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Election Commission ने CM Hemant Soren से कहा- office of profit मामले में अपने मंतव्य की कॉपी आपको नहीं दे सकते

भारत के चुनाव आयोग (election commission of india) ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जुड़े ऑफिस ऑफ प्रॉफिट केस (Office of profit case related to Jharkhand Chief Minister Hemant Soren) में अपने मंतव्य की कॉपी उन्हें उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया है।

Ranchi: भारत के चुनाव आयोग (election commission of india) ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जुड़े ऑफिस ऑफ प्रॉफिट केस (Office of profit case related to Jharkhand Chief Minister Hemant Soren) में अपने मंतव्य की कॉपी उन्हें उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया है। हेमंत सोरेन की ओर से उनके अधिवक्ता वैभव तोमर ने बीते 1 सितंबर और 15 सितंबर को आयोग को पत्र लिखकर मांग की थी कि इस मामले में आयोग का जो भी मंतव्य है, उसकी प्रति उन्हें उपलब्ध करायी जाये। इसका जवाब देते हुए आयोग ने स्पष्ट किया है कि संविधान की धारा 192 (2) के तहत यह दो संवैधानिक अथॉरिटी के बीच का मामला है, इसलिए इस मसले पर राजभवन का आदेश आने से पहले आयोग द्वारा राजभवन को भेजी गई अपने मंतव्य की कॉपी देना संविधान का उल्लंघन होगा।

गौरतलब है कि आयोग ने ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले की सुनवाई करने के बाद अपना मंतव्य सीलबंद लिफाफे में पिछले महीने की 25 तारीख को झारखंड के राज्यपाल को भेज दिया था। इस बारे में अब तक आधिकारिक तौर पर स्पष्ट नहीं हो पाया है कि चुनाव आयोग का मंतव्य क्या है? सीएम हेमंत सोरेन ने बीते 15 सितंबर को खुद राज्यपाल रमेश बैस से राजभवन में मुलाकात कर उनसे चुनाव आयोग के मंतव्य पर स्टैंड साफ करने की मांग की थी। उन्होंने राज्यपाल को इस संबंध में एक पत्र भी सौंपा था, लेकिन राज्यपाल ने इस संबंध में अब तक कुछ भी नहीं कहा है।

अब चुनाव आयोग ने भी अपने मंतव्य की कॉपी सीधे हेमंत सोरेन को उपलब्ध नहीं कराये जाने के पीछे सुप्रीम कोर्ट के आदेश और आयोग के सकरुलर का हवाला दिया है। आयोग ने डी.डी. थाइसी बनाम इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया (डब्ल्यूपीसी नंबर 152/2021) केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र किया है। इसके मुताबिक पिटीशनर ने चुनाव आयोग द्वारा मणिपुर के गवर्नर को भेजे गए मंतव्य की कॉपी मुहैया कराने की मांग की थी। इस पर आयोग ने दलील दी थी कि दो संवैधानिक ऑथरिटी के बीच हुए कम्युनिकेशन का खुलासा करना संवैधानिक रूप से सही नहीं होगा।

आयोग की इस दलील को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 9 दिसंबर 2021 को पिटीशनर की याचिका को खारिज कर दिया था। आयोग ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के वकील को साल 2016 के उस ऑर्डर की कॉपी भी मुहैया कराई है, जिसमें स्पष्ट उल्लेख है कि संविधान की धारा 103 (2) और 192 (2) से जुड़े मामलों की कॉपी राइट टू इनफार्मेशन एक्ट के सेक्शन 8(1))(ई) और 8(1)(एच) तब तक नहीं दी जा सकती, जब तक उसपर राष्ट्रपति या गवर्नर का आदेश न हो। इस संबंध में 2 अगस्त 2022 को भी आयोग की ओर से एक सकरुलर जारी किया गया है।

बता दें कि यह मामला हेमंत सोरेन के नाम पर एक पत्थर खदान की लीज के आवंटन से जुड़ा है। मुख्यमंत्री रहते हुए रांची के अनगड़ा में उनके नाम 88 डिसमिल के क्षेत्रफल वाली पत्थर खदान की लीज आवंटित हुई थी। भाजपा ने इसे ऑफिस ऑफ प्रॉफिट (लाभ का पद) और जन प्रतिनिधित्व कानून के उल्लंघन का मामला बताते हुए राज्यपाल के पास शिकायत की थी।

भाजपा ने मांग की थी कि ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के नियमों के तहत मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द की जानी चाहिए। राज्यपाल ने इसपर चुनाव आयोग से मंतव्य मांगा था। आयोग ने शिकायतकर्ता और हेमंत सोरेन को नोटिस जारी कर इस मामले में उनसे जवाब मांगा। दोनों के पक्ष सुनने के बाद चुनाव आयोग ने राजभवन को बीते 25 अगस्त को अपना मंतव्य भेज दिया था।(IANS)

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