रावेल पुष्प
गुरु ग्रंथ साहिब में राम- इस शीर्षक से कुछ लोगों को आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता हो सकती है, लेकिन वास्तविकता यही है कि गुरु ग्रंथ साहिब में सैकड़ों बार राम शब्द का प्रयोग हुआ है। वैसे यहां ये बात स्पष्ट समझ लेनी होगी कि जहां कहीं भी इस शब्द का प्रयोग हुआ है, वहां ये त्रेता युग के राजा दशरथ के पुत्र रामचंद्र के रूप में हैं लेकिन इसके अलावे इस शब्द का प्रयोग अधिकतर निराकार परमात्मा के रूप में ही हुआ है। अयोध्या के राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र रामचंद्र को केंद्र में रखकर जहां वाल्मीकि रामायण की रचना हुई है वहीं गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना कर उसे घर घर पहुंचा दिया। वैसे आम जनमानस रामचंद्र को भी भगवान राम मानकर ही उसकी पूजा अर्चना करते हैं।
गुरु ग्रंथ साहिब में दशरथ पुत्र राम का जिक्र करते हुए ये पंक्तियां दृष्टव्य हैं-
रोवै राम निकाला भइया
सीता लखमण बिछड़ गया
या फिर गुरू तेग बहादुर की रचना है –
राम गयो रावण गयो,जा कउ बहु परवार
इसके अलावे राम शब्द का प्रयोग जहां परमात्मा के रूप में हुआ है , वही अल्लाह है,खुदा है ,गोविंद है ,करता पुरख है , गोसाईं है और वो कण कण में विद्यमान है-
राम रमहु वडभागियो , जल थल महिअल सोई । एवं – निरमल भउ पाईया ,हरि गुण गाईया
हर वेखै राम हदूरे
ऐसा मेरा राम रहिया भरपूरि
निकट वसै नाहि हरि दूरि
सभी रूप एक ईश्वर के ही हैं यथा
कोई बोले राम राम कोई खुदाई
कोई सेवै गुसईयां कोई अलाहि
राम का नाम जपने से ही मुख पवित्र हो जाता है ,और हम जिससे भी राम का यश सुनते हैं,वो हमारा ही भाई है, मित्र है –
राम गोविंद जपेंदेआं होवा मुख पवित्र
हर जस सुणिए ,जिस ते सोई भाई मित्र
गुरु तेग बहादुर तो राम को करता पुरख के रूप में मानते हुए कहते हैं कि सारी सृष्टि उनकी ही बनाई हुई है –
साधो रचना राम बनाई
या फिर भगत नामदेव जी भी कहते हैं –
सभै घट राम बोलै, राम बिना को बोले रे
भगत कबीर कहते हैं कि राम के साथ संबंध आत्मा परमात्मा जैसा ही है –
आतम राम,राम है आतम
हरि पाइए शबद विचारा हे
गुरु नानक देव जी का कथन है –
हरि हरि हरि हरि हरि जन
उतम किया उपमा तिन दीजै
राम नाम तुलि अउर न उपमा
जन नानक किरपा करीजै
राम का नाम ही ऐसा है जिसका किसी भी कीमत पर परित्याग नहीं किया जा सकता –
कबीरा राम न छोड़िए,तन धन जाई न जाउ
चरन कमल चित बेधिआ, रामहि नाम समाउ
सांसारिक सुख सुविधाएं जितनी भी मिल जाए , लेकिन राम नाम के बिना पाया सब कुछ फिजूल है,खो सकता है-
ऊंचे मंदर सुंदर नारी, राम नाम बिन बाजी हारी
और अगर हमेशा सुखों को अपने पास रखना चाहता है तो हे जीव , राम की शरण मे रह –
जो सुख को चाहे सदा ,सरणि राम की लेहि
इसके अलावे भी ये सारा संसार राम नाम के बिना तो मुर्दा है और वैसे तो ये नाम मुर्दों को भी जिंदा करने की शक्ति रखता है –
इक मिरतक मड़ा शरीर है सभ जग
जित राम नाम नहीं वसिया
राम नाम गुर उदक चुवाईया
फिर हरिया होआ रसिआ
गुरवाणी तो यहां तक कहती है कि राम का नाम लेने वाले के पास तो यमदूत भी नहीं आ सकते –
अंत कालि जम जोहि न साकैं
हरि बोलहु राम पिआरा हे
राम नाम इस जग में तुलसा
जमकाल नेड़ि न आवै
नानक गुरमुख राम पछाता
कर किरपा आप मिलावै
बंगाल के संत और गीत गोविंद के रचयिता जयदेव जिनके दो पद गुरु ग्रंथ साहब में संग्रहित हैं उनको तो राम का नाम ही सिर्फ अच्छा लगता है – केवल राम नाम मनोरमं !
