Nachni / Pithoragarh: नौ हजार फीट की ऊंचाई पर नामिक ग्लेशियर के निकट स्थित नामिक गांव में अलखनाथ पूजा सम्पन्न हो गई। खुदा पूजा के नाम से जानी जाने वाली इस पूजा में भगवान अलखनाथ की पूजा होती है। अलखनाथ पूजा का सौ दीपक जला कर समापन हुआ। अपनी विविधता के लिए परिचित मुनस्यारी की एक विशेषता दर्जनों गांवों में तीसरे, पांचवें, सातवें विषम वर्षो में आयोजित होने वाली खुदा पूजा है। इस पूजा का नाम तो खुदा पूजा है परंतु पूजा भगवान शंकर के अलखनाथ स्वरूप की होती है।
नाम पड़ा खुदा पूजा
स्थानीय लोगों के अनुसार मुगल काल में पूजा के बारे में जब पूछा गया तो स्थानीय लोगों ने पूजा स्थल ढक कर खुदा की पूजा करने की बात कही। इसके चलते इस पूजा को खुदा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। तभी से भगवान अलखनाथ की पूजा आज भी छिप कर की जाती है। ग्रामीण मकान के सबसे ऊपरी मंजिल में या फिर किसी पुराने मकान में पूजा करते हैं। यह पूजा विशेष पूजा होती है।
पूरियों का लगता है भोग
भगवान अलखनाथ को पूरियों का भोग लगाया जाता है। इस पूजा का विशेष महत्व है। सड़क मार्ग से 27 किमी की दूरी पर स्थित संचार, चिकित्सा सुविधा से वंचित बागेश्वर जिले की सीमा से लगे ऊंचाई वाले नामिक गांव में अलखनाथ पूजा पूरे धूमधाम के साथ मनाई गई। गांव से बाहर रहने वाले सभी ग्रामीण पूजा के लिए गांव पहुंचे। इस दौरान पूजा के अलावा झोड़ा, चांचरी व अन्य लोक परंपराओं का आयोजन किया गया। दुर्गम नामिक गांव में लोक संस्कृति के भव्य दर्शन हुए। पूजा का समापन भगवान अलखनाथ के नाम पर सौ दीपक जला कर किया गया। ग्राम प्रधान तुलसी देवी ने बताया कि उनका गांव अति दुर्गम है। यहां अभी तक सुविधाओं का अभाव है। सड़क नहीं होने से सरकारी कर्मचारी, अधिकारी 27 किमी पैदल चल कर नहीं आते हैं। ग्रामीण अपनी संस्कृति और आस्था को यथावत रखे हैं। गांव से बाहर नौकरी, पेशा करने वाले सभी ग्रामीण इस पूजा में शामिल हुए।