गुमलाः
सूबे के सरकारी अस्पतालों की स्वास्थ्य सुविधा एक बार फिर सवालों के घेरे में हैं. सदर अस्पताल गुमला में ईलाज के अभाव में बच्चे की मौत, मौत के बाद परिजनों को एम्बुलेंस का न मिलना और पिता द्वारा अपने जीगर के टुकरे के शव को कंधे पर ढोकर ले जाना अस्पताल प्रबंधन पर कई सवाल खड़े करता है.
गुमला जिला के बसिया प्रखंड क्षेत्र के ममरला गांव में आठ वर्षीय सुमन सिंह को तेज़ बुखार आने पर सुमन के पिता करण सिंह अपने बेटे को ईलाज के लिए बसिया रेफरल अस्पताल ले गये. जहां से अस्पताल द्वारा सिसई रेफर कर दिया गया. सिसई पहुंचने के बाद वहां भी बच्चे को ईलाज नहीं मिला और उसे गुमला सदर अस्पताल भेज दिया गया. बच्चे की बिगड़ती हालत देख परिजन भागे-भागे गुमला सदर अस्पताल बच्चे को लेकर पहुंचे. लेकिन, यहां भी न तो सही ईलाज और न ही अस्पताल द्वारा दवा मुहैय्या कराया गया. जिस वजह से तेज़ बुखार से तड़प रहे मासूम सुमन ने दम तोड़ दिया.
सुमन के पिता करण सिंह की आर्थिक हालत उतनी मजबूत नहीं है कि अपने बच्चे को इलाज के लिए किसी निजी अस्पताल में ले जाते. हद तो तब हो गयी, जब मासूम का शव ले जाने के लिए अस्पताल द्वारा एम्बुलेंस तक नहीं दिया गया. और पिता अपने बच्चे के मृत शरीर को कंधे पर उठाकर घर ले गये.
बच्चे को सही ईलाज और मौत के बाद एम्बुलेंस नहीं देने पर जब गुमला सिविल सर्जन डॉ जे पी साँगा से सवाल पुछे गये तो उन्होंने जवाब दिया कि यह मीडिया का तमाशा है. सिविल सर्जन का कहना है कि बच्चा गंभीर रूप से मलेरिया की चपेट में था. उसकी मौत के बाद प्रबंधन से परिजनों ने एम्बुलेंस की डिमांड ही नहीं की. जबकि शव को कंधे पर लिये पिता ने साफ कहा कि गाड़ी मांगे जाने पर अस्पताल प्रबंधन से जवाब मिला कि एम्बुलेंस उपलब्ध ही नहीं है.
ये सारी घटना उस वक्त हुई, जब सूबे के स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चन्द्रवंशी गुमला के विकास भवन में एक कार्यक्रम में शिरकत कर रहे थे. जहां जिले के तमाम बड़े अधिकारी मौजूद थे.
वहीं इस पूरे मामले पर सीएम सख्त दिखे. बच्चे की मौत के बाद एम्बुलेंस नहीं मिलने की सूचना मिलते ही सीएम रघुवर दास ने ट्वीट कर कहा कि यह घटना बर्दाश्त से बाहर है. प्रशासन को मुख्यमंत्री ने 24 घंटे के अंदर रिपोर्ट देने और कार्रवाई करने के निर्देश दिये हैं.