By: प्रोफेसर (डा) नागेश्वर शर्मा
कोरोना महामारी की दूसरी लहर की शक्तिशाली एवं तीव्र मार से सम्पूर्ण भारत त्राहीमाम कर रहा है। स्थिति बहुत ही भयावह है। महामारी से उतपन्न भयावह स्थिति की वजह से ही सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट को क्रमशः केन्द्र सरकार और राज्यों की सरकारों को अपर्याप्त व्यवस्था के लिए फटकार लगाने पड़ रहे हैं। कोरोना के नये भैरिएन्ट से उत्पन्न दूसरी लहर के मैगनीच्यूड का इन आंकड़ों से स्पष्ट पता चलता है।
कोविड-19 की दूसरी लहर का वायरस पहली लहर के वायरस की तुलना में दस गुणा ज्यादा घातक है। यह एक्सपर्ट की राय है। कई मायने में यह अलग है। सबसे पहले तो इसकी गती तीव्र है। इस वैरियेन्ट से युवा वर्ग (25-40 साल के युवक) के लोग ज्यादा संक्रमित होते पाये गये। इस लहर से केवल शहरी आबादी ही नहीं, बल्कि ग्रामीण लोग भी संक्रमित हो रहे हैं। मौते हो रही है। कम्यूनिटी प्रसार जैसी स्थिति बन गयी है। इस लहर की एक खासियत यह भी है कि यह धाराबी और दिल्ली के स्लम्स (झुग्गी-झोपडी) की तुलना में मुम्बई, दिल्ली और अन्य शहरों के पॉश एरिया मे ज्यादा कहर मचा रही है। इस लहर की चपेट में जान गवाने वाले रसूखदार लोग भी हैं। फ्रन्टलाइन वर्कर्स, मंत्री-संत्री, विधायक , सांसद (पूर्व और वर्तमान ) और मेरे पत्रकार बंधु इस लहर के शिकार हुए। अकेले झारखंड मे पन्द्रह पत्रकारो की जाने अब तक जा चुकी है।
इस लहर में अधिकतर मौत लंग्स इन्फेशन की वजह से हुई है। आक्सीजन स्तर की कमी से हुई है। ऐसे तो पिछले कुछ दिनो से रफ्तार मे कमी की खबर लगातार दिखाई जा रही है । लेकिन इस दौरान संक्रमित हुए मरीजों और मौत के आंकड़े इस लहर की भयावह स्थिति को दर्शाता है। इस लहर का दूसरा पहलू जो बहुत ही व्यथित करने वाला है, वह हमारे नैतिक पतन से जुडा हुआ है। एक तरफ महामारी का कहर और अस्प्तालों में कुव्यवस्था का आलम तो दूसरी तरफ कालाबाजारी और मुनाफाखोरी का घिनौना, घृणित और घिन्न देने वाला खेल चरम पर है। दया, दान, धर्म , पुण्य और तप की पृष्ठभूमि वाली भारत भूमि पर इस तरह का कुकृत्य निसंदेह बहुत ही चिन्तनीय है।
- राम, सीता, कृष्ण और बुद्ध की धरती पर यह क्या हो रहा है?
- गीता ,गंगा और गायत्री की महिमा का गुणगान करने वाले देश के लोगो का इस कदर नैतिक ह्रास क्यो ?
- गीता, जो महमानव श्रीकृष्ण के मुखारवृन्द से निकला उपदेश है, हमे कर्मशीलता का पाठ पढाती है। फिर हम इतना कर्मविमुख क्यो और कैसे हो गये ?
वेद और परानो की उक्ति- सर्वे भवन्तु सुखीन: सर्वे सन्तु निरामया ,सर्वे भद्रानी पश्यन्ति, मा कश्चिद दुखभागभवेत- को कैसे भूल गये। परहित सरिस धर्म नही कोई ,परपीडा सम नही अधिमाही सेवा ही परम धर्म है।
नैतिक मूल्यो और आदर्शो से जुडे ये सारे वचन आज निजी स्वार्थ के सामने मूल्यविहीन क्यो हो रहे है?
