Khunti: आज से लगभग चार साल पहले तक जिस लेमन ग्रास का नाम भी खूंटी जिले के अधिकतर लोग जानते तक नहीं थे, वही लेमन ग्रास की खेती अब जिले के लोगों के लिए वरदान साबित हो रही है। औषधीय पौधों में शुमार नींबू घास या लेमन ग्रास की खेती खूंटी जिले के किसान लोगों के लिए काफी लाभकारी साबित हो रही है। यही कारण है कि आज खूंटी ही नहीं, झारखंड के कई जिलों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है।
वैसे तो खूंटी जिले में लेमन ग्रास की खेती का इतिहास पुराना नहीं है। इसकी खेती की शुरूआत जिले में 2019-20 में शुरू हुई थी। चार वर्ष के बाद ही अब जिले में लगभग चार सौ एकड़ से अधिक खेत में नींबू घास की खेती की जा रही है। नींबू घास की खेती में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से अधिक है।
किसान बताते हैं कि पहले उन्हें लेमन ग्रास की खेती की जानकारी नहीं थी, लेकिन जिला प्रशासन और सेवा वेलफेयर सोसायटी ने उन्हें इसका प्रशिक्षण दिया। तीन साल पहले खूंटी जिले में इसकी खेती प्रायोगिक रूप से की गयी थी, पर इससे होने वाले मुनाफे को देखते हुए अन्य किसान भी इसकी ओर आकर्षित हुए और खेती करने लगे। किसान बताते हैं कि एक एकड़ खेत में लेमन ग्रास की खेती से उन्हें दो से तीन लाख रुपये की आमदनी आसानी से हो जाती है। जिन खेतों में पहले अफीम की खेती की जाती थी, वहां अब नींबू घास उगाकर किसान अच्छी आमदनी प्राप्त कर जीवन स्तर बेहतर बना रहे हैं। किसान बताते हैं कि नींबू घास की मांग भी काफी अच्छी है। इसकी मांग लेमन ग्रास की पत्तियों और इससे निकलने वाले तेल के कारण है। बाजार में लेमन ग्रास तेल की कीमत 15 सौ से दो हजार रुपये प्रति लीटर है।
बताया जाता है कि पांच क्विंटल लेमन ग्राम से 75 से 80 किलोग्राम तेल निकलता है। मात्र चार महीने में फसल तैयार हो जाती है। खूंटी जिले में तीन जगहों मुरहू प्रखंड के सुरूंदा, अनिगड़ा और कपरिया में लेमन ग्रास से तेल निकालने के लिए आसवन केंद्र भी स्थापित किये गये हैं, जहां तेल के लिए मशीनें लगायी गयी हैं।
अफीम की खेती से तत्कालिक लाभ, पर खेत बर्बाद : अजय शर्मा
लेमन ग्रास की खेती के जानकार और सेवा वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष अजय शर्मा बताते हैं कि अफीम की खेती से किसानों को तत्कालिक कुछ लाभ तो हो जाता था, पर खेत बर्बाद हो रहे थे। अफीम की खेती पर रोक के बावजूद किसान मजबूरी में इसकी खेती करते थे और मुनाफा का 90 फीसदी हिस्सा दलाल ले जाते थे। जिला प्रशासन के सहयोग से सोसायटी के कार्यकर्ता ग्रामसभाओं में जाकर ग्रामीणों के बीच जागरुकता अभियान चलाने लगे और आदिवासियों को अफीम के विकल्प के रूप में औषधीय और सगंध पौधों की खेती करने के लिए प्रेरित करने लगे। जिला प्रशासन का इसमें भरपूर सहयोग मिला।
अभियान का शुभारंभ राज्य के तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा ने 15 जून 2019 को कुंजला, खूंटी में आयोजित सेमिनार में किया था। नीलकंठ सियंह मुंडा ने भी समाज के लोगों से अपील की थी कि कोई ऐसी खेती न करें, जिससे समाज की बदनामी और बर्बादी हो। सेमिनार में जिले के सभी प्रखंडों से आये प्रतिभागियों ने इस बात को स्वीकार किया था कि अफीम की खेती से समाज पर बुरा असर पड़ रहा है।
बिरसा कृषि विश्वविद्याल के विशेषज्ञों ने दिया था प्रशिक्षण
सेमिनार के तुरंत बाद लेमन ग्रास की खेती का प्रशिक्षण कार्यकम का आयोजन किया गया, जिसमें बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की सुमन बारला और बरदानी लकड़ा ने किसानों को प्रशिक्षण दिया। भुवनेश्वर से आये मोटिवेशनल स्पीकर संतोष देव ठाकुर ने किसानों के साथ जानकारी साझा की। साथ ही संस्था के अध्यक्ष अजय शर्मा, सचिव सबिता संगा, उमेश लाल, देवा हस्सा, संदीप कुमार और सुनील ठाकुर किसानों को खेती के लिए लगातार जागरूक करते रहे। इसका परिणाम है कि कोयोंगसार, लीलीकोटो, बिशुनपुर, गनगीरा, तपकरा, कोजड़ोंग, बोयसाटोली, जरटोनांग, बिंदा, टेंगरिया, बाड़ीटोला, ईट्टी, चालोम, कोटना, भंडरा, भूत, मारंगहादा समेत कई अन्य गांवों की गांवों में लेमन ग्रामस की फसले लहलहा रही हैं। जानकारी के अनुसार झारखंड का सबसे बेहतर आसवन केंद्र अकांक्षी जिला मद से मुरहू प्रखंड के सुरूंदा गांव में लगाया गया है। इसके अलावा कपरिया और अनिगड़ा में भी आसवन केंद्र लगाये गए हैं।
लेमन ग्रास सेहत के लिए फायदेमंद
लेमन ग्रास को सेहत के लिए काफी लाभकारी माना जाता है। विशेषज्ञों के मानें, तो आज कई तरह की दवाइयों में इसका उपयोग किया जा रहा है। इसमें एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-इन्फ्लेमेटरी और एंटी-फंगल जैसे गुण पाए जाते हैं। दवाइयों के अलावा कई तरह की अन्य वस्तुओं जैसे कॉस्मेटिक्स और डिटरजेंट्स आदि बनाने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। लेमन ग्रास को सेहत के लिए वरदान की तरह माना जाता है।