नवरात्रि को सनातन धर्म का सबसे पवित्र और ऊर्जादायक पर्व माना गया है। इस आषाढ़ माह में गुप्त नवरात्रि पर्व का सोमवार को आज दूसरा दिन है। इस बार गुप्त नवरात्रि का शुभारंभ बहुत ही शुभ नक्षत्र रवि पुष्य योग के साथ हुआ है और समापन अबूझ मुहूर्त भड़ली नवमी पर होगा। संयोग से पिछले दो सालों की तरह इस साल भी नवरात्र आठ दिन के हैं । देश भर में इस वक्त गुप्त रूप से मां की आराधना का क्रम शुरू है।
इस समय प्रकृति भगवती की होती है विशेष कृपा
इस संबंध में आचार्य भरत दुबे ने बताया कि गुप्त नवरात्रि आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा और वर्षा ऋतु के मध्य आरंभ होता है। एक वर्ष में चार नवरात्रि होते हैं। इनमें दो को गुप्त और दो सामान्य कहे गए हैं। यह नवरात्रि गुप्त साधनाओं के लिए परम श्रेष्ठ कहा गया है। उन्होंने बताया कि गुप्त नवरात्रि को सिद्धि प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ माना गया है, इस समय प्रकृति भगवती की विशेष कृपा साधक पर होती है। पर्यावरण भी इस समय का सबसे अनुपम रहता है, इसलिए इस नवरात्रि को साधुओं और तांत्रिकों की नवरात्रि के रूप में भी जाना जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि सामान्य जन इन दिनों में विशेष पूजा-अर्चना नहीं करते हैं, आचार्य भरत का कहना है कि जिन्हें नौकरी, व्यापार, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में विशेष उन्नति चाहिए वे इस समय में मां की पूजा-आराधना गुप्त रूप से करते हैं ।
गुप्त नवरात्र है दस महाविद्याओं की साधना का विशेष दिन
पं. राकेश चौबे का कहना है कि गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना का विशेष महत्व है। एक तरफ साधक अपने कल्याण के लिए आराधना कर रहे हैं तो दूसरी ओर इस नवरात्रि पर मंदिर और घरों में कोरोना महामारी से मुक्ति के लिए विशेष साधना और अनुष्ठान किए जा रहे हैं । उन्होंने बताया कि माघ और आषाढ़ माह में गुप्त नवरात्र आते हैं और चैत्र और अश्विन माह में प्रकट नवरात्र आते हैं। इस बार छठवीं और सप्तमी तिथि एक ही दिन पड़ रही है । सप्तमी तिथि के क्षय होने के कारण अष्टमी 17 जुलाई को रहेगी और 18 जुलाई को नवमी के साथ नवरात्र का समापन होगा।
मां भगवती के इन स्वरूपों की होती है इन दिनों में पूजा
उन्होंने बताया है कि नवरात्रि के इन विशेष दिनों में गुप्त नवरात्रि के पहले दिन मां काली की पूजा की गई थी। अब आगे तारा देवी, त्रिपुरा सुंदरी, भगवती भुवनेश्वरी, मां छिन्न मस्ता और मां त्रिपुर भैरवी की पूजा की जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि चूंकि इस दौरान तांत्रिक, साधक या अघोरी तंत्र-मंत्र और सिद्धि प्राप्त करने के लिए मां दुर्गा की साधना करते हैं, इसलिए इन विशेष दिनों में मां के अलग-अलग रूप विशेषकर मां धूमावती, मां बगलामुखी, मां मातंगी और मां कमला देवी की पूजा अंतिम नवरात्रि के दिन की जाती है।