नई दिल्ली।
गोड्डा सांसद डॉ.निशिकांत दुबे पर बार-बार एफआईआर मामले में देवघर एसपी पीयूष पांडे पर प्रिविलेज कमिटी ने ब्रीच ऑफ प्रिविलेज की कार्रवाई जारी रखने व सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संविधान और संसद के कार्यों व इसकी स्वतंत्रता में हस्तक्षेप बताते हुए मानने से इंकार किया है।
मंगलवार को प्रिविलेज कमिटि झारखंड के अधिकारियो ख़ासकर देवघर के पुलिस अधीक्षक पीयुष पांडेय को दिए गये नोटिस पर दिल्ली में सुनील सिंह की अध्यक्षता में बैठी। कार्यवाही शुरू करने के पहले पूरी कमिटि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिडला से मिली। मुलाक़ात के बाद कमिटि ने अपनी बैठक दोबारा शुरू की। कमिटि ने सर्वसम्मति से उच्चतम न्यायालय के निर्णय को संविधान और संसद के कार्यों व इसकी स्वतंत्रता पर हमला बताया।
कमिटि ने उच्चतम न्यायालय के निर्णय को मानने से इंकार किया व एसपी पीयूष पांडेय पर प्रिविलेज की कारवाई जारी रखने का फ़ैसला किया है। कमिटि ने उच्चतम न्यायालय में एम वी राव के जाने की वजह के बारे में भी पूछने का निर्णय लिया है।
देवघर के पुलिस अधीक्षक पीयूष पांडे के मेल जिसमें उन्होंने नहीं आने की वजह परमीशन नहीं मिलना बताया है उस पर भी कार्रवाई करने का फ़ैसला कमिटी द्वारा लिया गया है।
गौरतलब है कि गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे के मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने देवघर एसपी पीयूष पांडे को तत्काल राहत दी। सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा सचिवालय की विशेषाधिकार समिति द्वारा देवघर के एसपी को सांसद निशिकांत दुबे की शिकायत पर समिति के सामने आठ सितंबर को पेश होने के मामले में जारी समन पर रोक लगा दी है। न्यायमूर्ति एलएन राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने डीजीपी एमवी राव की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये आदेश सुनाया।
यहां बता दें कि 28 अगस्त को सांसद की गरिमा का ध्यान रखे बिना बार-बार गोड्डा सांसद डाॅ0 निशिकांत दुबे व उनके परिवार के उपर पुलिस द्वारा एफआइआर दर्ज किये जाने के मामले को लोकसभा अध्यक्ष ने संज्ञान में लिया और इसे ब्रिच ऑफ़ प्रिविलेज मानते हुए कमिटि ऑफ़ प्रिविलेज ने झारखंड के पुलिस अधिकारियों को हाजिर होने का पत्र जारी किया था. लोकसभा सचिवालय से जारी हुए पत्र के अनुसार देवघर के एसपी पीयुष पांडे को कमिटि के सामने दिल्ली पार्लियामेंट हाउस के रूम नंबर डी में आठ सितंबर को दिन के 12.30 बजे सशरीर हाजिर होकर सांसद डाॅ. निशिकांत दुबे के खिलाफ दर्ज एफआइआर के मामले में मौखिक प्रमाण प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया था.
गौरतलब है कि किसी भी सांसद के उपर किसी भी मामले में चार्जशीट तबतक दाखिल नहीं की जा सकती है, जबतक इसकी इजाजत लिखित तौर पर लोकसभा अध्यक्ष से नहीं ले ली जाये।