By: Girish Malviya
एक 84 साल के बुजुर्ग शख्स जिन्हें सरकार UAPA कानून के तहत गिरफ्तार करती है आज उनकी जेल में मौत हो गयी…… हम बात कर रहे हैं स्टेन स्वामी की जिन्हें एनआईए (NIA) ने 2018 के भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में शामिल होने और नक्सलियों के साथ संबंध होने के आरोप में गिरफ्तार किया था।
वह भारत के सबसे बुजुर्ग शख़्स हैं, जिन पर आतंकवाद का आरोप लगाया गया है। भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में शामिल होने के आरोप में 16 लोगों को जेल भेजा गया है। इनमें सामाजिक कार्यकर्ता, वकील, शिक्षाविद, बुद्धिजीवी शामिल हैं स्टेन स्वामी भी इन 16 लोगो मे शामिल थे।
फादर स्टेन स्वामी 1991 में तमिलनाडु से झारखंड आए और आने के बाद से ही वह आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम करते रहे हैं। BBC लिखता है कि नक्सली होने के तमगे के साथ जेलों में सड़ रहे 3000 महिलाओं और पुरुषों की रिहाई के लिए वो हाई कोर्ट गए। वो आदिवासियों को उनके अधिकारों की जानकारी देने के लिए दूरदराज़ के इलाक़ों में गए।
फ़ादर स्टेन स्वामी ने आदिवासियों को बताया कि कैसे खदानें, बांध और शहर उनकी सहमति के बिना बनाए जा रहे हैं और कैसे बिना मुआवज़े के उनसे ज़मीनें छीनी जा रही हैं। उन्होंने साल 2018 में अपने संसाधनों और ज़मीन पर दावा करने वाले आदिवासियों के विद्रोह पर खुलकर सहानुभूति जताई थी। उन्होंने नियमित लेखों के ज़रिए बताया है कि कैसे बड़ी कंपनियाँ फ़ैक्टरियों और खदानों के लिए आदिवासियों की ज़मीनें हड़प रही हैं….. साफ है कि यह सब सरकार को बहुत नागवार गुजरा ओर मौका मिलते हैं उन्हें लपेट लिया गया।
स्टेन स्वामी न कभी वह भीमा कोरेगांव गए, न उनकी उस घटना में कोई सहभागिता थी, इसके बावजूद उन्हें 2018 से लगातार जेल में रखा गया ……… आज ही स्टेन स्वामी की जमानत याचिका पर सुनवाई होनी थी।
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान स्टेन स्वामी के वकील ने कहा कि बड़े भारी मन से कोर्ट को सूचित करना पड़ रहा है कि फादर स्टेन स्वामी का निधन हो गया है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)