अब हम कोरोना से जुडी दूसरी गंभीर समस्या, जो पैनडैमिक से भी ज्यादा खतरनाक है, पर बात करेंगे। बात हमारी राजधानी दिल्ली की है। प्राणवायू ऑक्सीजन के अभाव मे जब महामारी से संक्रमित रोगी दम तोड रहे थे, तब ऑक्सीजन की कालाबाजारी का खेल अपने चरम पर था। नवनीत कालरा उर्फ खान चाचा के रेस्तरां में हजार सिलिन्डर पड़े हुए थे। लाख-लाख रूपये में सिलिन्डर बेचे जा रहे थे। अब जान के दुश्मन जमानत की अरजी लगा रहे है। प्रायःसभी बड़े-छोटे शहरों मे यह निकृष्टतम खेल देखने को मिला। बात बिहार की राजधानी पटना की है। एक एन.आर.आइ. को अपने संबंधी को बेड एवं आक्सीजन के लिए 1.5 लाख रूपये भुगतान करना पड़ा। हद तो तब हुई जब थोड़ी देर बाद उसी सिलिन्डर को दूसरे को लगा दिया। भागलपुर की घटना तो और अधिक झकझोरने वाली है। एक महिला अपने संक्रमित पति से मिलने के लिए रोती रही,परन्तु मिलने नही दिया गया। इतना ही नहीं सिलिन्डर के लिए दस हजार लिए जिसमें ऑक्सीजन बहुत ही कम था। ऑक्सीजन के अभाव मे उसकी मौत हो गयी।
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में 19 May को सिलिन्डर की कालाबाजारी की खबर सुर्खियो में रही। 50-50 हजार तक में सिलिन्डर बेची गयी। वाक़्या बिहार का ही है। दिल्ली से बिहार तक आक्सीजन सिलिन्डर व कोबिड के गंभीर मरीज की महत्वपूर्ण दवाई रेमडेसिविर की ठगी करने वाले विजय बेनेडिक्ट की कहानी तो मानवता पर वदबूनुमा दाग है, जो मिटने वाला नहीं है। इस मामले मे इओयू ने कालाबाजारी को लेकर 12 बड़े ऑक्सीजन सिलिन्डर, एक खाली सिलिन्डर , 42 रेगुलेटर व 5 रेमडेसिवर जब्त किया है। रेमडेसिविर गंभीर संक्रमित रोगी को दिया जाता है।छह डोज तक दिया जाता है। इस दवाई की रिकार्डतोड़ कालाबाजारी हुई। एक-एक डोज के लिए दस हजार से 20 हजार तक लिए गये। मरता क्या नहीं करता ! लोगो ने दिया ,लाचारी थी, बेबसी थी, और बेरहमियो ने लिया। ये बेरहम लोग भूल गये कि वे अमृत पी कर नहीं आए है। उन्हें भी एक न एक दिन कूच करना है। एक दिन राम सब पर बीता। यह जानते हुए भी पाप कर्म के भागीदार क्यो बन रहे है।
कोरोना रूपी मैली गंगा के गंदे जल मे जिस किसी को मौका
मिला डुबकी लगा लिया, हाथ धो लिया। सबसे ज्यादा डुबकी तो निजी अस्पताल के मालिको ने खुद तो लगाई ही और कार्यरत डाक्टरो से भी लगवाई। डॉक्टर, जिन्हें next to god माना जाता है , रातो -रात प्रबंधन के इसारे पर अमानवीय हो गये। प्राइवेट अस्पताल ने संक्रमितो से बेड के लिए अनाप-शनाप राशि वसूला। पहले तो बेड खाली नही होने का बहाना। फिर देखते हैं। फिर एक दिन के आ सी यू बेड का 50 हजार और बतौर