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कॉलेजियम प्रणाली की टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों ने की रिजिजू को तीखी आलोचना

न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली (collegium system for appointment of judges) पर केंद्र और न्यायपालिका का टकराव (Clash between Center and Judiciary) खत्म होता नहीं दिख रहा।

सुमित सक्सेना New Delhi: न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली (collegium system for appointment of judges) पर केंद्र और न्यायपालिका का टकराव (Clash between Center and Judiciary) खत्म होता नहीं दिख रहा। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों ने कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ टिप्पणियों के लिए कानून मंत्री किरेन रिजिजू की तीखी आलोचना की है। 

हाल ही में मीडिया से बातचीत करते हुए कानून मंत्री ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने अनुशंसित उम्मीदवारों पर रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) और खुफिया ब्यूरो (IB) के इनपुट प्रकाशित किए। यह गंभीर चिंता का विषय है।

एक समाचार चैनल को दिए साक्षात्कार में रिजिजू ने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति एक संवेदनशील मुद्दा है, जिस पर हम सार्वजनिक मंचों पर चर्चा नहीं कर सकते हैं और इस बात पर जोर दिया कि वह प्रक्रिया पर चर्चा नहीं कर सकते, लेकिन कह सकते हैं कि सरकार सोच-समझकर निर्णय लेती है और एक नीति का पालन करती है। 

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन नरीमन ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ कानून मंत्री के आक्षेप के लिए उनकी आलोचना की।

न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा, कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों को रोक कर रखना इस देश के लोकतंत्र के लिए बहुत घातक बात है। इससे संकेत मिलता है कि आप एक विशेष कॉलेजियम की प्रतीक्षा कर रहे हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि अगला कॉलेजियम अपना विचार बदल देगा। गौरतलब है कि न्यायमूर्ति नरीमन अगस्त 2021 में सेवानिवृत्त होने तक वह सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का हिस्सा थे।

इसी तरह सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर, जो सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के पूर्व सदस्य भी थे, ने कानून मंत्री के सुझावों को अस्वीकार्य कहा। उन्होंने कहा कि अगर कानून मंत्री के सुझावों को लागू किया जाता है, तो यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचाएगा और कमजोर करेगा।

इसी तरह न्यायमूर्ति नरीमन ने भी इस बात पर जोर दिया था कि अगर निडर और स्वतंत्र न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं की गई तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता क्या होगी। उन्होंने कहा, यदि आपके पास निडर और स्वतंत्र न्यायाधीश नहीं हैं, तो अलविदा कहें, कुछ भी नहीं बचा है। मेरे अनुसार अगर यह आखिरी गढ़ गिरता है, तो हम एक अंधकार युग में प्रवेश कर जाएंगे।

पिछले साल दिसंबर में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली और न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और विक्रम नाथ की सदस्यता वाली तीन न्यायाधीशों की सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से कहा कि सिर्फ इसलिए कि समाज के कुछ वर्ग हैं, जो अलग विचार व्यक्त करते हैं कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ आधार नहीं है। 

शीर्ष अदालत ने जजशिप के लिए कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित उम्मीदवारों की फाइलों को रोक कर बैठे केंद्र सरकार को भी फटकार लगाई थी। 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमानी से कहा कि कॉलेजियम द्वारा न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए चुने गए वकीलों की पदोन्नति पर केवल उनके ²ष्टिकोण के कारण आपत्ति नहीं की जानी चाहिए। अदालत को विभिन्न दर्शन और ²ष्टिकोण प्रतिबिंबित करना चाहिए ।

कानून मंत्री ने इंटरव्यू में कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट की बेंच की ओर से कहा गया कि सरकार फाइलों पर बैठी है, तो लोकतंत्र में उनके लिए जवाब देना जरूरी हो जाता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार सामान्य रूप से फाइलों को नहीं रोकती, बल्कि वह आवश्यकतानुसार प्रक्रिया का पालन करती है।

शीर्ष अदालत के कॉलेजियम ने विभिन्न उच्च न्यायालयों में न्यायपालिका के लिए कुछ अधिवक्ताओं के नामों को दोहराते हुए प्रस्ताव प्रकाशित किए। शीर्ष अदालत ने उम्मीदवारों पर रॉ और आईबी के इनपुट का हवाला दिया, जिनकी फाइलें केंद्र द्वारा पुनर्विचार के लिए कॉलेजियम को लौटा दी गई थीं।

समलैंगिक वकील सौरभ कृपाल को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किए जाने के संबंध में एक बयान में, कॉलेजियम ने कहा: 11 अप्रैल 2019 और 18 मार्च 2021 के रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रा) के पत्रों से यह ऐसा प्रतीत होता है कि 11 नवंबर 2021 को इस अदालत के कॉलेजियम द्वारा सौरभ कृपाल के नाम को मंजूरी देने की सिफारिश पर दो आपत्तियां हैं। प्रथम सौरभ कृपाल का पार्टनर एक स्विस नागरिक है, उनके बीच घनिष्ठ संबंध है और अपने यौन अभिरुचि के बारे में खुला है।

कृपाल के नाम को दोहराते हुए कॉलेजियम ने कहा कि यह मानने का कोई कारण नहीं है कि उम्मीदवार का साथी, जो स्विस नागरिक है, हमारे देश के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार करेगा, क्योंकि उसका मूल देश एक मित्र राष्ट्र है।

कॉलेजियम ने कहा, संवैधानिक पदों के वर्तमान और पिछले धारकों सहित उच्च पदों पर कई व्यक्तियों के पति या पत्नी, विदेशी नागरिक हैं। (IANS)

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