शंभु नाथ चौधरी
Ranchi/Sahibgang: हिमालय से भी 500 करोड़ वर्ष पुरानी झारखंड स्थित राजमहल की पहाड़ियों (Rajmahal Hills) और इसकी तलहटी में जुरासिक काल (jurassic period) के अनगिनत जीवाश्म (Fossils)मौजूद हैं। भूगर्भ शास्त्रियों और पुरा-वनस्पति (Paleobotany) विज्ञानियों ने इन फॉसिल्स की उम्र 68 से 150 मिलियन वर्ष आंकी है। लखनऊ स्थित नेशनल बॉटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट की ओर से एक प्रोजेक्ट के लिए हाल में किए गए रिसर्च के नतीजों से रहस्य की कई नई परतें खुलने की उम्मीद है।
इस रिसर्च प्रोजेक्ट में सहभागी रहे साहिबगंज स्थित पीजी कालेज में भूगर्भशास्त्र के प्राध्यापक डॉक्टर रंजीत प्रसाद सिंह के मुताबिक राजमहल की पहाड़ियां एक बड़े भू-गर्भीय उथल-पुथल से बनी हैं। शोध और अध्ययन के संकेत यही हैं कि यह एक बड़ा समुद्रीय प्रक्षेत्र था और ज्वालामुखी विस्फोट की कई घटनाओं ने यहां के जियोलॉजिकल स्ट्रक्च र और इकोलॉजी को बदल डाला।
नेशनल बॉटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट की टीम ने डेढ़ साल पहले यहां दूधकोल नामक स्थान पर जिन फॉसिल्स की तलाश की थी, उनपर जुरासिक काल के पेड़ों की पत्तियों की छाप (leaf impression) है। इसके 150 से लेकर 200 मिलियन वर्ष पुराने होने का अनुमान है। रिसर्च का एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह भी है कि फॉसिल्स उन पेड़ों के हैं, जो कभी शाकाहारी डायनासोर का भोजन रहे होंगे।
इस इलाके में मौजूद फॉसिल्स दुनिया भर में जुरासिक काल पर रिसर्च कर रहे विज्ञानियों की दिलचस्पी का केंद्र हैं। देश-विदेश की कई टीमें सालों भर यहां अध्ययन के लिए पहुंचती रहती हैं। हाल में न्यूजीलैंड की एक रिसर्च टीम इस इलाके में कई रोज खाक छानने के बाद लौटी है। कुछ साल पहले जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) से जुड़े वैज्ञानिकों को यहां के कटघर गांव में अंडानुमा जीवाश्म मिले थे, जो रेप्टाइल्स की तरह थे।
साहिबगंज, सोनझाड़ी और पाकुड़ जिले के महाराजपुर, तारपहाड़, गरमी पहाड़ बड़हारवा इलाकों में भी बड़ी संख्या में फॉसिल्स मिल चुके हैं। कार्बन डेटिंग में यह तथ्य साफ हो चुका है कि राजमहल की पहाड़ियां हिमालय से 500 करोड़ वर्ष पुरानी हैं। ये पहाड़ियां लगभग 26 सौ वर्ग किलोमीटर में फैली है और इसकी सर्वाधिक ऊंचाई 567 मीटर है।
दरअसल इस इलाके में मौजूद जुरासिक काल के फॉसिल्स को सबसे पहले भारतीय पुरा-वनस्पति विज्ञान यानी इंडियन पैलियोबॉटनी के जनकप्रो. बीरबल साहनी ने तलाशा था। 1935 से 1945 के बीच फॉसिल्स की तलाश और उनपर रिसर्च में यहां दर्जनों बार आये थे और पहाड़ियों के बीच काफी लंबा वक्त गुजारा था। उन्होंने जो फॉसिल्स तलाशे, उनके कई नमूने लखनऊ स्थित बीरबल साहनी संस्थान में संरक्षित करके रखे गये हैं, जो दुनिया भर के भूगर्भशास्त्रियों के लिए रिसर्च का विषय है।
बीरबल साहनी ने यहां एक फॉसिल ‘पेंटोजाइली’ की खोज की थी। वहां उन्होंने पौधों की कुछ नई प्रजातियों की खोज की। इनमें होमोजाइलों राजमहलिंस, राज महाल्या पाराडोरा और विलियम सोनिया शिवारडायना इत्यादि महत्वपूर्ण हैं। उनके महत्वपूर्ण रिसर्च को देखते हुए जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने राजमहल की पहाड़ियों को ‘भूवैज्ञानिक विरासत स्थल’ का दर्जा दे रखा है।
राजमहल पर कई रिसर्च प्रोजेक्ट का हिस्सा रहे भूगर्भशास्त्री डॉ रंजीत प्रसाद सिंह ने आईएएनएस से कहा कि अगर पूरे इलाके में वैज्ञानिक तरीके से खुदाई की जाये तो डायनासोरों के अस्तित्व से जुड़े कई रहस्यों को डिकोड किया जा सकता है। वह कहते हैं कि यहां सरकार को एक संसाधन संपन्न रिसर्च सेंटर की स्थापना करनी चाहिए ताकि यहां के पत्थरों में दर्ज इतिहास को दुनिया को नई रोशनी के साथ सामने लाया जा सके।
सबसे अफसोस की बात यह रही कि इसे ‘भूवैज्ञानिक विरासत स्थल’ का दर्जा जाने के बावजूद सरकारों ने इनके संरक्षण के प्रति अनदेखी का रवैया रखा। इसी का नतीजा है कि राजमहल पहाड़ी श्रृंखला मेंगदवा-नासा, अमजोला, पंगड़ो, गुरमी, बोरना, धोकुटी, बेकचुरी, तेलियागड़ी, बांसकोला, गड़ी, सुंदरपहाड़ी, मोराकुट्टीपहाड़ियों का वजूद अवैध रूप से पत्थरों की माइनिंग करनेवाले माफिया तत्वों ने मिटा डाला।
हालांकि कुछ साल पहले झारखंड सरकार ने फॉसिल्स को संरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। साहेबगंज के मंडरो में सरकार ने 16 करोड़ की लागत से फॉसिल्स पार्क का निर्माण कराया है। इसका काम अब लगभग आखिरी दौर में है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद इस प्रोजेक्ट में दिलचस्पी ले रहे हैं। उन्होंने पिछले महीने झारखंड राज्य वन्यजीव बोर्ड की बैठक में कहा था कि राजमहल में मौजूद फॉसिल्स कोई मामूली पत्थर नहीं हैं, बल्कि इतिहास के जीवंत पन्ने हैं और उन्हें संरक्षित करने में सरकार कोई कसर बाकी नहीं रखेगी।