New Delhi: 2002 के गोधरा ट्रेन अग्निकांड के 27 दोषियों की जमानत पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में गुजरात सरकार के लिए पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपराध को जघन्य बताते हुए जमानत की मांग का विरोध किया। सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों के नाम, अपराध में उनकी भूमिका और जेल में बिताए गए समय संबंधी चार्ट कोर्ट में दाखिल करने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई 3 हफ्ते बाद होगी।
30 जनवरी को सुनवाई के दौरान दोषियों की ओर से कहा गया था कि उनका दोष सिर्फ यही था कि इन्होंने सिर्फ पत्थरबाजी की लेकिन वे उम्रकैद की सजा भुगत रहे हैं। गुजरात सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि सिर्फ पत्थरबाजी ही नहीं, इन लोगों ने ट्रेन की बोगी में आग भी लगाई थी।
पहले की सुनवाई के दौरान मेहता ने कोर्ट को आश्वस्त किया था कि वह हर दोषी की भूमिका की जांच करेंगे कि क्या वाकई इनमें से कुछ लोगों को जमानत पर रिहा किया जा सकता है। 15 दिसंबर, 2022 को कोर्ट ने इस मामले के दोषी फारुक को जमानत दी थी। कोर्ट ने फारुक के 17 साल से जेल में होने के आधार पर जमानत दी थी।
27 फरवरी, 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 बोगी में आग लगाई गई थी, जिसमें 58 लोगों की मौत हो गई थी। साबरमती एक्सप्रेस अयोध्या से कारसेवकों को लेकर आ रही थी। गोधरा की इस घटना के बाद गुजरात में सांप्रदायिक दंगे हुए थे।
इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने 2011 में 31 लोगों को दोषी करार दिया था। इनमें से 11 को फांसी की सजा और 20 को उम्रकैद की सजा हुई थी। इस मामले में 63 अन्य आरोपितों को बरी कर दिया गया था। 2017 में गुजरात हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से फांसी की सजा पाये 11 दोषियों की सजा कम करते हुए उम्रकैद में तब्दील कर दी थी और 20 को मिली उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा था।