आचार्य भरत दुबे
आषाढ़ शुल्क एकादशी को देव शयनी एकादशी कहते हैं जो इस बार 20 जुलाई मंगलवार को है। इसे हरि शयनी एकादशी भी कहते हैं। इस दिन से भगवान विष्णु का शयन काल शुरू हो जाता है। देवशयनी एकादशी के चार माह के बाद भगवान विष्णु प्रबोधिनी एकादशी के दिन जागेंगे।
इन चार महीने में कोई शुभ कार्य नहीं होंगे, इसलिए तपस्वी जन एवं धार्मिक लोग भी इन दिनों एक स्थान पर रहकर तप करते हैं। साधु इन दिनों जमीन पर सोना पसंद करते हैं और ज्यादातर मौन अवस्था में रहते हैं। वहीं शालीग्राम के रूप में ब्रजवासी भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। चातुर्मास या चौमासा की शुरुआत भी इसी दिन से हो जाती है और इसके साथ ही विवाह संस्कार, मुंडन, गृह प्रवेश और इसी प्रकार के अन्य शुभ कार्य बंद हो जाएंगे।
आचार्य भरत दुबे ने बताया कि देवशयनी एकादशी प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा के तुरन्त बाद आती है और अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत जून अथवा जुलाई के महीने में आता है। चतुर्मास जो कि हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार चार महीने का आत्मसंयम काल है, देवशयनी एकादशी से प्रारम्भ हो जाता है। इस शुभ दिन को पद्मा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
देवशयनी एकादशी का महत्व
आचार्य भरत दुबे ने कहा कि इसके व्रत करने से विष्णु भगवान प्रसन्न होते हैं। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु इस दिन से चार मास तक पाताल में राजा बलि के द्वार पर निवास करके कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं इसलिए इसे देवशयनी एकादशी भी कहते हैं। इस चार माह पर्यन्त समस्त मांगलिक कार्य स्थगित रहते हैं। अतः इसी दिन से चार्तुमास व्रत भी प्रारम्भ किये जाते हैं और विष्णु भगवान प्रसन्न होते हैं।
आषाढ़ मास की इस एकादशी के महत्व को लेकर आचार्य भरत का कहना है कि पुराणों में भी इसकी व्यापक चर्चा आई है । देव शयनी एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है। इस व्रत का पालन करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। घर में सुख शांति व समृद्धि के लिए भी देव सेन एकादशी का व्रत किया जाता है। देव सोनी एकादशी व्रत का पूरे विधि विधान से पालन करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं जिससे नकारात्मक विचार दूर होते हैं ।
इस तरह करें एकादशी का पारण
पंडित राकेश शास्त्री का कहना है कि देवशयनी एकादशी वैसे तो रात सोमवार से आ जाएगी, किंतु सूर्योदय से ही भारतीय काल गणना के अनुसार यह मान्य होगी इसलिए मंगलवार सुबह से यह शुरू होकर रात तक यह रहेगी। एकादशी तिथि समाप्त होने का मुहुर्त रात्रि 07:17 के बाद का है। उन्होंने कहा कि एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। उन्होंने बताया कि व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए। मोक्ष की इच्छा करने वाले मनुष्यों को भी यह एकादशी का व्रत करना चाहिए।
देवशयनी एकादशी व्रत की पूजन विधि
व्रत के दिन प्रातः जल्दी उठकर दैनिक कार्यों व स्नानादि से निवृत्त हो जाएं। घर की व पूजा स्थल की सफाई करें। पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें। भगवान विष्णु की मूर्ति का पंचामृत से स्नान कराकर दीप प्रज्ज्वलित करें और भगवान विष्णु की आराधना करें। पूजा करके व्रत का संकल्प लें। तथा एकादशी की कथा सुने। सायं काल में भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करें। और भोग लगाएं तथा प्रसाद को सब में वितरित करें। पूजा के पश्चात व्रत का पारण करें। इस दिन भोजन में नमक का सेवन ना करें।