रांची।
मौसम के मिजाज के साथ-साथ इन दिनों देश का सियासी पारा भी चढ़ा हुआ है। झारखंड में भी कई दिग्गजों की साख इस लोकसभा चुनाव के रिजल्ट पर टिकी हुई है। लोकसभा चुनाव आजसू पार्टी का भविष्य भी तय करेगा। इस चुनाव में आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है।
वजह यह है कि गिरिडीह किला फतह करने के लिए आजसू को कई चक्रव्यूह भेदना की जुगत लगानी पड़ी है।क्योंकि गिरिडीह में आजसू की जमीन पूरी तरह से तैयार नहीं थी। पार्टी की गतिविधियां भी ज्यादा नहीं रही है। ऐसे में भाजपा के कार्यकर्ताओं और संघ और संघ से जुड़े संगठनों के सहारे आजसू पार्टी चुनाव मैदान में उतरी और एसडीए प्रत्याशी चंद्रप्रकाश को खूब दम खम से लड़ाया।
हालांकि विरोधियों के अलावे आजसू प्रत्याशी को अपने सहयोगी दल के ही एक बड़े नेता के भीतरघात का भी सामना करना पड़ा। खैर, चुनाव तो निकल गया। अब परिणाम की बारी है। परिणाम निकलने की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। अगर परिणाम अनुकूल न रहा तो निश्चित ही पार्टी की जमीन खिसक जाएगी और इसका असर सीधे तौर पर विधानसभा चुनाव में भी पड़ेगा।
अगर आजसू एनडीए टीम के साथ विधानसभा चुनाव में उतरी तो सीट शेयरिंग में बारगेन की स्थिति में भी पार्टी मजबूती से खड़ी नही हो पाएगी।दरअसल, स्वयं आजसू सुप्रीमो लगातार तीन चुनाव हार चुके हैं। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में आजसू सुप्रीमो रांची सीट से हार गये थे। फिर विधानसभा चुनाव में अपनी परंपरागत सीट सिल्ली को नहीं बचा पाये। इसी सीट पर फिर उपचुनाव हुआ, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
इधर विधानसभा के तीन उपचुनाव में पार्टी को करारी हार का समाना भी करना पड़ा था। लोहरदगा, गोमिया और सिल्ली सीट हाथ से निकल गयी।तमाड़ से आजसू विधायक विकास मुंडा ने भी पार्टी से किनारा कर लिया। ऐसी स्थिति में यह लोकसभा चुनाव आजसू पार्टी के लिए वजूद बचने की जंग जैसी है। पार्टी की साख भी लोकसभा चुनाव पर टिकी हुई है।निश्चित रूप से गिरिडीह सीट पार्टी और सुप्रीमो दोनो के लिए संजीविनी की तरह है।फतह मिली तो विधान सभा में जोश दोगुना होगा और हार हुई तो अस्तित्व संकट से इनकार नही किया जा सकता।