देवघर।
सिलसिला शुरू होने वाला है री-एड्मिशन का, दुकानें सजने वाली है किताबों की। नए क्लास में नया ड्रेस अगर चाहिए आपके बच्चों को तो दूर मत जाइए, स्कूल के किसी एक कमरे में मिलेगा आपको ड्रेस रूम। कितना आराम है न। आपको सबकुछ एक जगह ही मिल जाता है, जैसे अलग अलग चीजों के लिए बाजार में अलग अलग भटकना नहीं पड़ता। और आपके पास भी तो वक़्त नहीं है तो अपने बच्चे के भविष्य से समझौता कैसा, दो रुपये ज़्यादा ही लग रहे तो क्या दो पैसे और ले लो किताबे, कॉपी, टाई, बेल्ट, शर्ट ,पैंट या स्कर्ट सब दे दो। इसके अलावा बच्चे के डेवलपमेंट के लिए डेवलपमेंट चार्ज भी ले लो। क्योंकि, डेवलपमेंट चार्ज के बिना बच्चों का विकास अगले क्लास के लिए नहीं होगा।
जी हां, निजी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाना सभी अभिभावकों की ख्वाहिश होती है, वजह ये है कि अभिभावक अपने बच्चों की बेहतरी और उन्हें बेहतर शिक्षा देने के उद्देश्य से निजी स्कूलों में दाखिला कराते हैं, और हो भी क्यों न, आपका सबकुछ आपके बच्चों के लिए ही तो है, लेकिन, आपके इसी इमोशन का फायदा उठाते हैं निजी स्कूल।
आपके जिगर के टुकड़े को बेहतर शिक्षा और विकास देने के नाम पर लूट मचनी अब शुरू होने वाली है, बस इसका तरीका बदल गया है, पहले जहां री-एडमिशन फी लिया जाता था अब उसकी जगह डेवलपमेंट चार्ज लिया जाता है, और साथ में स्मार्ट क्लासेस के नाम पर एक्स्ट्रा वसूली। पहले आपको किताबों की लिस्ट दी जाती थी, अब स्कूलों में ही किताब की दुकान खोल दी जाती है, और अगर कहीं नही खुली तो दुकान के नाम दिए जाते हैं जहां आपको लिस्ट के हिसाब से ही दी गयी पब्लिकेशन की बुक्स मिलेगी। पहले तो आप किसी भी दुकान से 5-10 रुपये मोल भाव करा किताब कॉपी खरीद भी लेते थे, लेकिन अब आप मजबूर हैं और आपको प्रिंटेड कीमत ही अदा करनी होगी। ड्रेस, मोजा, और टाई-बेल्ट में भी कोई समझौता नहीं, स्कूल से ही खरीदना होगा, भले ही आपको दुगनी कीमत अदा करनी हो, लेकिन पूरे यूनिफार्म में आपके बच्चे के स्कूल का लोगो भी तो प्रिंट होगा। और अगर आपने ये सबकुछ नहीं लिया तो शिक्षा के नाम पर खुला व्यापार तरक्की कैसे करेगा।
अब आप छोटे से उदाहरण से शिक्षा के नाम पर चल रहे व्यापार को समझिये-
►आप अमूमन बच्चों का ड्रेस बाजार से कितने में खरीदते होंगे, एक शर्ट की कीमत 250 से 500 तक, पैंट या स्कर्ट 400 से 800 तक (साइज के हिसाब से), लेकिन स्कूल की दुकान में सेम कपड़े के शर्ट की कीमत 500 से हज़ार या उससे ज़्यादा ही , पैंट व स्कर्ट की कीमत 800 से 1200 के बिच होती है. वैसे मोज़े जो 50 रूपये में भी न मिलें उसे 100 या 150 में स्कूलों में बेचा जाता है. टाई और बेल्ट भी 100 रूपये से कम में नहीं मिलती।
►हर साल आपके बच्चे को दूसरे क्लास में जाने के लिए भी एक्स्ट्रा राशि जमा करनी होती है, पहले री-एडमिशन चार्ज होता था, अब डेवलपमेन्ट चार्ज लिया जाता है, क्लास के हिसाब से इसकी भी कीमत 1000 से 5000 रूपये के बीच की होती है, इसी राशि से आपके बच्चे का साल भर डेवलपमेन्ट किया जाता है, या यूँ कह लें कि नेक्स्ट क्लास में प्रवेश की मुहर लगती है.
►अब किताबों पर आते हैं, यहां सारा खेल कमीशन का है. कमीशन जो किताबों की बिक्री के हिसाब से स्कूलों को मिलती है. हर किताब पर प्रिंटेड कीमत के हिसाब से 40 से 60 % का अंतर होता है, सारा खेल इसी अंतर् के तहत लाखों रूपये की कमाई का है. ऐसा ही कुछ हाल स्कूलों से मिलने वाली कॉपियों का भी है, फर्क इत्ता सा है कि बाजार में आपको अच्छे ब्रांड की बेहतरीन कॉपी मिल जाएगी, कीमत भी कम हो. लेकिन, आपके लाडले/लाडली के स्कूल के नाम का कवर कॉपी में नहीं लगा होगा।
इन आंकड़ों को आधार मानते हुए समझिये कि निजी स्कूल प्रबंधन प्रति वर्ष करोड़ों की कमाई कितनी साफगोई से कर जाते हैं.
बहरहाल, आपके बच्चे को बेहतर शिक्षा देने के नाम पर चल रहे निजी स्कूलों में व्यापार के गोरखधंधा पर न तो सिस्टम का जोर है, न ही आपकी आपत्ति, भैया जैसे चल रहा चलने दो न, जब सरकार खामोश है तो हम आवाज़ खिलाफ कर के कर भी क्या लेंगे।
तो, अब आप तैयार हो जाएं, ज़रा अपनी जेब कस के पकड़ लें। ताकि स्कूलों की डिमांड छुटे न। आखिर, आपके बच्चे के भविष्य का जो सवाल है!