

रांची।
झारखंडी सहजन का स्वाद अब विदेशों मे भी लोग ले सकेंगे। रांची के कुछ युवाओं ने यहाँ बड़े पैमाने पर सहजन के पौधे लगाए हैं, जिसके फल और पत्ते को डिब्बाबंद कर विदेश निर्यात किया जाएगा।

स्वाद इतना लजीज, कि यह हर दिल अजीज है। फल, फूल या पत्ता, हर कुछ अलग अलग रुप मे खाने के काम आता है। इसे मोरांगी या मुनगा भी कहते हैं। रांची के कुछ युवाओं ने इसकी बड़े पैमाने पर खेती शुरू कर दी है। इनकी योजना यहाँ उपजने वाले सहजन के फल और पत्तों को डिब्बे मे बंद कर विदेश के बाजारों तक पहुंचाने की है।
सहजन की यह विशेष किस्म PKM-1 है, जिसके बीज भले ही दक्षिण भारत की एक कंपनी ने विकसित की है, लेकिन रांची के ओरमांझी स्थित नर्सरी मे इसने पौधे का रूप अख्तियार किया है। युवकों का दावा है कि यह पहला ऐसा बागीचा होगा, जहाँ एक साथ आठ हजार से अधिक सहजन के पौधे लहलहायेंगे। यह किस्म साल मे तीन बार फल देनेवाला है और स्वाद और गुणवत्ता के मामलों मे भी यह दूसरी किस्मों से काफी बेहतर है।
दरअसल, सहजन खाने मे जितना स्वादिष्ट होता है, उतना ही औषधीय गुणों से भरपूर भी है। युवाओं का इरादा है कि देश हो या विदेश, कोई इसके लाभ से महफूज न रहे। कई जटिल रोगों मे मोरांगी एक रामबाण दवा है, कहते हैं डायबिटीज़ वालों के लिए तो यह अमृत समान है। युवाओं के प्रयास से जहाँ यह वर्ष भर सर्वसुलभ हो सकेगा, वहीं देश विदेश मे झारखंड की धाक बढ़ेगी।