सारण: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की महात्वाकांक्षी योजना में से एक प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना में बिहार के मंत्री और अधिकारी पलीता लगा रहे हैं।
पिछली सरकार में नगर विकास एवं आवास विभाग के मंत्री रहे सुरेश शर्मा ने इसके लिए पहल भी की थी। उन्होंने एक नियम बिहार मंत्रिपरिषद को भेजा था,जिसमें उन्होंने प्रावधान किया था कि जो परिवार जिस होल्डिंग पर 30 या उससे अधिक वर्षों से रह रहा हो उसे उस जमीन का मालिकाना हक नहीं देते हुए इस योजना यानी प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना का लाभ दिया जाए। लेकिन मंत्रिपरिषद ने दो बार फाइल को वापस कर दिया ।
मंत्रिपरिषद का कहना है कि यह सरकारी जमीन है इस पर हम आवास निर्माण की अनुमति नहीं दे सकते। तो क्या बिहार मंत्री परिषद के कारण प्रधानमंत्री मोदी का सपना अधूरा रह जाएगा?ग्रामीण क्षेत्रों में तो पहले से इंदिरा आवास योजना चल रही है जिसमें गरीबों को लाभ मिला है। आवास बना है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आने के बाद उन्होंने देखा कि सबसे ज्यादा शहरी गरीब परेशान है। उनके पास न ही जमीन जायदाद है और ना खेती का साधन है। ये सिर्फ मजदूर हैं उनके पास छत भी नहीं है। कच्चे फुस और कर्कट के मकान में रहने वाले शहरी गरीब लोगों के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने सपना देखा कि सबके सर के ऊपर पक्का छत हो।
बिहार में जितने भी पुराने नगर निकाय हैं उसमें बहुत सारी जमीन का सर्वे नहीं हुआ है। यानी वह नगर पालिका की जमीन है। सरकार के अधिकारियों अनुसार उसमें वर्षों से रह रहे लोगों के पास दस्तावेज नहीं है।हालांकि उस जमीन पर वे लोग करीब सैकड़ों सालो से रह रहे हैं और नगर पालिका के द्वारा उनका होल्डिंग टैक्स रसीद भी काटा जाता है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत यह नियम है कि जिसके पास जमीन का दस्तावेज होगा उसी को आवास दिया जाएगा। लैंड पोजिशन सर्टिफीकेट (LPC) का, जो अंचल कार्यालय से निर्गत होता है वह उसे ही निर्गत होगा जिसके पास खाता सर्वे की जमीन होगी। प्रधानमंत्री आवास योजना जिले में परवान नहीं चढ़ पा रही है।