Itawah: उत्तर प्रदेश के इटावा में चंबल क्षेत्र के खूंखार दस्यु सरगना जगजीवन परिहार ने 17 साल पूर्व चौरेला गांव में ऐसी खूनी होली खेली थी, जिसे आज भी गांव वाले भूल नहीं पाये हैं। उन दिन प्रदेश में डाकुओं का आंतक था और उनमें चंबल के डकैतों की दहशत कई राज्योें तक फैली हुइ थी। इस घटना की गूंज लखनऊ तक पहुंची थी।
इटावा में थाना बिठौली क्षेत्र के अंतर्गत चौरेला गांव में 16 मार्च 2006 को हुई घटना ने हर किसी को झंकझोर कर रखा दिया था। चूंकि मुलायम सिंह यादव उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और वे होली के दिन अपने गांव सैफई में होलिका समारोह में शामिल होने के लिए आये थे। पुलिस के बड़े अफसर भी मुख्यमंत्री के जनपद में होने की वजह से आये थे। जैसे उनको दस्यु सरगना जगजीवन परिहार के द्वारा इस खूनी होली की खबर लगी, वैसे ही अधिकारियों ने घटनास्थल की ओर पीड़ितों की मदद के लिए दौड़ लगा दी।
चंबल के खूखांर डाकुओं में शुमार रहे जगजीवन परिहार के अपने गांव चौरेला के आसपास के कई गांव और जनपदों में खासी दहशत और आंतक था। जगजीवन के अलावा उसके गिरोह के दूसरे डाकुओं का खात्मा हो जाने के बाद आसपास के गांव के लोगों में भय समाप्त हो रहा था। इस बीच 16 मार्च 2006 को रंगों की होली को खून की होली में तब्दील कर दिया था। यहां उस रात जगजीवन गिरोह के डकैतों ने आंतक मचाते हुये चौरेला गांव में अपनी ही जाति के जनवेद सिंह को जिंदा होली में जला दिया। उसे जलाने के बाद ललुपुरा गांव में चढ़ाई कर दी थी। वहां करन सिंह को बातचीत के नाम पर गांव में बने तालाब के पास बुलाया और मौत के घाट उतार दिया था। इतने में भी डाकुओं को सुकून नहीं मिला तो पुरारामप्रसाद में सो रहे दलित महेश को गोली मार कर मौत की नींद सुला दिया था। इन सभी को मुखबिरी के शक में डाकुओं ने मौत के घाट उतारा था।
चौरैला गांव के रघुपत सिंह बताते हैं कि 17 साल पूर्व होली वाली रात को दस्यु जगजीवन परिहार गिरोह के हथियार बंद डाकुओं ने गांव में धावा बोला। उस वक्त तक किसी को भी इस बात की उम्मीद नहीं थी कि डाकुओं का दल गांव में खूनी वारदात करने के इरादे से आए हैं। क्योंकि अमूमन जगजीवन परिहार का गिरोह गांव के आसपास आता रहता था, लेकिन होली वाली रात जगजीवन के गैंग ने सबसे पहले उनके घर पर गोलीबारी की। डाकुओं ने उनके घर पर बेहिसाब गोलियां दागी। डाकुओं का इरादा उनकी हत्या करना था, लेकिन डाकू दल घर का दरवाजा नहीं तोड पाये, इससे वो और उनका परिवार बच गया। बेशक वो बच गए लेकिन उसके और दूसरे गांव के तीन लोगों को डाकुओं ने मौत के घाट उतार दिया। दो अन्य लोगों को गोली मार कर मरणासन्न कर दिया गया था। रघुपत बताते हैं कि आज भी उस खूनी होली याद से जहन सिहर उठता है।
इस सनसनीखेज घटना की गूंज पूरे देश में सुनाई दी। इससे पहले चंबल इलाके में होली पर्व में कभी भी ऐसा खूनी खेल नहीं खेला गया था। इस कांड की वजह से सरकारी स्कूलों में पुलिस और पीएसी के जवानों को कैंप कराना पडा था। क्षेत्र के सरकारी स्कूल अब डाकुओं के आंतक से पूरी तरह से मुक्ति पा चुके हैं। इलाके में अब कई प्राथमिक स्कूल खुल चुके हैं। इसके साथ ही कई जूनियर हाईस्कूल भी खोले जा रहे हैं। जिनमें गांव के मासूम बच्चे पढ़ने के लिये आते हैं और पूरे समय रहकर करके शिक्षकों से सीख लेते हैं।
