-मुनियों द्वारा के तप करने की बात कही जाती है।अब वह कहानियां ही हो गयी है।
हालांकि यहां आज भी ऐसे मनोरम दृश्य अवश्य मौजूद है, जिन्हें देखने के बाद लोग उसे भूल नहीं सकता है। आज भी इस पहाड़ के चट्टानों पर भीम के पद चिन्ह, अर्जून के रथ के पहिया का चिन्ह, गुफाएं, झरना, तालाब, आदि के साथ साथ विभिन्न देवी देवताओं की स्मृतियां आज भी मौजूद है। इन देवी देवताओं का पूजा अर्चना इस पहाड़ के अगल बगल बसे हुए ग्रामीणों द्वारा पूजा अर्चना किया जाता है। पहाड़ के चट्टानों पर स्थित महाभारत कालीन स्मृतियां का दर्शन करने हेतु इस क्षेत्र के साथ साथ दूर दूर से लोग आते जाते रहते है।
इस संबंध में इस पहाड़ के तलहटियों में बसने वाले ग्रामीणों नरेश प्रसाद यादव, महेंद्र सिंह, शंकर ठाकुर,अनुज कुमार सिंह आदि के अनुसार इस पहाड़ में अज्ञातवास के दौरान पाण्डवों ने आवासन किया था। जिसका अवशेष आज भी इस पहाड़ में मौजूद है। पहाड़ के तलहटी में रहने वाले हम लोग आज भी पहाड़ ठाकुर नामक देवता का पूजा कर खेती आरम्भ करते है।साथ ही पहाड़ के चट्टान पर स्थित मां दुर्गा की रूप कुन्देश्वरी माता का भी पूजा किया जाता है। जिसमें बकरे की बलि दी जाती है।
ग्रामीण कहते हैं कि झारखंड सरकार को इस रमणीक जगह को पर्यटक स्थल में तब्दील करना चाहिए। क्योंकि इस पहाड़ को देखने के लिए वर्षों भर दूर दराज से सैलानी आते जाते रहते हैं। किसी भी दल का सरकार हो लेकिन अभी तक इस पहाड़ को पर्यटक स्थल नहीं घोषित किया गया है। जबकि इसी जिले के पर्यटक मंत्री हफीजुल हसन है।
सारठ के लोगों द्वारा बराबर इसे पर्यटक स्थल को घोषित करने की मांग किया जा रहा है।