रांची:
खूंटी में खुशहालियाँ लौट रही है. पत्थलगड़ी की आग अब बुझती नजर आ रही है। अपनी सरकार का दावा करने वाले पत्थलगड़ी समर्थक खूंटी से गायब हो चुके है । नतीजा अब ग्रामीण खुद सरकार विरोधी नारों से लिखे पत्थलगड़ी को गिराने लगे है।
उखाड़े जा रहे पत्थलगड़ी के पत्थर:
पत्थलगड़ी के लिए विख्यात हो चुका झारखंड का खूंटी जिला की आबो हवा बदल रही है. खूंटी के ग्रामीण इलाकों में सरकार विरोधी पत्थलगड़ी को ग्रामीण अपने ही हाथों से गिराने लगे हैं। इसकी शुरुआत खूंटी के चितरामु गांव से की गई है। गुरुवार सैकड़ों की संख्या में मौजूद ग्रामीणों ने गांव में पत्थरगढ़ी समर्थकों के द्वारा लगाई गई पत्थलगड़ी को ढाह दिया गया।
सरकार विरोधी गतिविधि बर्दाश्त नहीं:
ग्रामीणों के अनुसार आदिवासी रीति रिवाज में पत्थरगढ़ी की जाती है लेकिन उस की आड़ में अगर कोई सरकार विरोधी गतिविधि में शामिल होगा तो यह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। खूंटी के कई और गांव के ग्रामीणों ने पत्थर गढ़ी को उखाड़ फेंकने का दावा किया है।
एक साल पहले ग्रामीणों को बरगलाया गया था:
गौरतलब है कि इस गांव में एक साल पहले ग्रामीणों को बरगला कर यूसुफ पूर्ति , बलराम समद और जॉन जुनास तिडू जैसे तथाकथित पत्थलगड़ी समर्थकों ने सरकार के खिलाफ नारे लिख पत्थलगड़ी की थी। इसके लिए बकायदा उन्होंने ग्राम सभा की बैठक की है और यह निर्णय लिया है कि आदिवासी अपने पारंपरिक पत्थर गढ़ी को गांव में करेंगे साथ ही सरकार विरोधी पत्थर गढ़ी को वह खुद ही हटा देंगे।
प्रशासन ग्रामीणों को कर रही जागरूक:
खूंटी में हुए पत्थरगढ़ी विवाद के बाद लगातार खूंटी में कैंप कर रहे रांची डीआईजी अमोल वेणुकान्त होमकर ने बताया कि प्रशासन की तरफ से पत्थलगड़ी के कही भी नही गिराया जाएगा, क्योंकि पत्थलगड़ी आदिवासी जनमानस की आस्था से जुड़ा है। पत्थलगड़ी के साथ छेड़छाड़ होने पर पत्थलगड़ी के मास्टरमाइंड धार्मिक भावनाओं के जरिए ग्रामीणों को भड़का सकते हैं। ऐसे में प्रशासन ने सभी पत्थलगड़ी के प्रभावित गाँव मे ग्रामीणों के बीच जाकर उन्हें जागरूक कर रही है। ग्रामीणों के बीच लगातार संपर्क अभियान चलाया जा रहा है । जिसका अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। डीआईजी ने बताया कि लगभग एक दर्जन गांव में ग्राम सभा के माध्यम से यह तय किया गया है कि विवादित पत्थर गढ़ी को गिरा दिया जाएगा और वहां पर आदिवासियों के परंपरागत पत्थर गढ़ी की जाएगी।
पत्थलगढ़ी विवाद को लेकर खूंटी बना हुआ था अशांत:
बता दें कि पत्थरगढ़ी विवाद को लेकर खूंटी लगातार अशांत बना हुआ था। पुलिस प्रशासन भी पत्थर गढ़ी प्रभावित गांवों में जाने से कतराता था, क्योंकि कई बार उन गांव में पुलिसकर्मियों को बंधक बना लिया जाता था। लेकिन कोचांग में पांच युवतियो के साथ गैंग रेप के मामले में पत्थलगड़ी समर्थकों के नाम आने के बाद ग्रामीणों का इससे मोहभंग होने लगा. मोहभंग होते ही प्रशासन ने भी ग्रामीण इलाकों में लगातार विकास की योजनाओं को चलाकर ग्रामीणों का मन जीतने की कोशिश की और उन्हें इसका फायदा भी मिलने लगा है। जहां कभी पत्थरगढ़ी के लिए ग्रामीण सैकड़ों की संख्या में इकट्ठा होते थे और प्रशासन के खिलाफ आवाज बुलंद करते थे । आज वही ग्रामीण पत्थरगढ़ी को खुद से उखाड़ कर फेंक रहे हैं।