अम्बेडकर जयंती पर विशेष
अम्बेडकर से सबको रश्क है. उन्होंने भारतीय वामपंथ को "Bunch of Brahmin Boys" कहा इसलिए कुछ कम्युनिस्ट्स/लेफ्टिस्ट्स उनसे चिढ़ गए। उन्होंने गांधी के ख़िलाफ़ लिखा इसलिए कुछ गांधीवादी उनसे चिढ़ गए। उन्होंने हिन्दू धर्म से लेकर इस्लाम तक की बुराइयों पर लिखा इसलिए दोनों तरफ़ के अतिवादी उनसे चिढ़ गए। अम्बेडकर ने सबपर लिखा और लगभग हर गलत के ख़िलाफ़ लिखा।
आपमें सिर पर मल ढोने की क़ूवत है?
अम्बेडकर को भुनाने की कोशिश भी बहुत हुई, और होती चली आ रही है। ग्राम प्रधानी से लेकर सांसदी लड़ने वाले व्यक्ति तक के चुनाव प्रचार में आपको तख़्तियों और पोस्टरों पर अम्बेडकर मिल जाएंगे। अम्बेडकर को वोट-मेकर बना दिया गया है। जिनके लिए अम्बेडकर ने लड़ाई लड़ी, जिन मुद्दों के लिए वो खड़े थे। वो मुद्दे आज भी बने हुए हैं।सोचिएगा कि अम्बेडकर को श्रद्धांजलि देने के तुरन्त बाद आपमें सिर पर मल ढोने की क़ूवत है?
The castes are anti-national…. अम्बेडकर इसी बात के हिमायती थे और हम सबको भी इस बात की हिमायत करनी चाहिए। दूसरों को एंटी-नेशनल टैग देने से पहले सोचिए कि हमारी यह जाति-व्यवस्था ही कितनी ज्यादा एंटी-नेशनल है।
ब्राह्मणवाद का समूल नाश बेहद ज़रूरी है:
ब्राह्मणवाद का समूल नाश बेहद ज़रूरी है, बिला शक। हम ब्राह्मणों ने छोटी जाति के ऊपर ज़ुल्म किए, उन्हें पढ़ने से रोका, सबसे बड़ी बात उन्हें अच्छी तरह से जीने से रोका। और जब आरक्षण आया तब सब ब्राह्मण और ऊंची जाति वाले रोने लगे कि अरे! हमें तो आरक्षण नहीं मिल रहा और यह मनुष्य का स्वभाव है कि हम हर उस चीज़ के ख़िलाफ़ हो जाते हैं जो हमें नहीं मिलती। तो हम अब आरक्षण के ख़िलाफ़ हो गए।
देखा जाए तो आज़ादी के बाद इस देश में सबसे बेहतरीन चीज़ अगर कुछ हुई है तो वो है- आरक्षण। जब एक नीची जाति का बच्चा ऊंचे पदों पर पहुँचता है तभी ऊंची जाति का जातीय दंभ बत्ती बनकर घुस जाता है।
अम्बेडकर की तुलना बाकियों से करके उन्हें बड़ा बताना भी गलत है
और एक बात ये भी कि अम्बेडकर की तुलना बाकियों से करके उन्हें बड़ा बताना भी गलत है। इससे आपकी क्षणिक चाहत पूरी हो जाती है, लेकिन दीर्घकालिक परिणाम कुछ नहीं होता। अम्बेडकर अपने-आप में बहुत बड़े हैं, उन्हें ज़रूरत ही नहीं है किसी और से तुलना होकर बड़ा बनने में। आप उनकी तुलना गांधी से करेंगे और गांधी को छोटा बताएंगे, अम्बेडकर को बड़ा। कुछ देर के लिए आपको मज़ा आएगा। लेकिन फिर आप सोचिएगा कि क्या खुद में इतने बड़े व्यक्ति को किसी अन्य से तुलना की आवश्यकता है? और किसी अन्य को छोटा बनाकर बड़ा बनने का शौक अम्बेडकर ने जीवनभर नहीं पाला। तो ये करके छद्म अम्बेडकरवादी बनने का प्रयास आप भी मत करिए।
पहले अम्बेडकर को पढ़िए
एक निवेदन भी कि अम्बेडकर और गांधी पर भले शक मत करिए, लेकिन अम्बेडकरवादियों और गांधीवादियों पर पूरा शक करिए. अंत में यही कि पहले अम्बेडकर को पढ़िए। बिना पढ़े आप अम्बेडकर को अपनी कुंठित सोच से ही आकेंगे। उनका सही आकलन उन्हें पढ़कर ही हो पाएगा, और उन्होंने लिखा भी बहुत कुछ है।
अम्बेडकर जैसा बनने की कोशिश करिए
पढ़ने के साथ-साथ अम्बेडकर जैसा बनने की कोशिश करिए। अम्बेडकर ने समाज के लिए जो किया और जो करना चाहते थे उसे आगे बढ़ाने की कोशिश करिए। रोहित वेमुला और गोविंद पनसारे को याद करिए कि समाज को क्या ज़रूरत पड़ती है उन्हें खत्म कर देने की?
अम्बेडकर से चिढ़ रहे हैं तो टमाटर खाइए
और अम्बेडकर से चिढ़िए मत। चिढ़ रहे हैं तो टमाटर खाइए और चेक करिए कि स्वाद आ रहा है या नहीं। गुलाब के फूल सूंघिये, देखिये महक रहा या नहीं। अगर स्वाद आ रहा, महक आ रही तो ठीक है। इतने के बाद आम भी खाइए, अपनी मर्ज़ी के अनुसार, लेकिन किसी को ये मत बताइये कि चूसकर खा रहे या काटकर। कुछ चीज़ें प्राइवेट में ही अच्छी लगती हैं। प्राइवेसी मेंटेन करिए। लेकिन जब कोई छोटी जाति का बच्चा आगे बढ़े तो उसे "ज्यादा अम्बेडकर मत बनो" कहकर चुप मत कराइये, उसे आगे बढ़ने दीजिए, अम्बेडकर से भी आगे।
बाबासाहेब से रश्क नहीं, इश्क करिए।
जय भीम!