By Girish Malviya
हम बात कर रहे हैं कोरोना की वैक्सीन और उसके इलाज से जुड़ी अत्यावश्यक दवाइयों से जुड़े पेटेंट अधिकार को भारत मे निरस्त करने की. जिसका अधिकार भारत सरकार को हैं.
पेटेन्ट के बारे मे सरल भाषा मे यह समझिए कि एक बार कोई किसी नए ‘आविष्कार’ पर कोई पेटेंट हासिल कर ले तो उसके बाद कोई दूसरा व्यक्ति, देश या संस्था बिना इजाजत उस चीज का उपयोग नहीं कर सकती। अगर वो ऐसा करती है तो इसे बौद्धिक संपदा की चोरी माना जाता है और कानूनी कार्रवाई होती है। लेकिन जैसा कि आप जानते ही है प्रत्येक देश का अपना अलग पेटेंट कानून है। साधारण तौर पर आविष्कारको को प्रत्येक देश में पेटेंट के लिए आवेदन देना आवश्यक बनाया गया है
अब यह समझिए कि भारत मे इस कानून की स्थिति क्या है:
भारतीय कानून में यह बहुत अच्छी बात रखी गयी है कि पेटेंट के लिए आविष्कार का काम अथवा उसका परीक्षण भारत में ही किया जाना चाहिए तथा पेटेंटेड दवा की बाज़ार में पर्याप्त उपलब्धता होनी चाहिए ताकि जनता की आवश्यकता की पूर्ति हो सके. इसी के साथ पेटेंटेड दवा की कीमत भी ऐसी होनी चाहिए कि कोई आम आदमी उसे खरीद सके. यदि ऐसा नहीं होता है तो जनता की स्वास्थ्य-सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से, विशेषकर महामारियों से देश की जनता को बचाने जैसी आपातकालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किसी पेटेंटेड दवा के लिए देश में ‘अनिवार्य लाइसेंस’ दिया जा सकता है.
और आपको मैं यह बता दूं कि इस अनिवार्य लाइसेंसिंग के अधिकार को प्राप्त करने के लिए भारत ने बीसवीं शताब्दी के आखिरी दशक में तमाम विकासशील देशों का नेतृत्व किया जब विश्व समुदाय के दबाव में 1994 में विश्व व्यापार संगठन के मशहूर गेट समझौते पर भारत ने हस्ताक्षर किये इसे ट्रिप्स एग्रीमेंट (व्यापार संबंधी बौद्धिक संपदा अधिकारों के बारे में हुआ अनुबंध) कहा जाता है इसीट्रिप्स समझौते में थोड़ा लचीलापन रखा गया जो आज हमारे काम।आ सकता है लेकिन यदि मोदी सरकार चाहे तो..
इस लचीलेपन के तहत भारत जैसे विकासशील देशों पर ही यह जिम्मेदारी छोड़ दी गयी कि वे ‘अनिवार्य लाइसेंस’ के सम्बन्ध में पेटेंट के स्टैण्डर्ड को तय करें ओर एक महत्वपूर्ण बात जान लीजिए कि यह सब भारत मे मौजूद वामपंथी दलों के दबाव का नतीजा था जिसके कारण हम यह ‘अनिवार्य लाइसेंसिंग’ जैसी छूट प्राप्त कर पाए. जिसके मुताबिक महामारी जैसे समय में अगर कोई देश चाहे तो बिना पेटेंट धारक की अनुमति से पेटेंट धारक के देश से पेटेंट का लाइसेंस ले सकता है। देश को पेटेंट धारक देश को रॉयल्टी के तौर पर कुछ देना पड़ेगा। ओर शर्त यह है अनिवार्य लाइसेंसिंग के तहत पेटेंट लेने वाला देश केवल अपने देश के लिए उत्पादन कर सकता है। इसका इस्तेमाल निर्यात के लिए नहीं कर सकता।
ठीक है ! रॉयल्टी भी दे देंगे ,ओर हमे निर्यात करने की कोई जरूरत भी नही है, कोरोना वेक्सीन की डोज ओर जरूरी दवाओं की जरूरत हमे इस वक्त बहुत है इसलिए मोदी सरकार को भारत के पेटेन्ट कानून की धारा 92 का तुरंत इस्तेमाल करना चाहिए.
एक खास बात बताना तो रह ही गयी. वो ये कि पिछले हफ्ते ही सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि सरकार के पास पेटेंट एक्ट (under the Patent Act) के तहत वैक्सीन बनाने का अधिकार है. ऐसे में एफिडेविट के मुताबिक 10 PSUs भी ये वैक्सीन बना सकते हैं.
दूसरी बात RSS के आनुषांगिक संगठन स्वदेशी जागरण मंच (SJM) ने भी केंद्र सरकार से मांग की है कि कोविड-19 के वैक्सीन और दवाओं को पेटेंट मुक्त किया जाए और जल्द से जल्द इनके प्रोडक्शन को देश मे शुरू करा जाए
अब तो ठीक है ?…… दे दिया न सकारात्मक सुझाव …अब करवा लो इस सुझाव पर अमल !……
डिसक्लेमर:ये लेखक के निजी विचार है.