भगत त्रिलोचन और भगत नामदेव इन दोनों की रचनाएं भी गुरु ग्रंथ साहिब में हैं और वे दोनों समकालीन तो थे ही ,एक सच्चे मित्र की तरह एक दूसरे की आलोचना से भी नहीं चूकते थे। त्रिलोचन का कहना था कि नामदेव तो सांसारिक मायाजाल में फंसे हुए हैं और वे जाति का छीपा होने के कारण सिर्फ दिनभर कपड़े छापने का काम ही करते रहते हैं , लेकिन राम का स्मरण नहीं करते ।इस के उत्तर में नामदेव कहते हैं कि हे त्रिलोचन , एक सच्चे भक्त को अपने इष्ट का हमेशा स्मरण रहता है और उसके मुंह में हमेशा राम का नाम ही रहता है ,लेकिन आदर्श स्थिति यही है कि भक्तों को अपने हाथों से सांसारिक दायित्वों का निर्वाह भी बखूबी करते रहना चाहिए ।
इस नोक-झोंक का जिक्र भगत कबीर ने अपने एक श्लोक में बखूबी किया है –
नामा माइया मोहिआ,कहे तिलोचन मीत
काहे छापू छाहिले, राम ने लावहु चीत।
नामा कहे तिलोचना, मुख ते राम संभालि
हाथ पाउ कर काम सभ, चीत निरंजन नाल।।
इसके अलावे नामदेव ने स्वयं अपने पारिवारिक व्यवसाय छीपा और दर्जी द्वारा प्रयुक्त उपादानों के द्वारा अपनी भक्ति भावनाओं को व्यक्त करते हुए दिन-रात राम के नाम के स्मरण करने की बात कही है –
मन मेरे गज जिह्वा मेरी काती
मपि मपि काटउ जम की फासी
कहा करउ जाती ,कहा करउ पाती
राम का नाम जपउ दिन-राती
रांगनि रांगउ सीवनि सीवउ
राम नाम बिनु घरीअ न जीवउ
भगति करउ हरि के गुन गावउ
आठ पहर अपना खसम धिआवउ
सुइने की सुई,रूपे का धागा
नामे का चितु हरि सिंउ लागा।
राम को प्राप्त करने के लिए किसी दिखावे या आडम्बर की जरूरत नहीं-
क्या नागे क्या बाधे चाम
जब नहीं चीनस आतम राम।
वैसे भी सिर्फ राम राम कहने भर से ही उसकी प्राप्ति नहीं हो जाती ,निर्मल मन और गुरुओं के आशीर्वाद से ऐसी प्राप्ति होती है –
राम राम सभ को कहै, कहिए राम न होई
गुरु प्रसादी राम मन वसै, ता फल पावे सोई
राम का नाम करने वाले को गुरुवाणी में भले पुरुष का दर्जा दिया गया-
भलो भलो रे कीर्तनिया
राम रमा रामा गुण गाओ
राम का नाम जपने वाला एक शिशु भी ईश्वर को प्राप्त कर लेता है और मौत भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती –
राम जपउ जी ऐसे ऐसे –
ध्रुव प्रह्लाद जपिओ हरि जैसे
वैसे तो गुरुवाणी में राम के नाम का महत्त्व दर्शाते हुए गुरुओं तथा अन्यान्य संतों की वाणी में भी जगह जगह वर्णन है ,यहां तक कि उनके नाम का स्मरण करने वाले का मुख ही नहीं ,वो पूरा नगर ही पवित्र हो जाता है जहां राम का नाम लिया जाता हो-
गुरु ग्रंथ साहिब में कबीर की ये पंक्तियां दृष्टव्य हैं –
कबीर सोई मुख धंन है ,जा मुख कहिए राम
देही किसकी बापुरी पवित्तर होईगो ग्राम
गौरतलब है कि दुनिया में सिर्फ एक ही ऐसा धर्म ग्रंथ है जिसमें न सिर्फ उस धर्म के गुरुओं की वाणी का संग्रह है ,बल्कि विभिन्न धर्मों, जातियों की वाणी का भी उसी तरह संग्रह है और वही सम्मान प्राप्त है ।
गुरु ग्रंथ साहब में सिखों के सिर्फ छह गुरुओं की वाणी दर्ज है बल्कि इसके अलावे पन्द्रह भक्तों, संतों एवं सूफियों की वाणी है तथा कुछ भट्टों की वाणी भी है ।
यहां इस बात का उल्लेख करना समीचीन होगा कि गुरु ग्रंथ साहिब का सर्वप्रथम संकलन और संपादन सिखों के पंचम गुरु अर्जुन देव ने किया था और उसका प्रथम प्रकाश 1604 ई. में अमृतसर के हरि मंदिर साहिब ( स्वर्ण मंदिर) में किया था। उसके पश्चात सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने उसमें अपने पिता और गुरु तेग बहादुर की रचनाओं को शामिल कर उसका वर्तमान स्वरूप दिया था तथा अपने परलोक गमन से पूर्व इसे ही 1708 ई. में गुरु के रूप में स्थापित करते हुए आदेश दिया था कि अब से कोई भी जीवित गुरु नहीं होगा और जीवन में जो भी ज्ञान, दिशा निर्देश लेने होंगे इसी गुरु ग्रंथ साहिब से मिल जाएंगे और यह आदेश दिया कि-
सभ सिक्खन को हुकम है, गुरु मान्यो ग्रंथ।
(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं।)