रिंकू शर्मा के पिता 10 महीने पहले बेरोजगार हो गए इस पर कोई बात नही करेगा कि उन्हें नोकरी से क्यो निकाल दिया गया ?……
आज कल के अखबारों में कोने में छोटे से कॉलम में छपी शहरों गाँवो में हो रही आत्महत्या की खबरों को देखिए ………. 90 प्रतिशत आत्महत्या की वजह आर्थिक तंगी है।
पिछले एक साल में लाखो करोड़ों लोग अपने रोजगार से हाथ धो बैठे हैं, या तो उनका जॉब छूट गया है या वे जो छोटा-मोटा व्यापार धंधा कर रहे थे, वो बन्द हो गया है। जो लोग नौकरी कर रहे हैं। उन्हें भी 25 से 50 प्रतिशत सैलेरी मिल रही है। ऐसी स्थिति में घर ख़र्च चलाना मुश्किल है। EMI भरना मुश्किल है……. नतीजा है तनाव और घरेलू क्लेश……
परिवार का मुखिया अपने छोटे-छोटे कर्ज नहीं चुका पा रहा है, बिका हुआ मीडिया आपको यह नहीं बताएगा कि लॉकडाउन के बाद किस तरह से एक आम भारतीय परिवार पर कर्ज का बोझ बढ़ रहा है…….
आप को जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि असम में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा क्या है ?
असम का आज सबसे बड़ा मुद्दा CAA नहीं है, असम में माइक्रो फाइनेंस उपलब्ध कराने वाले संस्थाओं द्वारा की जाने वाली जबरन वसूली वहां प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गया है, कुछ दिनों पहले असम के कोकराझार जिले में वित्तीय समस्याओं ने एक व्यक्ति, उसकी पत्नी और तीन बेटियों को आत्महत्या से मौत के घाट उतार दिया।
पुलिस सूत्रों ने बताया कि 45 वर्षीय निर्मल पॉल, एक कुकिंग गैस सब-एजेंसी चलाता था और बैंकों और स्थानीय साहूकारों का करीब 25-30 लाख रुपये बकाया था। उसने पिछले कुछ महीनों से ईएमआई का भुगतान नहीं किया था।
डिब्रूगढ़ में 5 फरवरी, 2020 को महिलाओं का एक अनोखा जुलूस देखने को मिला। हजारों महिलाएं मोरान और महामार के जिलाधिकारी कार्यालयों में पहुंचीं और माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं से जुड़े वसूली एजेंटों के व्यवहार और उनकी ऊंची ब्याज दरों को लेकर आत्महत्या करने की मंजूरी के लिए ज्ञापन सौंपा। इस ज्ञापन में कहा गया था कि कर्ज लेने वाली महिलाओं के घर में वसूली एजेंटों के घुसने, उन्हें परेशान किए जाने और ब्याज की ऊंची दरों से वे उस स्थिति में पहुंच गई हैं जहां से बचने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है।
मतलब आप समझिए कि क्या हाल हो गया देश का !…. कि हजारों महिलाएं का हुजूम कलेक्टर कार्यालय पुहंच रहा है और माँग कर रहा है कि आप यदि वसूली रोक नही सकते तो हमे आत्महत्या करने का अधिकार ही दे दें।
असम में इन दिनों इतनी खराब स्थिति है कि कांग्रेस ने भी असम चुनाव के मद्देनजर किसानों का कर्ज और महिलाओं द्वारा "माइक्रोफाइनेंस" संगठनों द्वारा लिया लोन माफ करने का वादा तक कर दिया। असम की सरकार ने भी विधानसभा ने आर्थिक रूप से कमजोर समूहों एवं व्यक्तियों को जबरन वसूली एवं अधिक ब्याज वाले कर्ज की मुश्किलों से बचाने के लिए असम सूक्ष्म वित्त संस्थान (धन उधारी नियमन) विधेयक 2020 को हाल ही में पारित किया है….. लेकिन इस विधेयक के अधिकारिता क्षेत्र पर विवाद है।