देवघर।
PMGSY (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना) के तहत ग्रामीण यातायात को बेहतर बनाने के लिए हर वर्ष बजट आवंटित होता है। सभी सड़के REO (Rural Engineering Organisation) बनवाता है। अब सड़क बन रही है तो उसकी Quality भी चेक होनी चाहिए और होती भी है। वो भी बड़ी सख्ती से। इतनी सख्ती से कि मज़ाल कि विभागीय अभियंता या संवेदक कुछ भी गड़बड़ करने को सोच भी सकें। और जांच होती भी है लेकिन बड़े खेल के साथ।
अब अगर सड़क खराब बनी है तो क्या?
ग्रामीण गुणवत्ता को लेकर सवाल उठाय तो ठीक है न ! यहा आती हैं न क्वालिटी कंट्रोल की टीम। वही जो सड़कों की गुणवत्ता की जांच करती है। टीम भी एक नहीं दो-दो। एक National तो दूसरी State की टीम। जाँच तो होगी सभी सड़कों की , लेकिन इसलिए नहीं कि आपको गाड़ी दौड़ाने के लिए बेहतर सड़क मिले बल्कि…. अब शब्दों में क्या पिरोना, आप तो समझ ही रहे होंगे।
अभी National Quality Monitor टीम देवघर में सड़कों की गुणवत्ता जांच रही है। हर बार होती है इसलिए इस बार भी हो रही है। सड़क गुणवत्ता की जांच होगी। जांच होनी भी चाहिये। टीम देवघर जिले की आठ सड़क व चार पैकेज की जांच कर रही है। लगभग 50 करोड़ की PMGSY सड़को की Quality जांच रिपोर्ट विभाग में बैठे ऊपर के अधिकारी को सौंपी जाएगी। लेकिन नीचे ही सब खेल और गोल-माल है।
अब हर बार की तरह इस बार भी जांच को होने दीजिए। अधिकारी,संवेदक सब मिल-जुल कर इतनी ईमानदारी रखते हैं कि गुणवत्ता के साथ कोई बेईमानी हो ही नहीं सकती। All Is Well के तर्ज पर सब सेट रहता है। अब तो आप पक्का सब समझ ही गए होंगे।
भई! Quality से कोई समझौता नहीं। यहां State Quality Monitor की टीम भी आती है। अब सोचिए जिस योजना की जांच दो-दो टीम करें। वहां quality खराब हो सकती है क्या?
गंभीर सवाल यह है कि जबरदस्त Quality check mechanism के बाद भी सड़क खराब कैसे बन जाती है और ग्रामीण गुणवत्ता पर सवाल क्यों खरा करते हैं? हाय-तौबा मचाते और विरोध प्रदर्शन भी करते है। सारवां ब्लॉक के घाटघर से मोहबदिया मार्ग निर्माण में घटिया कार्य करने पर ग्रामीण पूर्व मुखिया के नेतृत्व में विरोध कर रहे है। जबकि इस मार्ग की एक बार Quality मोनिटरिंग हो चुकी है।
Quality मॉनिटर की टीम अभी जांच कर रही है। विभागीय अभियंता और संवेदक टीम के साथ लग जांच करवाते है। सब सेट रहता है। टीम चली जाती है। काम बन जाता है। गुणवत्ता भी मन मुताबिक और खातिरदारी भी। जाँच से पहले ही सब खेल हो जाता है। ग्रामीण हल्ला करते रहे क्या फर्क पड़ता है। क्योंकि सब गोल-माल है।