Deoghar: कहते हैं किसी भी सरकार की कामयाबी और काहिली का मजमून देखना हो तो, सबसे पहले सड़को को देखिए। फिर सरकार की कामयाबी पर इतराना है या काहिली के पार उतर जाना है तय कीजिए। इस सड़क को देखकर देवघर जिले के ग्रामीण इलाकों में किए जा रहे विकास के तमाम दावे खोखले लगने लगते हैं।
गड्ढे में सड़क है या सड़क में गढ्ढा.. भेद कर पाना मुश्किल है। इलाके के लोगो की किस्मत भी कीचड़ में धंसी इस सड़क की तरह है जो, नेताओ के चुनावी वादों की बारिश में हिलखिला उठती हैं और चुनाव बाद जेठ की दोपहरी में पत्तों की तरह मुरझा जाती हैं।
देवघर जिले के मोहनपुर के जिस 500 की आबादी वाले आदिवासियों के जमनिया गाँव में अब तक सड़क मय्यसर नहीं उसकी नुमायींदगीं आदिवासियों के सबसे बड़े नेता हेमंत सोरेन करते है। ये सड़क देवघर जिले के बाघमारी पंचायत की सड़क है। जहां के विधायक हैं नारायण दास। जो बीजेपी की झंडाबरदारी कर दूसरी बार चुनाव जीते हैं।
इस सड़क से गुजरने का मतलब…सिवाय कीचड़ में सनने के दूसरा कोई रास्ता नहीं है। ग्रामीणों की शिकायतें बहुत है राज्य के मुखिया से लेकर गांव के मुखिया तक से… जिन्होंने इन्हें वोट लेने के नाम पर छला है।
ये कहते हैं कि न जाने इस रास्ते पर कितने हादसे हुए। कितने बीमारों की जान गई। कितनी गाड़ियां पलटी। अगर कुछ नहीं पलटा तो वह है, हमारी किस्मत। राज्य में अबतक सत्ताधीश बने नेताओ को लानत भेजते हुए यहां की आवाम कहती है कि अगली बार वोट लेने जरा आएं नेताजी इस सड़क को उपहार में दिया जायेगा। ताकि जब भी नेताओं के दिल-दिमाग पर कामयाबी का पागलपन हावी हो तो इस सड़क को देख लिया करें।
इलाके के नेता जी से बस इतनी सी ही इल्तज़ा है कि, इस तस्वीर को संजों कर रख लीजिए…यूनेस्को में भेजने के काम आएगा।