Ranchi: लगभग साढ़े तीन करोड़ की आबादी वाले राज्य झारखंड में टीबी से हर रोज औसतन चार मरीजों की मौत होती है। हालांकि वर्ष 2025 तक पूरे देश से टीबी उन्मूलन के लक्ष्य के अनुरूप झारखंड में भी व्यापक तौर पर अभियान चल रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि पिछले दो वर्षों में राज्य में टीबी मरीजों की मृत्यु दर में कोई कमी नहीं आई है। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2022 में राज्य में 1464 लोगों ने टीबी के चलते जान गंवाई, जबकि वर्ष 2021 में यह आंकड़ा 1450 था।
पूरे राज्य में फिलहाल टीबी के 31 हजार 204 मरीज हैं। इनमें सबसे ज्यादा 4403 मरीज राज्य के पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर) जिले में है। जमशेदपुर और आसपास के क्षेत्र सघन औद्योगिक इलाके हैं और इनकी वजह से फैल रहे प्रदूषण को इसकी प्रमुख वजह माना जा रहा है।
पूर्वी सिंहभूम के बाद जिन जिलों में सबसे ज्यादा मरीज हैं, उवमें पश्चिम सिंहभूम यानी चाईबासा जिले में 2053, साहिबगंज में 2044, बोकारो में 1865, गिरिडीह में 1773, पलामू में 1659 और धनबाद में 1588 मरीज चिन्हित किए गए हैं। आज यानी 2 मार्च से आगामी 13 अप्रैल तक राज्य में मरीजों की पहचान के लिए नए सिरे से सघन अभियान शुरू किया जाएगा। सहिया और स्वास्थ्यकर्मी राज्य में घर-घर जाकर मरीजों की पहचान करेंगे।
राज्य क्षय रोग, प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन केंद्र के पास मौजूद आंकड़ों के मुताबिक राज्य में कुल 31 हजार 204 मरीजों में से 22 हजार 763 मरीजों को निक्षय मित्र योजना के तहत गोद लिया गया है। निक्षय मित्र केंद्र की योजना है, जिसके तहत गोद लिए गए मरीजों को हर महीने पौष्टिक आहार का फूड बास्केट मुहैया कराया जाता है।
फूड बास्केट में चना, दाल, गुड़, मूंगफली और तेल आदि खाद्य पदार्थ शामिल रहते हैं। टीबी मरीजों को कोई भी व्यक्ति गोद ले सकता है। गोद लेने वाले व्यक्ति या संस्था प्रति मरीज के एवज में 500 रुपए का अर्थदान करते हैं। यह राशि मरीज के फूड बास्केट पर खर्च की जाती है।
झारखंड के राज्यपाल के अलावा कई मंत्रियों, टाटा स्टील, सीसीएल, बीसीसीएल, सरकारी अधिकारियों और कई संस्थाओं ने मरीजों को गोद ले रखा है। (IANS)