वो दोषी है या नहीं ये न्याय और न्यायालय के अधिकार क्षेत्र की बात है। पर इस भीड़ में , मैं उसे बस एक स्त्री के रूप में देख रही हूँ।
इन तस्वीरों को देखिए , ये सो कोल्ड पढ़ने लिखने वाली जानवरनुमा भीड़ है , जो लड़की के दिमाग और दिल के अंदर तक जाकर , एक-एक बात को निकालकर अपने अखबार की हेडलाइन या ब्रेकिंग न्यूज़ बना लेने पर आमादा हैं। और ऐसा करने के लिए ये भीड़ सारी मर्यादाएं और मानवता ताक पर रखकर उसे अपने कैमरों ,माइक और सवालों से नोचने के लिए उसपर टूट पड़ी है।
एक बार कल्पना कीजिये कितना डर , क्रोध और कितनी नफ़रत एक साथ उस वक्त इस लड़की के अंदर चल रहे होंगे।
ये हमारे समाज के मज़बूत स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया के संवेदनाहीन रिपोर्टर हैं जिन पर दवाब उनसे भी अधिक संवेदनाहीन संपादकों और मालिकों का है जो कैरियर की और अखबार की सबसे बड़ी न्यूज़ लाने का प्रेशर इन पर बनाये रखते हैं।
मैं हतप्रभ हूँ न्याय होने की प्रक्रिया में ही रिया जाने कितने नरक भोग चुकी होगी। मैं इन तस्वीरों में किसी टारगेटेड कल्पिट को नहीं बस एक स्त्री को देख रही हूँ जो सभ्य लोगों की भीड़ में नोच लिए जाने की आशंका से डरी हुई बस किसी तरह वहाँ से भाग जाना चाहती है।
धिक्कार है ऐसे तंत्र पर जो एक सम्मानजनक और सुरक्षित न्याय प्रक्रिया को बना पाने में असफल है।