Ranchi: झारखंड में स्थानीयता (Domicile) की नीति तय करने का मुद्दा एक बार फिर बहस, विवाद और आंदोलन का रूप ले रहा है। सोमवार को झारखंड विधानसभा में पक्ष-विपक्ष के विधायकों ने इस मुद्दे पर सरकार की घेरेबंदी की। विधानसभा के पास भी कई संगठनों ने इस मुद्दे पर प्रदर्शन किया। सदन में सबसे पहले यह मामला आजसू पार्टी के विधायक लंबोदर महतो ने उठाया। उन्होंने 1932 में हुए भू-सर्वे के कागजात (land survey papers) के आधार पर राज्य में स्थानीय नीति तय करने की मांग की। कहा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने अपने घोषणा पत्र में भी कहा था कि 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति बनेगी और इसी आधार पर सरकारी नौकरियों में झारखंड के लोगों के लिए नौकरी की व्यवस्था होगी।
झारखंड सरकार में साझीदार कांग्रेस पार्टी के विधायक बंधु तिर्की ने कहा कि वह झारखंड राज्य बनने के बाद ही स्थानीय नीति के लिए लड़ाई लड़ते रहे हैं। राज्य में पूर्व की भाजपा सरकार ने जनभावनाओं को नजरअंदाज कर स्थानीय नीति बनाई थी। इस नीति को रद्द कर टाइम फ्रेम तय करते हुए नई स्थानीय नीति बनाई जाए और जब तक नई नीति नहीं बनती है, तब तक सभी तरह की नियुक्तियों पर रोक लगाई जाए। कांग्रेस के ही दूसरे विधायक प्रदीप यादव ने सरकार से पूछा कि राज्य सरकार की ओर से नियुक्ति में झारखंड से मैट्रिक और इंटर की परीक्षा पास करना अनिवार्य कर दिया गया है। सरकार को यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि जिन स्थानीय लोगों के बच्चे यहां नहीं पढ़ रहे हैं, उन्हें नौकरी मिलेगी या नहीं? जिन स्थानीय छात्रों ने बाहर से पढ़ाई की है, उनके लिए भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है। सीपीआई एमएल के विधायक विनोद सिंह ने भी 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति तय करने की मांग उठाई। सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि पूर्व की सरकार द्वारा तय की गई स्थानीय नीति राज्य में चल रही है या फिर नई स्थानीय नीति बनेगी। भाजपा के विधायक भानुप्रताप शाही ने सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि जो लोग यहां सैकड़ों वर्षों से रह रहे हैं और जिनके बच्चे बाहर पढ़ रहे हैं, उनका क्या होगा? अनारक्षित वर्ग के बच्चों को नौकरी मिलेगी या नहीं?आजसू पार्टी के सुदेश महतो ने भी सरकार से जवाब मांगा कि स्थानीय नीति बनाये जाने तक क्या नियुक्तियां स्थगित रहेंगी?
विधायकों के सवाल पर संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि स्थानीय नीति में संशोधन को लेकर जल्द ही त्रिसदस्यीय मंत्रिमंडल उपसमिति बनाई जायेगी। बाद में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी इस मुद्दे पर जवाब दिया। उन्होंने कहा कि राज्य में स्थानीय नीति के नाम पर झारखंड बनने के साथ ही राजनीति होती रही है। तत्कालीन सरकार ने बगैर सोचे-समझे नीति बनाई तो न्यायालय ने उसे निरस्त कर दिया था। हमारी सरकार न्यायालय के निर्णय का अध्ययन कर रही है, इसके बाद इस मुद्दे पर निर्णय लेगी।
इधर आदिवासी संगठनों ने 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति बनाने की मांग को लेकर मुख्यमंत्री आवास से लेकर विधानसभा तक मानव श्रृंखला बनाई। इसका नेतृत्व कर रहीं पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव ने कहा कि झारखंड में स्थानीय नीति, भाषा नीति, उद्योग नीति लागू नहीं होने से आदिवासियों की पहचान मिट रही है। इसी मुद्दे पर आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच ने विधानसभा के पास जोरदार प्रदर्शन किया। इधर आजसू पार्टी ने आगामी 7 मार्च को विधानसभा का घेराव करने की घोषणा की है।(IANS)