ललूपुरा गांव के बृजेश कुमार बताते हैं कि डाकू जगजीवन के मारे जाने के बाद पूरी तरह से गांव में सुकून है। उस समय गांव में कोई रिश्तेदार नहीं आता था। लोग अपने घरों के बजाए दूसरे घरों में रात बैठ कर काटा करते थे। उस समय डाकुओं का इतना आंतक था कि लोगों की नींद उड़ी रहती थी। पहले किसान खेत पर जाकर रखवाली करने में भी डरते थे। आज वे अपनी फसलों की भी रखवाली आसानी से करते हैं।
स्कूल का चपरासी बन गया आतंक का पर्याय
कभी स्कूल में चपरासी रहा जगजीवन एक वक्त चंबल में आंतक का खासा नाम बन गया था। चंबल घाटी के कुख्यात दस्यु सरगना के रूप में आंतक मचाने वाले जगजीवन परिहार ने अपने ही गांव चौरेला गांव के अपने पड़ोसी उमाशंकर दुबे की छह मई 2002 को करीब 11 लोगों के साथ मिल कर धारदार हथियार से काटकर हत्या कर दी थी। डाकू उसका सिर और दोनों हाथ काट कर अपने साथ ले गये थे। उमाशंकर दुबे की हत्या के बाद डाकू जगजीवन को लेकर एक चर्चा भी बीहडों में प्रचारित हुई थी। इनमें उसके ब्राह्मण जाति के एक सैकड़ा लोगों के सिर कलम करने का एलान किया है, लेकिन इस बात की पुष्टि उसके मारे जाने तक भी नहीं हो सकी। दस्यु जगजीवन अपना प्रण पूरा कर पाता, उससे पहले ही मध्यप्रदेश में पुलिस ने मुठभेड़ में जगजीवन समेत गिरोह के आठ डकैतों का खात्मा कर दिया था।
पुलिस ने पहली बार घोषित किया पांच हजार का इनाम
इटावा पुलिस ने इसी कांड के बाद जगजीवन को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिये पांच हजार का इनाम घोषित किया था। जगजीवन परिहार चंबल घाटी का नामी डकैत बन गया था। एक समय जगजीवन परिहार के गिरोह पर उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान पुलिस ने करीब आठ लाख का इनाम घोषित किया था।
चौरेला कांड के रूप में कुख्यात यह दर्दनाक ऐसा वाक्या है जिसे आसानी से भुलाया नहीं जा सकता है। एक शख्स को होली में जिंदा जला कर दो अन्य को मौत के घाट उतार दिये जाने का यह वाक्या चौरेला गांव के लोगों के जहन में आज भी घूमता हुआ दिख जाता है।
एमपी पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया
14 मार्च 2007 को सरगना जगजीवन परिहार और उसके गिरोह के पांच डाकुओं को मध्यप्रदेश के मुरैना एवं भिंड जिला पुलिस ने संयुक्त आपरेशन में मार गिराया। गढ़िया गांव में लगभग 18 घंटे चली मुठभेड़ में जहां एक पुलिस अफसर शहीद हुआ, वहीं पांच पुलिसकर्मी घायल हुए थे।
आठ लाख का था इनामी
मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में आतंक का पर्याय बन चुके करीब आठ लाख रुपये के इनामी डकैत जगजीवन परिहार गिरोह का मुठभेड़ में खात्मा हुआ, साथ ही पनाह देने वाला ग्रामीण हीरा सिंह परिहार भी मारा गया। जगजीवन परिहार और उसके गैंग के डाकुओं के मारे जाने के बाद चंबल अब पूरी तरह से शांति का माहौल बना हुआ है।