अग्रीम लाखों की राशी जमा करवाना दस्तूर बन गया। बावजूद रोगी के परिजनो के साथ दुर्व्यवहार करना आम पाई गयी। प्रायः सभी शहरों में मुनाफाखोरी का ये काले कारनामे देखने को मिले। पटना के निजी अस्पताल के विरूद्ध तो सरकार को कार्रवाई करनी पड़ी। ऑक्सीनेटर की कीमत एक हजार है, जिसे मुनाफाखोरों ने कोरोना पिक काल मे तीन हजार तक मे बेचा। अविश्वसनीय, पर ऐसा हुआ। मृत रोगी की कलाई घडी और मोबाईल अस्पताल कर्मियो की गिद्ध दृष्टि से नही बच पाई।
एम्बुलेन्स और गाड़ी वालो ने भी इस काल का नजायज लाभ लिया और जम कर मुनफा कमाया। सरकारी ऐम्बुलेन्स एक तो पर्याप्त नहीं, दुसरे जर्जर हालत। ऐसे मे गंभीर संक्रमित रोगी को रांची, पटना या दुर्गापुर जाने के लिए निजी ऐम्बुलेन्स की व्यवस्था करनी पड़ती है। ये ऐम्बुलेन्स वाले सारी मर्यादा को ताक पर रख कर 20- 40 हजार रूपये वसूलते रहे। वाकया राजधानी रांची की है। एक शव रांची से खून्टी ले जाना था। सरकारी व्यवस्था हो नहीं पा रही थी । पीड़ित परिजन रसूखदार या पैरवी वाले थे नही। अंत मेगाडी से शव ले जाने की सोचा। गाड़ी वाले दस हजार रूपये का डिमान्ड किया। अंत में ठेले पर शव ले जाना पड़ा।
कोरोना महामारी ,तो निजी अस्पताल के संचालको के लिए एक स्वर्णिम मौका बन गया । जम कर कालाबाजारी का हिस्सा बने और मुनाफा कमाया। रोगी का शव परिजनो को तब तक नहीं दिया। जब तक सारे बिल का भुगतान न ले लिया। इस तरह की निर्दयता देवघर समेत मधुपुर, धनबाद, रांची, पटना और दुर्गापुर आदि जगहों पर देखने और सुनने को मिला।
मेरे एक शुभचिन्तक देवघरवासी जो गान्धीवादी हैं, ने जब आप बीती सुनाई, तो मन घृणा से भर गया। उन्हें परिवार के एक सदस्य को दुर्गापुर के निजी अस्पताल मे भर्ती कराना पड़ा। उन्होने बताया कि भर्ती के समय अग्रीम एक लाख रूपये जमा करवाया और फिर प्रति दिन बीस से पच्चीस हजार का बिल थमा दिया जाता था। सो लूट है लूट। इस तरह इस वायरस से जाने ही नहीं गयी ,बल्कि लूट- खसोट के साथ -साथ अनेको अमानवीय व्यवहार जैसे शव को नदी मे बहा देना , लवारिस शवो को शवदाह स्थल पर जलाने के बजाय मृत कुत्ते के जलाने वाले स्थल पर जलाना। कोरोना से मृत व्यक्ति के परिजन को अपनी जमीन पर भी शव न जलाने देने जैसी घटना भी देखने को मिला । इस प्रकार यह महामारी मानवीय मूल्यो के लिए कसौटी बन के आई,जिस पड मानवीय मूल्य; किसी भी दृष्टी से खरे नहीं उतरे ।
अब हम महामारी से ईतर मंहगाई और मुनाफा से उत्पन्न परेशानी की चर्चा करेंगे। यह परेशानी आम लोगो के पेट से जुडी हुई है। कहते है , यदि पेट नही होता ,तो लोग काम नही, करते । विगत डेढ वर्ष के मंहगाई इन्डेक्स/स्तर पर नजर डाले ,तो पाते है कि कोविड -19 की मार के साथ-साथ मंहगाई की मार भी आम लोगो को झेलनी पडी है।इस दौरान कीमतो मे अप्रत्यासित वृद्धि हुई है । गत वर्ष एका-एक लाकडाउन की घोषणा, वह भी लम्बी अवधि के लिए, ने आम से लेकर खास उपभोक्ता तक को भयभीत कर दिया। घोषणा तुरंत बाद ही लोग दुकान की ओर दौड़ पड़े। भीड़ और लम्बी कतार को देख ,फिर जल्दीवाजी खरीदारी की होड ने हमारे विक्रेता भाइयो के ईमान को डगमगा दिया। कीमते ,जो समान्यतः डीमान्ड और सप्लाइ के खेल का हिस्सा होता है,वह ईमान और वेसब्री से तय होने लगा और ईमान वेसब्री भारी होते गया और मुनाफाखोरी और महंगाई बढती गयी और हम पीसते चले गये ।
पिछले मार्च माह से अब तक के मूल्य वृद्धि पर नजर डाले ,तो पाते है कि खाद्धान्न( सीरियल) से लेकर दाल ,तेल ,मसाले और फलो की कीमतो मे बतहासा वृद्धि हुई है और इसका महज एक ही कारण मेरी राय मे है और वह है थोक विक्रेता से लेकर खुदरा विक्रेताओ की मुनाफाखोरी करने की अन्तहीन लालसा । अर्थशास्त्र के अल्प ग्यान के आधार पर इतना तो अवश्य कह सकता हूँ कि अल्पावधि मे माग और पूर्ती मे इतनी वृद्धि और इतनी कमी संभव ही नही कि कीमते इतनी बढे ।मसाले की कुछ सामग्रिया तो दूगुने कीमतो पर बेची गयी । थोड़ी देर के लिए मान भी ले कि पिछले वर्ष आपूर्ति मे बाधा के चलते कीमते बढी , लेकिन अब तो आपूर्ति यथावत होने पर कीमते घटनी चाहिए थी ।पर ऐसा नही हो रहा क्योकि हमारी मनवृति ही लूट की हो गयी है।दवाई की कीमतो मे वृद्धि ने तो कोरोना काल मे एक रिकार्ड ही बना डाला । डेट आफ मैन्यूफैक्चरिन्ग पुराना , एम.आर. पी .कुछ और , लेकिन दाम अनाप-शनाप । दवाई एक बेलोचदार वस्तु है। दाम बढने पर भी आवश्यक डोज लेना ही है। इसी का नजायज फायदा बिक्रेताओ ने उठाया ।
साथ ही अन्तराष्ट्रीय बाजारो मे क्रूड आयल की कीमत मे कमी और स्थिर रहने के वाबजूद पेट्रोल और डीजल की कीमतो मे भारी वृद्धि के पीछे निजी तेल कम्पनियो की असमान्य लाभ कमाने की ही तो मंशा है। रसोई गैस की कीमत प्रति सिलिन्डर ₹860 /पर पहुँच गयी है।
उपयुक्त वर्णित तथ्य हमारी नैतिकता, कर्तव्य और संवेदनशीलता पर सवाल उठाते है। हम कितने अनैतिक, कर्तव्यहीन और असंवेदनशील हो गये है ? क्यों हम वेद ,पुरान,और उपनिषद मे वर्णित उपदेशो की धज्जिया उडा रहे है?
हम पढते आए है कि लालच बुरी बला होती है, क्या हम अपने इन्ही आचरणो के बल पर महान भारत के भारतवासी बनने की कल्पना कर सकते है ?
(लेखक प्रो. नागेश्वर शर्मा, संयुक्त सचिव, भारतीय आर्थिक परिषद हैं। उक्त लेख लेखक के निजी विचार हैं।)